आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
दिल्ली की बदतर होती जा रही वायु गुणवत्ता के कारण प्रतिष्ठित लाल किला लगातार और तीव्र गति से क्षतिग्रस्त हो रहा है। एक हालिया अध्ययन में यह दावा किया गया है.
एक नए भारतीय-इतालवी अध्ययन के अनुसार, 17वीं सदी के इस स्मारक की लाल बलुआ पत्थर की दीवारों पर प्रदूषकों की काली परतें लगातार जम रही हैं, जिससे इसकी संरचना और सौंदर्य को खतरा उत्पन्न हो गया है.
अध्ययन का शीर्षक है-‘‘एक सांस्कृतिक विरासत भवन पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए लाल बलुआ पत्थर और काली परत के लक्षण का वर्णन: लाल किला, दिल्ली, भारत.’’
यह अध्यन इस बात की पहली व्यापक वैज्ञानिक जांच है कि शहरी वायु प्रदूषण 1639 और 1648 के बीच सम्राट शाहजहां द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक स्मारक को कैसे प्रभावित कर रहा है.
भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इटली के विदेश मंत्रालय के बीच सहयोग के तहत यह शोध इस वर्ष भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-रुड़की, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान-कानपुर, वेनिस के का’ फोस्कारी विश्वविद्यालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था.
टीम ने जफर महल सहित लाल किला परिसर के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्रित बलुआ पत्थर और काली परत के नमूनों का विश्लेषण किया.
निष्कर्षों से पता चला कि काली परतों की मोटाई आवासीय क्षेत्रों में लगभग 0.05 मिलीमीटर के पतले जमाव से लेकर उच्च-यातायात क्षेत्रों की दीवारों पर 0.5 मिलीमीटर की मोटी परतों तक भिन्न-भिन्न थी.
ये मोटी परतें पत्थर की सतह से मजबूती से जुड़ी होती हैं, जिससे सतह के उखड़ने और जटिल नक्काशी के नष्ट होने का खतरा रहता है.
शोधकर्ताओं के अनुसार, काली परतों में मुख्य रूप से जिप्सम, बेसानाइट, वेडेलाइट और सीसा, जस्ता, क्रोमियम और तांबा जैसी भारी धातुओं की थोड़ी मात्रा होती है। ये प्रदूषक बलुआ पत्थर में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते, बल्कि बाहरी स्रोतों से जमा होते हैं, जिसके लिए वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, सीमेंट कारखाने और शहर की निर्माण गतिविधियां जिम्मेदार हैं.