कश्मीर में कोई भूखा नहीं सोताः पंकज पासवान

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-10-2021
कश्मीर में कोई भूखा नहीं सोताः पंकज पासवान
कश्मीर में कोई भूखा नहीं सोताः पंकज पासवान

 

श्रीनगर. हमारा साथी मारा गया, हम डरे हुए हैं, लेकिन हमने कभी कश्मीर से लौटने के बारे में नहीं सोचा. क्योंकि हमारे चाहने वाले बिहार से ज्यादा कश्मीर में हैं. यहां के लोग किसी को भी भूखा सोने नहीं देते. इसलिए हम यहां हैं. यह टिप्पणी भागलपुर निवासी 57वर्षीय वरिंदर पासवान के एक सहयोगी ने की है, जिसे पिछले हफ्ते श्रीनगर में लाल बाजार इलाके में आतंकवादियों ने गोली मार दी थी, जो गोल गप्पा यानि पानी पूरी का स्टॉल लगाता था.

वरिंदर का साथी पांडा ठाकुर उसके लिए एक मजदूर के रूप में काम करता है, जो उसके साथ एक ही कमरे में रहता था और कभी-कभी एक भेलपुरी स्टॉल लगाता है.

दैनिक भास्कर के एक संवाददाता ने उनसे पूछा कि वह अपने घर से इतनी दूर क्यों रहते हैं. तो पांडा कहते हैं, “कश्मीर का मौसम हमेशा सुहावना होता है, इसलिए हम यहां रहने का आनंद लेते हैं. अन्य शहरों की तरह कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. रहने की लागत अधिक नहीं है और हम अच्छा पैसा कमाते हैं.”

जब पांडा से पूछा गया कि क्या वह अपने साथी की हत्या के बाद बिहार लौटने की सोच रहे हैं? उन्होंने कहा, “वरिंदर की हत्या के बाद हम डरे हुए हैं, लेकिन हमने वापस जाने के बारे में नहीं सोच रहे हैं. यहां के कई लोगों ने आकर हमें हिम्मत दी. मुस्लिम समुदाय के कई लोग आए और बोले- डरो मत, हम आपके साथ हैं.”

बिहार के भागलपुर जिले के 57 वर्षीय वरिंदर पासवान श्रीनगर में गोलगप्पे की रेहड़ी चलाकर अपना जीवनयापन करते थे. वह रोजाना करीब 700-800 रुपये कमाते थे. वह दो साल से कश्मीर में रोजी-रोटी कमा रहे थे. 5 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे वरिंदर पानी पूरी से भरी गाड़ी लेकर अपने घर से निकले, लेकिन वापस नहीं लौटे. आतंकियों ने उसे मार गिराया. घटना श्रीनगर के लाल बाजार की है.

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केंद्र सरकार के कर्मचारियों को छोड़कर, कश्मीर अन्य राज्यों के लगभग 3.3 मिलियन लोगों का घर है. नौकरी चाहने वाले यहां विभिन्न प्रकार की मजदूरी के लिए काम करते हैं. शहरों में बढ़ई, आर्किटेक्ट, बिल्डर, रेहड़ी-पटरी वाले, घरेलू कामगार काम करते हैं. वहीं कश्मीर के गांवों में बड़ी संख्या में बिहारी मजदूर कृषि कार्य में लगे हुए हैं. इन मजदूरों ने सेब की कटाई करते हुए केसर की खेती करना भी सीख लिया है.

कभी कोई डर नहीं था

बांका निवासी पंकज पासवान भी यहां पानी बेचते हैं. वरिंदर उनके साथ रहता था. पंकज 27साल से श्रीनगर में रह रहे हैं. पहले उनकी पत्नी और बच्चे भी साथ रहते थे, लेकिन आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद बिगड़ते हालात को देखते हुए उन्होंने अपने परिवार को घर भेज दिया. पंकज का कहना है कि डर का माहौल कभी नहीं था. कोई धमकी नहीं मिली थी. यहां आसपास के सभी लोग बहुत मददगार थे. लॉकडाउन के समय स्थानीय लोगों ने बैठकर हमें 4महीने तक खाना खिलाया. उस समय वरिंदर भी यहीं थे. लोग आटा, चावल, सब्जी देने आते थे.

यहां की सरकार ने दिए 6 लाख, बिहार के नेताओं ने पूछा भी नहीं

घटना के दिन को याद करते हुए पंकज कहते हैं कि कुछ लोग कह रहे थे कि गोलगप्पे वाले को मार दिया गया, लेकिन हमें विश्वास नहीं हो रहा था. जब हमारे मकान मालिक ने फेसबुक पर एक तस्वीर पोस्ट की, तो हमें पता चला कि वरिंदर को मार दिया गया है.

इसके बाद हम अस्पताल गए. अधिकारियों ने कहा, “यदि आप शव को बिहार ले जाना चाहते हैं, तो हमारे पास सिस्टम तैयार है, लेकिन हमारे पास लोग नहीं थे और समय कम था.”

तो हमने वरिंदर के परिवार से पूछा कि क्या किया जाए, तो घरवालों ने कहा कि वरिंदर का अंतिम संस्कार कश्मीर में ही किया जाए. जम्मू-कश्मीर सरकार ने वरिंदर के परिवार को 600,000रुपये की मदद की, लेकिन बिहार के किसी नेता ने पूछा तक नहीं. वरिंदर के परिवार में उनकी पत्नी और 6बच्चे हैं. वह दिन-रात अपनी बेटियों की शादी के बारे में सोचता रहता था.

कश्मीर के बारे में सोच गलत है

कश्मीर में लोग बहुत कट्टर हैं, धार्मिक तनाव अधिक है, क्या वास्तव में ऐसा है? इस बारे ममें पंकज कहते हैं, “मैं यहां 27 साल से रह रहा हूं और मैं दावा कर सकता हूं कि यह पूरी तरह गलत है. यहां लाखों बिहारी रहते हैं, अगर लोग बुरे होते, तो क्या हम यहां रह पाते. मेरी बेटी ने सातवीं कक्षा तक इन्हीं स्कूलों में पढ़ाई की है. मैं इन बच्चों के साथ खेलकर बड़ा हुआ हूं. हम कश्मीरियों के साथ सद्भाव में रहते हैं. मैं मरते दम तक यहीं रहूंगा.