आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के कुछ अहम और विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने के फैसले का मुस्लिम संगठनों ने जोरदार स्वागत किया है. यह अधिनियम देश के मुस्लिम समुदाय में विवादों का कारण बना हुआ है और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली प्रमुख संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने इस फैसले को ‘काले कानून’ पर मिली राहत बताया है और कहा है कि उनका संगठन इस अधिनियम को पूरी तरह समाप्त करने तक कानूनी तथा लोकतांत्रिक लड़ाई जारी रखेगा।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "जमीयत उलेमा-ए-हिंद वक्फ कानून की तीन विवादित धाराओं पर मिली अंतरिम राहत का स्वागत करती है। हम इस काले कानून के खत्म होने तक अपनी जद्दोजहद जारी रखेंगे।"
वहीं, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए कहा, "हमें अपनी अदालतों पर पूरा भरोसा है और न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है।" जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम) और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) जैसे मुस्लिम संगठनों ने इस फैसले को वक्फ संपत्तियों पर हो रहे नाजायज कब्जों को रोकने के लिए अहम कदम बताया है। इन संगठनों के अनुसार, इस फैसले से वक्फ की जमीनों और संपत्तियों की सुरक्षा बेहतर हो सकेगी।
एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से वक्फ संशोधन अधिनियम पर रोक चाहता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह कदम स्वागत योग्य है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अंतिम निर्णय आने पर मुस्लिम समुदाय को पूरी राहत मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के कई विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाई है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि वक्फ के लिए संपत्ति केवल वे लोग दे सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हों। अदालत ने हालांकि पूरे कानून पर स्थगन से इनकार कर दिया है, लेकिन इस तरह की धाराओं पर रोक लगाना मुस्लिम संगठनों के लिए बड़ी राहत है।
अदालत ने वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए जिलाधिकारी को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी है, जो एक संवेदनशील मामला था। इस पर खालिद रशीद ने कहा कि अदालत ने बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति केवल मुस्लिम समुदाय के सदस्यों में करने का निर्देश दिया है, जो एक सकारात्मक संकेत है, हालांकि गैर-मुस्लिम सदस्यों के मुद्दे पर अभी भी विवाद बना हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की भागीदारी के विषय पर भी स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में कुल 20 सदस्यों में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते, जबकि राज्य वक्फ बोर्डों में 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे। इस निर्णय से बोर्डों के गठन और उनकी कार्यप्रणाली पर संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है।
इस फैसले पर सरकार और अन्य धर्मगुरुओं ने भी प्रतिक्रिया दी है। उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार मुसलमानों के उत्थान और पसमांदा समुदाय के विकास के लिए गंभीरता से काम कर रही है। उनका मानना है कि यह अधिनियम मुसलमानों के विकास के नए रास्ते खोलेगा और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा।
मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने इस फैसले को "बहुत अच्छा" और "संतुलित" बताया। उन्होंने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, "मैं इस फैसले का स्वागत करता हूँ। इससे उम्मीद जगी है कि वक्फ की जमीन पर अवैध कब्जा हटेगा और उस जमीन पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, मस्जिद, मदरसे और अनाथालय जैसे सामाजिक संस्थान बनाए जा सकेंगे।"
सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ में प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। उन्होंने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि कानून को आमतौर पर संवैधानिक माना जाता है और केवल दुर्लभतम परिस्थितियों में ही उसका परीक्षण किया जा सकता है। इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि कोर्ट ने विवादित प्रावधानों को लेकर संवैधानिक जांच का रास्ता खुला रखा है, लेकिन फिलहाल इन प्रावधानों को लागू करने से रोक लगाई गई है।
इस फैसले से मुस्लिम समुदाय में राहत की भावना व्याप्त है क्योंकि वक्फ संपत्तियों पर कब्जा और उनका दुरुपयोग लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। मुस्लिम संगठनों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से अब वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा बेहतर होगी और इनके दुरुपयोग को रोका जा सकेगा।
वहीं, सरकार ने भी मुस्लिम समाज के विकास के लिए इस कानून को आवश्यक बताते हुए कहा था कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह मामला न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ेगा, जिससे मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा और सुधार की उम्मीदें बनी रहेंगी।
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का यह कदम मुस्लिम समुदाय के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है, जिसने विवादित प्रावधानों पर रोक लगाकर संतुलन बनाये रखने की कोशिश की है और साथ ही भविष्य में इस अधिनियम के संवैधानिक पक्षों की गहन समीक्षा का रास्ता भी खोल दिया है।