आवाज द वॉयस/ श्रीनगर
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के सप्ताह के भीतर घाटी छोड़ने के आहवान के बाद कश्मीर का आम मुसलमान बेहद चिंतित है. उन्हें रोकने के लिए वे न केवल आगे आए हैं. जुलूस की शक्ल में घरों से गलियों एवं सड़कों पर निकलकर आतंकवादियों की टार्गेट किलिंग का विरोध करने साहस भी दिखा रहे हैं.
इस समय सोशल मीडिया पर ऐसा ही एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमेंबड़ी संख्या में लोग सड़कों पर जुलूस की शक्ल में चल रहे हैं और नारे लगा रहे हैं-कत्ल-ए-नाहक नामंजूर, खून खराबा नामंजूर, आपस में हम भाई-भाई.
एक अन्य वीडियो में कश्मीरी मुसलमान कश्मीरियों से अपील करते घूम रहे हैं-घाटी न छोडें, यहां रहें. हम आपके अधिकार के लिए लड़ेंगे.बता दें कि शोपियां में ताजा आतंकी हमले के बाद कश्मीरी पंडितों के संगठन ने स्थानीय पंडितों से घाटी छोड़ने का आहवान किया है.
इसके बाद से कश्मीर से सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो सामने आए हैं जिसमें कश्मीरी पंडितों के घाटी छोड़ने और अधिकारियों द्वारा उन्हें रोकने की कोशिश करते दिखाया गया है.
बता दें कि एक दिन पहले आतंकवादियों ने सुनील कुमार नामक एक व्यक्ति की नृशंस हत्या कर दी थी, जबकि उनके भाई घायल हो गए थे. इसके बाद ही श्रीनगर स्थित संगठन के अध्यक्ष संजय कुमार टीकू ने अल्पसंख्यक समुदाय के सभी सदस्यों से कश्मीर छोड़ने को कहा.
केपीएसएस के बयान में कहा गया है, कश्मीर घाटी में कोई भी कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं है. कश्मीरी पंडितों के लिए, केवल एक ही विकल्प बचा है कि वह कश्मीर छोड़ दें या धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा मारे जाएं, जिन्हें स्थानीय आबादी का समर्थन प्राप्त है.
शोपियां जिले के छोटिगम गांव में मंगलवार को लक्षित हमले में कुमार की मौत हो गई, जबकि उनके भाई पीतांबर उर्फ पिंटू गंभीर रूप से घायल हो गए.
केपीएसएस के बयान में यह आरोप लगाया गया है कि कश्मीर में जहां पर्यटक और अमरनाथ यात्री सुरक्षित हैं, वहीं गैर-स्थानीय मुस्लिम और कश्मीरी पंडित आतंकवादियों के निशाने पर हैं.
बयान में संगठन ने सरकार पर आरोप लगाया कि अपने कड़े बयान के बावजूद समुदाय की रक्षा करने में यह विफल रही है.इसके उलट शापियां में मुसलमानों ने सड़क पर आतंकवादियों की हत्या की राजनीति के विरूद्ध न केवल यह जताने की कोशिश की कि स्थानीय लोग उनके कतई साथ नहीं हैं. न ही हत्या का समर्थन करते हैं. साथ ही वह नहीं चाहते कि कश्मीर पंडित घाटी छोड़कर जाएं.
वैसे यह पहला मौका नहीं है. इससे पहले भी हिंदुओं की टार्गेट कीलिंग के बाद ऐसी एकजुटता दिखाई जा चुकी है. कश्मीर में धरना प्रदर्शन किया जा चुका है. एक सिख महिला टीचार की हत्या के बाद तो जैसे घाटी के तमाम बहुतसंख्या आतंकवादियों के विरोध में सड़कों पर आ गए थे.
दूसरी तरफ सुरक्षा बदल भी आतंकवादियांे की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. चूंकि आतंकवादियांे ने माइक्रो टार्गेट क्लीलिंग का तरीका अपना लिया है, इसलिए ऐसी स्थिति को काबू करने में थोड़ा दिक्कत आ रही है.