नई दिल्ली
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत तैयार की गई नई सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से आठवीं कक्षा के छात्र मुगल काल का एक बदला हुआ स्वरूप पढ़ेंगे। अब तक इतिहास की किताबों में मुगल शासक अकबर को केवल सहिष्णु और महान बताने पर जोर दिया जाता था, लेकिन नई किताब में उसकी क्रूरता का भी उल्लेख होगा।
एनसीईआरटी द्वारा तैयार की गई इस नई पुस्तक में मुगल शासनकाल की पुनर्समीक्षा की गई है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि अकबर का शासन केवल उदारता का प्रतीक नहीं था, बल्कि उसमें क्रूरता के भी कई उदाहरण मिलते हैं। पुस्तक में 1568 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान हुए नरसंहार का विस्तार से वर्णन है, जिसमें अकबर के आदेश पर लगभग 30 हजार हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी और महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाया गया था।
पाठ्यपुस्तक में अकबर के विजय संदेश का उद्धरण भी दिया गया है, जिसमें वह कहता है—
“हमने काफिरों के कई किलों और कस्बों पर कब्जा कर लिया है और वहां इस्लाम की स्थापना की है। अपनी तलवार की मदद से हमने उनके मन से कुफ्र के निशान मिटा दिए और पूरे हिंदुस्तान में मंदिरों को नष्ट किया।”
औरंगजेब की कट्टरता पर भी फोकस
पुस्तक में औरंगजेब को धार्मिक रूप से कट्टर शासक बताया गया है। इसमें उसके गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर लगाने, हिंदू मंदिरों को तोड़ने और धार्मिक यात्राओं पर रोक लगाने जैसे फैसलों का उल्लेख किया गया है।
इतिहास की नई व्याख्या
यह बदलाव केवल आठवीं कक्षा की पुस्तक तक सीमित नहीं रहेगा। आगामी सत्र में नौवीं से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों में भी इतिहास से जुड़े ऐसे तथ्यों को शामिल किया जाएगा जिन्हें पहले नजरअंदाज किया गया था। माना जा रहा है कि इन पुस्तकों में उन योद्धाओं और नायकों की गाथाएं भी शामिल होंगी जिन्हें अब तक इतिहास में पर्याप्त स्थान नहीं मिला।
नई पाठ्यपुस्तक 2025-26 के शैक्षणिक सत्र से लागू होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव मुगल इतिहास के चित्रण में एक बड़ा परिवर्तन माना जाएगा, क्योंकि पहली बार अकबर और औरंगजेब जैसे शासकों के शासनकाल को सहिष्णुता और क्रूरता दोनों के संदर्भ में पढ़ाया जाएगा।