धार्मिक सहिष्णुता शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए: नसीरुद्दीनचिश्ती

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 30-11-2022
धार्मिक सहिष्णुता शिक्षापाठ्यक्रम में शामिल किया जाए:  नसीरुद्दीनचिश्ती
धार्मिक सहिष्णुता शिक्षापाठ्यक्रम में शामिल किया जाए: नसीरुद्दीनचिश्ती

 

मंसूरुद्दीन फरीदी /नईदिल्ली 

अखिल भारतीय सूफी सज्जादनशीन काउंसिल के अध्यक्ष और दरगाह अजमेर शरीफ के उत्तराधिकारी सज्जाद नशीननसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि यह ऐतिहासिक और यादगार अवसर है. भारत और इंडोनेशिया नकेवल आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हैं, बल्कि सांस्कृतिकआदान-प्रदान में भी शामिल हैं.

मैंने इंडोनेशियाई विद्वानों के साथ चर्चा मेंस्पष्ट किया कि भारत का संविधान दुनिया के लिए महान मॉडल है. इसमें शामिल हैधार्मिक सहित सभी प्रकार की स्वतंत्रता. मुझे मुसलमान के रूप में भारतीय होने परगर्व है.  

आवाज द वॉयस  से बात करतेहुए अखिल भारतीय सूफी सज्जाद नशीन काउंसिल के अध्यक्ष नशीन नसीरुद्दीन चिश्ती नेकहा कि हमने इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल को बताया कि भारतीय मुसलमान पूरी धार्मिकस्वतंत्रता के साथ रह रहे हैं.

जो युवा भटकाव के शिकार हैं या जिन्हंे गलत रास्तेपर डाल दिया गया है, उसके पीछे देशविरोधी ताकतें हैं. धार्मिक एवं आध्यात्मिक लोगों की जिम्मेदारी है कि हम ऐसे भटकेहुए युवाओं को सही रास्ते पर लाएं. नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहाकि इस मुलाकात के दौरान मैंने इंडोनेशिया टाइम्स से कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता औरसहिष्णुता बहुत महत्वपूर्ण है.

दो तत्वों का मिलन एक बेहतर दुनिया को जन्म देताहै. धार्मिक शिक्षाएं और मान्यताएं पूरी दुनिया में लोगों के मूल्यों, कार्यों, विकल्पों और विचारों को प्रभावित करती हैं. धार्मिकगतिविधियों की स्वतंत्रता केवल धर्म से नहीं आती, यह स्वयं लोगों से ही आनी चाहिए. 

उन्होंने कहा कि किसी देशके केंद्रीय प्राधिकरण में धार्मिक संगठनों का होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये संगठन लोगों के बीच शांति को बढ़ावादेने में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं. दुनिया भर में, जैसा कि हम धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कई चुनौतियों कोदेखते हैं, हम यह भी देखते हैं किपुरुष और महिलाएं अपने अधिकारों और दूसरों के अधिकारों के लिए खड़े होने को तैयारहैं. कभी-कभी खुद के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. 

नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहाकि मेरा सवाल है कि अपने अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए इंसान को अपनी हदें पारक्यों करनी पड़ती है? हम एक संगठन केरूप में एक बेहतर दुनिया बना सकते हैं, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुविधा हो.

आपसी सद्भाव, एकता, सहिष्णुता और स्वीकृति पर जोर दिया जा सके. उन्होंने कहा, मैंने देश भर में कई अंतरधार्मिक बैठकें आयोजितकी है. मेरा अनुभव बताता है कि इन सभाओं के संदेश को स्वीकार करने के लिए न केवलविभिन्न धर्मों के धर्मगुरु बल्कि आम लोग भी स्वेच्छा से आगे आ रहे हैं. 

उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि धार्मिक संगठनों औरउप-संगठनों को आसान तरीके से सक्षम बनाने के लिए भारत और इंडोनेषिया सरकार को हाथ मिलानाचाहिए. इसके अलावा शैक्षिक केंद्रों को अपने पाठ्यक्रम में धार्मिक सहिष्णुता केविषय को भी शामिल करना चाहिए. धार्मिक नेताओं को हमारे विभिन्न त्योहारों मेंमिलना चाहिए, लेकिन इन सरल सिद्धांतोंका पालन करते हुए पुरुषों और महिलाओं दोनों के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघननहीं किया जाना चाहिए.

किसी भी शैक्षिक कार्य या सामाजिक स्थिति से सवाल नहीं कियाजाना चाहिए. तब हम लोगों की आंखों पर लेंस लगा सकते हैं, खासकर धार्मिक सहिष्णुता पर.