आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए सोमवार को कहा कि नये संशोधित वक्फ कानून में ‘‘वक्फ बाय यूजर’’ प्रावधान को हटाना प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं था और सरकार द्वारा वक्फ की जमीनें हड़प लेने संबंधी दलीलें ‘अमान्य’ है.
‘वक्फ बाय यूजर’ से आशय ऐसी संपत्ति से है, जहां किसी संपत्ति को औपचारिक दस्तावेज के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो.
यह प्रावधान नये कानून को चुनौती देने में विवाद का मुख्य कारण बन गया.
शीर्ष अदालत ने सोमवार को एक अंतरिम आदेश में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी, हालांकि उसने कानून पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई और कई प्रावधानों को बरकरार रखा, जिनमें वक्फों के पंजीकरण को अनिवार्य करने के अलावा ‘वक्फ बाय यूजर’ को हटाने का प्रावधान भी शामिल है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र ने दुरुपयोग को देखते हुए ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटा दिया और प्रत्याशित रूप से यह ‘‘मनमाना’’ नहीं था.
यह अंतरिम आदेश प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पारित किया.
जिन प्रावधानों पर रोक लगाई गई थी, उनमें एक उपबंध शामिल था जिसके अनुसार पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वालों के लिए ही वक्फ बनाना अनिवार्य था.
संशोधित कानून का विरोध करने वालों की एक प्रमुख दलील भविष्य में ‘‘वक्फ बाय यूजर’’ को समाप्त करने की थी.
प्रधान न्यायाधीश की ओर से लिखे गए फैसले में कहा गया है, ‘‘यदि 2025 में विधायिका को यह पता चलता है कि ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा के कारण, बड़ी संख्या में सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया है और इस खतरे को रोकने के लिए, वह उक्त प्रावधान को हटाने के लिए कदम उठाती है, तो उक्त संशोधन को प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं कहा जा सकता.
पीठ ने कहा कि विधायी मंशा वक्फ प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकना और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना है.
वर्ष 1995 के कानून के तहत, ‘वक्फ बाय यूजर’ किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती के रूप में मान्यता देता था, यदि उसका उपयोग लंबे समय से ऐसे उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा हो, भले ही उसके मालिक ने कोई औपचारिक दस्तावेज न दिया हो.
कुल 128 पृष्ठों के आदेश में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड द्वारा हजारों एकड़ सरकारी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित करने जैसे उदाहरणों का हवाला दिया गया, जिसे बाद में शीर्ष अदालत ने रद्द कर दिया था.
आदेश में कहा गया कि इस तरह के ‘‘दुरुपयोग’’ को देखते हुए, संसद को इस प्रावधान को भविष्य में समाप्त करने का पूरा अधिकार है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इसलिए, उक्त प्रावधान पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा। इसलिए, याचिकाकर्ताओं की यह दलील कि वक्फ में निहित भूमि सरकार द्वारा हड़प ली जाएगी, प्रथम दृष्टया बेबुनियाद है.’
संशोधित कानून के अनुसार, सभी वक्फों को एक औपचारिक विलेख द्वारा समर्थित होना चाहिए और वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत होना चाहिए.
आदेश में कहा गया है कि पंजीकरण कोई नयी आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह पिछले कानूनों का भी एक हिस्सा है.
आदेश में कहा गया है, ‘‘अगर 30 वर्षों तक मुतवल्लियों (वक्फ के प्रबंधकों) ने पंजीकरण के लिए आवेदन न करने का विकल्प चुना था, तो उन्हें यह कहते हुए नहीं सुना जा सकता कि अब आवेदन के साथ वक्फ विलेख की एक प्रति संलग्न करने का प्रावधान मनमाना है.’’
यह दलील दी गयी थी कि सदियों से ‘इस्तेमाल के जरिये’ पहचानी जाने वाली पुरानी मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों और अन्य धार्मिक संपत्तियों को राज्य द्वारा अधिगृहीत किए जाने का खतरा होगा.
केंद्र के इस आश्वासन पर कि यह कानून केवल भावी रूप से लागू होगा, पीठ ने इस आशंका को खारिज कर दिया.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ संबंधी प्रावधान में संशोधन भावी प्रकृति का था और आठ अप्रैल 2025 तक पंजीकृत सभी वक्फ संरक्षित माने जाने चाहिए, सिवाय उन मामलों के, जिनमें कोई वक्फ संपत्ति आंशिक या पूर्ण रूप से विवाद में थी या सरकारी संपत्ति थी.
केंद्र ने कानून के 2013 के संशोधन के बाद वक्फ भूमि के रूप में 20 लाख एकड़ की वृद्धि का दावा किया है और निजी एवं सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए वक्फ प्रावधानों के ‘दुरुपयोग’ को चिह्नित किया है.
एक प्रारंभिक हलफनामे में, केंद्र ने इसे ‘‘वास्तव में चौंकाने वाला’’ बताया कि 2013 में लाये गए संशोधन के बाद, वक्फ क्षेत्र में 116 प्रतिशत की वृद्धि हुई.