अब्दुल सलाम जौहर : लाख की चूड़ियों से बने मनिहार समुदाय की प्रेरणा

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 15-09-2025
Abdul Salam Johar: The pride of the Manihar community made of lac bangles
Abdul Salam Johar: The pride of the Manihar community made of lac bangles

 

dयपुर की ऐतिहासिक गलियों में, जहाँ हर कोने पर कला और संस्कृति की गंध है, वहाँ अब्दुल सलाम जौहर नाम के एक शख्स ने सिर्फ़ लाखों की चूड़ियाँ नहीं बनाईं, बल्कि लाखों जिंदगियों में उम्मीद और रोशनी भी भर दी. उनकी कहानी सिर्फ़ एक व्यापारी की नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान की है, जिसने अपनी परंपरा, अपने समुदाय और अपने जुनून को एक साथ मिलाकर एक ऐसा रास्ता बनाया, जो दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया.जयपुर से आवाज द वाॅयस के प्रतिनिधि फरहान इज़राइली ने द चेंज मेकर्स सीरिज के लिए अब्दुल सलाम जौहर पर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है.

अब्दुल सलाम जौहर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहाँ पीढ़ियों से लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम होता था. यह काम उनके खून में था, लेकिन उनके सपने सिर्फ़ चूड़ियाँ बनाने तक सीमित नहीं थे. वे अपने समुदाय, मनिहार समुदाय, की तरक्की का सपना देखते थे.

dउनके दादा हाफ़िज़ मोहम्मद इस्माइल ने परिवार को धर्म और व्यापार दोनों की अहमियत सिखाई थी. इसी नींव पर खड़े होकर, अब्दुल सलाम ने अपने पिता हाजी अब्दुल अज़ीज़ और माँ हज्जन क़मर जहाँ के संघर्षों से यह सीखा कि सच्ची मेहनत, लगन और समाज सेवा ही जीवन का असली मंत्र है.

उनकी यात्रा जयपुर के त्रिपोलिया बाज़ार में स्थित एक छोटी सी पुश्तैनी दुकान 'इंडियन कंगन एंड कलर स्टोर' से शुरू हुई. इस दुकान से शुरू हुआ उनका सफ़र आज 'जौहर डिज़ाइन', 'जौहर किंग' और 'इंडियन क्राफ्ट्स' जैसे बड़े ब्रांडों तक पहुँच गया है.

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dउनके बनाए गए उत्पादों की ख़ूबसूरती ने न सिर्फ़ भारत के बाज़ारों में, बल्कि अमेरिका, इटली, फ़्रांस, जर्मनी और दुबई जैसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी अपनी जगह बनाई. उनकी चूड़ियों की मांग इतनी ज़्यादा थी कि कई बार ग्राहकों को इंतज़ार करना पड़ता था.

fलेकिन अब्दुल सलाम सिर्फ़ एक कुशल कारीगर नहीं थे; वे एक दूरदर्शी भी थे.  उन्होंने समझ लिया था कि केवल चूड़ियाँ बनाकर आगे नहीं बढ़ा जा सकता. इसलिए, उन्होंने लाख, पीतल, लकड़ी, नीले मिट्टी के बर्तन और हस्तनिर्मित कागज़ जैसी अन्य पारंपरिक कलाओं को भी अपने काम में शामिल किया.

इस नवाचार ने उनके उत्पादों को एक नई पहचान दी और उन्हें क्रिसमस बॉल्स, सांता क्लॉज़, ज्वेलरी बॉक्स, कैंडल स्टैंड और फोटो फ्रेम जैसे उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित किया, जिनकी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बहुत मांग थी.

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अब्दुल सलाम जौहर का एक खास उत्पाद, जिसे सजावट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

अब्दुल सलाम जानते थे कि यह सफलता तभी कायम रहेगी जब इसके पीछे के कारीगरों को सम्मान, सुरक्षा और उचित वेतन मिले. लाख के गर्म काम से कारीगरों के जलने की घटनाएं आम थीं, लेकिन उन्होंने उन्हें न केवल बेहतर प्रशिक्षण दिया, बल्कि उन्हें बेहतर मज़दूरी भी दी.

उनके प्रयासों से यह कला सीकर, झुंझुनू, फतेहपुर और शेखावाटी के गाँवों तक फैल गई, जिससे हजारों परिवारों को रोज़गार मिला. उनकी यह पहल सिर्फ़ व्यापार नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति थी.

हालांकि, 2000 के दशक में, जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार चीन, ताइवान और थाईलैंड के सस्ते और टिकाऊ प्लास्टिक उत्पादों से भर गए, तो जौहर जैसे उद्यमियों के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई. इन नकली उत्पादों में न तो परंपरा की आत्मा थी और न ही कारीगरों का पसीना.

भारतीय बाज़ार इन सस्ते उत्पादों की ओर झुक गया, जिससे लाख के पारंपरिक कारोबार को भारी नुक्सान हुआ. कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और सरकारी सहायता की कमी ने कई कारीगरों को यह पेशा छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
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एक कार्यक्रम में अशोक गहलौत को सम्मानित करते हुंए अब्दुल सलाम

इन कठिन परिस्थितियों में भी, अब्दुल सलाम का समाज सेवा का संकल्प कभी कमज़ोर नहीं हुआ. उन्होंने अपने समुदाय में फैली कुरीतियों, जैसे मृत्युभोज और अनावश्यक दहेज प्रथा, के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. उन्होंने लोगों को यह समझाया कि इन कुरीतियों से मुक्ति ही सच्ची प्रगति है.

dउनके प्रयासों से समाज की सोच बदली और नई पीढ़ी को एक नई दिशा मिली. वे अच्छी तरह समझते थे कि किसी समुदाय की प्रगति सिर्फ़ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक भी होती है.

उनके परिश्रम और नवाचार को देश और विदेश में बहुत सराहना मिली. उन्हें भारत गौरव पुरस्कार, इंदिरा गांधी पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय कोहिनूर पुरस्कार और गांधी शांति पुरस्कार जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया. ये पुरस्कार उनकी वैश्विक ख्याति और उनकी निस्वार्थ सेवा का प्रमाण हैं.
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फिर भी, उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि उन्हें राजस्थान सरकार से कोई सहयोग नहीं मिला. उन्होंने लाख की कला को बचाने के लिए कई सुझाव दिए, जैसे कारीगरों को कम ब्याज पर ऋण, कच्चे माल पर छूट और बाज़ार की सुलभता, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ.

वे एक समर्पित हस्तशिल्प बोर्ड की स्थापना का सपना देखते हैं, जहाँ कारीगरों को एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएँ मिलें.अब्दुल सलाम जौहर का मानना ​​है कि लाख की कला सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक आत्मा है.

इसे बचाना सिर्फ़ सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। उनके लिए, यह काम सिर्फ़ मुनाफे का ज़रिया नहीं, बल्कि कला और परंपरा के प्रति सेवा और सम्मान का भी माध्यम है.

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लाख का उत्पाद तैयार करने में लगती है कड़ी मेहनत और ढेर सारा हुनर

उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची सफलता और संतुष्टि केवल पैसे कमाने में नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में है. उनका सपना है कि आने वाली पीढ़ी इस कला को गर्व के साथ आगे बढ़ाए और इसे वैश्विक स्तर पर पुनः स्थापित करे.