- लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की है मिसाल है यह मस्जिद
मुकुंद मिश्रा / लखनऊ
गंगा-जमुनी तहजीब का गवाह और एकता व भाईचारे के लिए मशहूर लखनऊ का अपना एक सुनहरा इतिहास रहा है. यह न केवल खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों के लिए, बल्कि मस्जिदों के लिए भी जाना जाता है. शहर में कई ऐसी मस्जिदें हैं, जो 1857 के स्वतंत्रा संग्राम की दास्तां सुनाती हैं. वहीं, कई मस्जिदें महिलाओं के हौसले से बनवाई गईं.
पड़ाइन की मस्जिद आपसी सौहार्द की मिसाल पेश करती है. अमीनाबाद टैक्सी स्टैंड के सामने स्थित यह मस्जिद करीब 470 साल पुरानी है.
खास बात यह है कि इसको हिंदू बेगम ने बनवाया था और यह लखनऊ में बनने वाली पहली मस्जिद थी.
मस्जिद के मुतवल्ली असगर हुसैन हैदरी कहते हैं, हम पुश्तों से इस मस्जिद की देखरेख कर रहे हैं. इसके इतिहास के बारे में अपने पुरखों से सुना है कि इसे बादशाह बरहानुल मुल्क की बेगम खदीजा खानम ने बनवाया था, जो बेहद खूबसूरत पंडित महिला थीं.
हैदरी बताते हैं कि एक बार बादशाह जंग से लौट रहे थे और उन्होंने अपना पड़ाव इसी क्षेत्र में डाला. खदीजा खानम ने बादशाह को बकरी का दूध पेश किया. बादशाह उनकी खूबसूरती को देखकर उन पर फिदा हो गए और उनसे शादी कर ली. शादी उन्होंने मजहब बदलकर की थी. एक बार खदीजा खानम ने बादशाह से मस्जिद बनवाने की ख्वाहिश जाहिर की जहां वह नमाज पढ़ सकें. तब बादशाह ने इस मस्जिद को बनवाया. चूंकि, बेगम पंडित थीं, इसलिए लोग इसे पंडाइन की मस्जिद कहने लगे.
मस्जिद के एक हिस्से में मौला अली और उनके बेटों इमाम हसन, इमाम हुसैन, मौला अब्बास और आले रसूल का दरबार (इमामबाड़ा) बना है. इमामबाड़े की तरफ महिलाएं नमाज पढ़ती हैं.
रमजान भर यहां रोज शाम को इफ्तार कराया जाता है. 18 रमजान को मौला अली का ताबूत उठाया जाता है और 22 रमजान को छह दिन की नमाज व अमाल होते हैं और रोजा रखने के लिए सेहरी खिलाई जाती है. इस दिन यहां बिरयानी और जर्दा बांटा जाता है.