मुस्लिम महिलाओं में समान संपत्ति बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कहा गया-शरियत कानून में होता है भेदभाव

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-03-2023
मुस्लिम महिलाओं में समान संपत्ति बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कहा गया-शरियत कानून में होता है भेदभाव
मुस्लिम महिलाओं में समान संपत्ति बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कहा गया-शरियत कानून में होता है भेदभाव

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया, जिसने दावा किया है कि शरीयत कानून का प्रावधान पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को समान हिस्सा नहीं देना भेदभावपूर्ण और अधिकारों का उल्लंघन है. जबकि संविधान के तहत इसकी गारंटी है.

न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ बुशरा अली द्वारा दायर केरल उच्च न्यायालय के 6 जनवरी के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी. उन्होंने दावा किया कि यह उनकी शिकायत है कि एक बेटी होने के नाते. शरीयत कानून के अनुसार, उनके पुरुष समकक्षों के मुकाबले उन्हें केवल आधे शेयर आवंटित किए गए हैं. 
 
पीठ ने याचिकाकर्ता के 11 भाई-बहनों को नोटिस जारी किया जिसमें चार बहनें शामिल हैं.अधिवक्ता बीजो मैथ्यू जॉय के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि बुशरा संपत्ति बटवारे में एक डिक्री धारक हैं. इसके तहत 19 जनवरी, 1995 के एक प्रारंभिक डिक्री के अनुसार, उन्हें 1.44 एकड़ वाली अनुसूचित संपत्ति के 7.152 शेयर आवंटित किए गए हैं.उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत यथास्थिति आदेश दे.
 
बुशरा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित अंतिम डिक्री से व्यथित है, जिसमें याचिकाकर्ता को अधिवक्ता आयुक्त की योजना के प्लॉट डी के रूप में चिह्नित संपत्ति का केवल 4.82 सेंट आवंटित किया गया है.
 
बुशरा ने कहा कि उनके पिता की मृत्यु बिना वसीयत किए हो गई. वह अपने पीछे पत्नी, सात बेटे और पांच बेटियां छोड़ गए हैं.उन्होंने अपनी दलील में कहा, “यह याचिकाकर्ता की शिकायत है कि संविधान की गारंटी के बावजूद मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है.
 
भले ही 19 जनवरी, 1995 की प्रारंभिक डिक्री को चुनौती नहीं दी गई है. याचिकाकर्ता ने निवेदन किया है कि शरीयत कानून के अनुसार संपत्ति का विभाजन भेदभावपूर्ण है. इसे अलग रखा जाना चाहिए. मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2, एक पुरुष की तुलना में एक महिला को समान हिस्सा नहीं देने की सीमा तक, संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है.
 
यह संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार शून्य है. ”याचिका में कहा गया है कि इसी तरह का एक मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है.तीन तलाक मामले में 2017 के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1937 का अधिनियम एक पूर्व-संवैधानिक कानून है जो सीधे संविधान के अनुच्छेद 13 (1) के अंतर्गत आएगा.
 
अनुच्छेद 13(1) में कहा गया है, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के क्षेत्र में लागू सभी कानून, जहां तक वे इस भाग के प्रावधानों के साथ असंगत हैं, इस तरह की असंगति की सीमा तक शून्य होंगे..बुशरा ने कहा कि उन्होंने ट्रायल कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट और योजना दिनांक 2022 के खिलाफ आपत्तियां उठाईं, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया.
 
अधिवक्ता आयुक्त की योजना को स्वीकार कर लिया गया और उसके आधार पर याचिकाकर्ता को 4.82 सेंट की संपत्ति आवंटित की गई.उन्होंने कहा, उच्च न्यायालय ने प्रथम अपील में, यहां तक कि रिकॉर्ड को देखे बिना और आयोग की रिपोर्ट पर मेरी उपरोक्त आपत्तियों पर विचार किए बिना अपील को गलत तरीके से खारिज कर दिया.
 
बुशरा ने अधिवक्ता आयुक्त की 25 जुलाई, 2022 की रिपोर्ट के अनुसार अपने भाई-बहनों को अनुसूचित संपत्ति के 80.44 सेंट को अलग करने से रोकने के लिए शीर्ष अदालत से अंतरिम आदेश मांगा है.