पाकिस्तान का छद्म युद्ध: आठ दशक, सैकड़ों हमले, भारत की अडिग लड़ाई

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-11-2025
Pakistan's proxy war: Eight decades, hundreds of attacks, India's unwavering fight
Pakistan's proxy war: Eight decades, hundreds of attacks, India's unwavering fight

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

26/11 के मुंबई हमले मानवता पर किए गए सबसे भयावह आतंकी प्रहारों में से एक हैं। इस बरसी पर नैटस्ट्रैेट की विस्तृत रिपोर्ट 1947 से 2025 तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के पूरे इतिहास को सामने लाती है। डॉ. स्वाति अरुण के संपादन में तैयार यह दस्तावेज़ दिखाता है कि पाकिस्तान की सैन्य और ख़ुफ़िया नीति ने कैसे दशकों तक भारत की सुरक्षा, स्थिरता और सामाजिक ताने-बाने पर लगातार हमले किए।

इस साजिश की शुरुआत 22 अक्टूबर 1947 से होती है, जब पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों और सैन्यकर्मियों ने जम्मू-कश्मीर पर संगठित तरीके से धावा बोला। मेजर जनरल अकबर ख़ान की किताब से यह साफ होता है कि यह हमला ‘कबायली विद्रोह’ नहीं, बल्कि पूरी तरह योजनाबद्ध सैन्य कार्रवाई थी। मुजफ्फराबाद, उरी और बारामूला में बड़े पैमाने पर नरसंहार और लूटपाट के बाद हालात इतने बिगड़ गए कि महाराजा हरि सिंह को भारत में विलय करना पड़ा। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुँची और संघर्ष के अंत में कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया।

1960 के दशक में पाकिस्तान ने भारत को भीतर से अस्थिर करने की नई रणनीति अपनाई। आईएसआई ने मिज़ोरम, नागालैंड और पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में विद्रोही समूहों को शरण, हथियार और प्रशिक्षण देकर उग्रवाद को हवा दी। 1966 में मिज़ो नेशनल फ्रंट के विद्रोह के दौरान पहली बार भारतीय वायुसेना को किसी आंतरिक ऑपरेशन में हस्तक्षेप करना पड़ा। संवाद और समझौतों के माध्यम से भारत ने अंततः हालात को काबू किया।

इसके बाद 1965 में पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ शुरू किया, जिसमें हज़ारों सैनिकों को आम नागरिकों का वेश देकर कश्मीर भेजा गया ताकि वहां विद्रोह भड़काया जा सके। स्थानीय जनता के समर्थन न मिलने से योजना विफल हुई और यह संघर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध में बदल गया। संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से युद्धविराम तो हुआ, लेकिन पाकिस्तान की रणनीति भारत को भीतर से कमजोर करने की दिशा में और आक्रामक होती गई।

1971 में पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान’ के तहत भारत के कई हवाई अड्डों पर हमला किया। इसका उद्देश्य भारत को पूर्वी पाकिस्तान में हस्तक्षेप से रोकना था, पर भारतीय सेना की संगठित और त्वरित कार्रवाई ने पाकिस्तान को निर्णायक हार दी। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के साथ बांग्लादेश का जन्म हुआ।

इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी पारंपरिक सैन्य कमजोरी को समझते हुए आतंकवाद को एक औजार के रूप में उपयोग करना शुरू किया। 1971 में एयर इंडिया की फ्लाइट ‘गंगा’ का अपहरण, 1984 में भारतीय राजनयिक रविंद्र म्हात्रे की हत्या, खालिस्तानी आतंकवाद को खुला समर्थन और अफ़ग़ान युद्ध के दौरान जिहादी ढांचे को मज़बूत करने में अमेरिकी अनदेखी—इन सबने पाकिस्तान के छद्म युद्ध को और ताक़त दी।

1990 के दशक में पाकिस्तान ने व्यवस्थित रूप से जिहादी संगठनों—जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन—को प्रशिक्षण, हथियार और सुरक्षित कैंप मुहैया कराए। इन संगठनों ने न सिर्फ कश्मीर में आतंक का नेटवर्क बनाया, बल्कि भारत के कई शहरों में बड़े हमलों को अंजाम दिया।

इसी रणनीति का चरम था 26/11 का मुंबई हमला—एक वैश्विक अपराध। लश्कर-ए-तैयबा के दस आतंकवादियों ने 26 नवंबर 2008 को मुंबई को निशाना बनाया और 166 निर्दोष लोगों की जान ले ली। डेविड हेडली की स्वीकारोक्ति और अंतरराष्ट्रीय जांचों ने पाकिस्तान की सीधे तौर पर संलिप्तता को उजागर किया, जिससे भारत-पाक वार्ता लंबे समय के लिए ठहर गई।

2010 से 2025 के बीच आतंकवाद के स्वरूप में बदलाव आया, लेकिन पाकिस्तान-आधारित संगठनों की भूमिका बरकरार रही। पुणे की जर्मन बेकरी विस्फोट, पठानकोट एयरबेस हमला, उरी हमला और पुलवामा ब्लास्ट—इन सभी घटनाओं ने भारत को बार-बार झकझोरा। पाकिस्तान के FATF की ग्रे लिस्ट में आने के बावजूद उसके जिहादी ढांचे में कोई बुनियादी सुधार नहीं देखा गया।

1947 से 2025 तक की इस लंबी और दर्दनाक यात्रा से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की सरकारी और सैन्य नीतियों में आतंकवाद एक केंद्रीय भूमिका निभाता रहा है। भारत ने कूटनीति, सैन्य जवाबी कार्रवाई, खुफिया सुधार और वैश्विक दबाव का उपयोग कर इस चुनौती का सामना किया। यह आठ दशक का इतिहास याद दिलाता है कि आतंकवाद केवल सीमाएं नहीं तोड़ता—वह मानवता और सभ्यता को भी गहराई तक घायल करता है।