बढ़ते तापमान के कारण शीत-अनुकूल प्रवासी प्रजातियां छोटे, खंडित प्रवासों में जा रहीं: रिपोर्ट

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 03-10-2025
Rising temperatures are forcing cold-adapted migratory species into shorter, fragmented migrations: Report
Rising temperatures are forcing cold-adapted migratory species into shorter, fragmented migrations: Report

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

 
 कस्तूरी मृग और हिम ट्राउट जैसी हिमालयी प्रजातियों सहित अन्य प्रवासी वन्यजीवों के सामने अस्तित्व संबंधी चुनौतियां बढ़ रही हैं, क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण शीत-अनुकूलित प्रजातियां और अधिक ऊंचाई पर स्थित छोटे, खंडित प्रवासों की ओर जाने को मजबूर हो रही हैं। शुक्रवार को जारी एक नयी रिपोर्ट तो कुछ यही बयां करती है.
 
वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (सीएमएस) की ओर से जारी यह रिपोर्ट 2025 की शुरुआत में एडिनबर्ग में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ कार्यशाला के निष्कर्षों पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि जलवायु-प्रेरित आवास परिवर्तन मानवीय गतिविधियों के कारण पहले से ही व्याप्त खतरों को और बढ़ा रहा है.
 
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि सीमित कनेक्टिविटी के कारण एशियाई हाथियों को ‘हैबिटेट ग्रिडलॉक’ का सामना करना पड़ रहा है.
 
‘हैबिटेट ग्रिडलॉक’ शब्द का इस्तेमाल उस स्थिति को बयां करने के लिए किया जाता है, जिसमें प्रवासी प्रजातियां आवास के विखंडन के कारण या तो फंस जाती हैं या अधिक उपयुक्त क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से जाने से अवरुद्ध हो जाती हैं.
 
रिपोर्ट में कहा गया है, “जलवायु और भू-उपयोग में परिवर्तन के कारण हाथियों के आवास पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं, लेकिन सीमित कनेक्टिविटी की वजह से भारत और श्रीलंका के अधिकांश हाथी वहां नहीं जा सकते, जिससे मानव-हाथी संघर्ष बढ़ रहा है.
 
इसमें कहा गया है कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र, जो पहले से ही बढ़ते तापमान के प्रति संवेदनशील है, तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रहा है.
 
रिपोर्ट के मुताबिक, “शीत-अनुकूलित वन्य जीवों, जैसे कि कस्तूरी मृग, तीतर और हिम ट्राउट को अधिक ऊंचाई पर स्थित छोटे, खंडित शरण स्थलों में जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि कुछ छोटे स्तनधारी जीव आने वाले समय में अपना 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र गंवा देंगे.
 
रिपोर्ट में योगदान देने वाले भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के प्रोफेसर सत्यकुमार सम्बंदम ने प्रवासी वन्य जीवों के लिए सिकुड़ते शरण स्थलों को लेकर चिंता जताई.
 
उन्होंने कहा, “हमारा अनुमान है कि उच्च-ऊंचाई वाले संरक्षित क्षेत्र (पीए) जलवायु संबंधी प्रभावों को कम कर सकते हैं, लेकिन पीए के बाहर के कई क्षेत्र भी शरण स्थलों के रूप में काम करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण किसी पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर जैव विविधता में होने वाले तीव्र बदलाव को कम करने के लिए संरक्षण प्रयासों के तहत आवागमन गलियारे, आवास द्वीप और शरण स्थल स्थापित करने होंगे.
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन के एक हिस्से के रूप में 2015 में हिमालय की ऊंचाई वाली ढलानों में दीर्घकालिक वन्यजीव निगरानी शुरू की गई थी.