Nadda paid tribute to Shyama Prasad Mukherjee, remembered his fight against Article 370
आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने सोमवार को भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी 72वीं पुण्यतिथि पर याद करते हुए कहा कि यह देश अब एक संविधान के तहत एकजुट है और यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.
नड्डा ने यहां स्थित भाजपा मुख्यालय में मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि भारतीय जनसंघ के नेता की 1953 में श्रीनगर की एक जेल में तब ‘‘रहस्यमय परिस्थितियों’’ में मृत्यु हो गई थी, जब उन्हें विशेष परमिट के बिना जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने का प्रयास करने पर गिरफ्तार किया गया था.
उन्होंने कहा कि उस समय राज्य के विशेष दर्जे के कारण परमिट आवश्यक था जिसका मुखर्जी ने कड़ा विरोध किया था. नड्डा ने कहा कि मुखर्जी ने ‘दो विधान, दो प्रधान, दो निशान’ के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था, जिसका संदर्भ जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान, प्रधानमंत्री और झंडे से था. भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि मुखर्जी ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ‘तुष्टीकरण की नीति’ के कारण उनके पहले मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था.
मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ (बीजेएस) की स्थापना की जिससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का उदय हुआ. जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री (वजीर ए आजम) का पद 1965 में समाप्त किया गया, लेकिन राज्य का अलग संविधान और झंडा जारी रहा, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करके समाप्त कर दिया. इसके बाद जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के रूप में पुनर्गठित किया गया. नड्डा ने कहा कि देशभर में भाजपा के सदस्य मुखर्जी को याद कर रहे हैं जो एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे.
उन्होंने कहा कि मुखर्जी अविभाजित बंगाल की विधानसभा के सदस्य निर्वाचित होने से पहले 33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति थे. भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल, पंजाब और असम को भारत का हिस्सा बनाने में उनका बड़ा योगदान है. उन्होंने कहा कि भाजपा का संकल्प है कि रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु जैसी घटना दोबारा न हो और देश में लोकतंत्र मजबूत बना रहे. नड्डा ने आरोप लगाया कि मुखर्जी की मां ने नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू) को पत्र लिखकर उनकी मौत की जांच कराने की मांग की थी, लेकिन उनकी अर्जी पर गौर नहीं किया गया। तत्कालीन सरकार ने तब कहा था कि 51 वर्षीय मुखर्जी की मौत हृदय संबंधी बीमारी के कारण हुई है.