मुस्लिम बुद्धिजीवी मिले आरएसएस प्रमुख भागवत से: दिल से दिल मिलेंगे तो बात होगी !

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
मुस्लिम बुद्धिजीवी मिले आरएसएस प्रमुख भागवत से: दिल से दिल मिलेंगे तो बात होगी !
मुस्लिम बुद्धिजीवी मिले आरएसएस प्रमुख भागवत से: दिल से दिल मिलेंगे तो बात होगी !

 

आतिर खान / मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

देश में माहौल बदलने के लिए सबसे जरूरी है, आपसी मतभेदों और गलतफहमियों को दूर करना. इसके लिए सभी को आगे आना होगा. आज जो कुछ भी हो रहा है वह गलतफहमी और संवादहीनता का नतीजा है. आपसी संवाद से इसे दूर किया जा सकता है.

कोई भी भारतीय मुसलमानों के पूर्ण प्रतिनिधित्व का दावा नहीं कर सकता, इसलिए ये प्रयास अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग स्तरों पर किए जा सकते हैं. हमें अपने अंदर की कमियों को स्वीकारना होगा. उन्हें दूर करना होगा.
 
आरएसएस को इसकी जरूरत है या नहीं, मुसलमानों को आरएसएस की जरूरत है, क्योंकि देश के बहुमत का एक बड़ा हिस्सा संगठन के प्रभाव में है.यह एक प्रयास है. एक पहल है. लोगों को आगे लाया जाएगा और कारवां बनेगा.
 
ये विचार उन मुस्लिम बुद्धिजीवियों के हैं, जिन्होंने पिछले दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर मुसलमानों की गलतफहमी और शिकायतों पर चर्चा की थी. एक सकारात्मक पहल शुरू की गई, जिसका कुछ ने समर्थन किया और कुछ ने विरोध. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन समस्या का समाधान संवाद ही है. जिसे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर हर कोई आजमा सकता है.
 
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवियांे के प्रतिनिधिमंडल में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, एएमयू के पूर्व कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरुद्दीन शाह, प्रमुख पत्रकार और रालोद नेता शाहिद सिद्दीकी और प्रमुख उद्योगपति सईद शेरवानी शामिल थे.
 
बताते हैं कि ये एक साल पहले मुस्लिम शिक्षा मिशन और पिछड़े वर्गों के आर्थिक विकास के लिए एकजुट हुए और एक ऐसे संगठन के साथ सक्रिय हैं जो शिक्षा, विशेष रूप से मदरसों को आधुनिक शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए काम कर रहा है.
 
एक पहल है, एक शुरुआत है: नजीब जंगो

आवाज द वॉयस से बात करते हुए, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने कहा कि दोनों समुदायों के बीच अविश्वास बहुत बढ़ गया है.इसका एकमात्र उपाय है कि हम लोग एक साथ बैठें.मतभेदों पर चर्चा करें. अपनी राय सामने रखें. कमजोरियां और दोष पर बात हो.
 
नजीब जंग ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हमारा अभियान या प्रयास इस स्तर तक सीमित रहेगा.हम किसी भी सरकार से बात करेंगे, चाहे वह केंद्र हो या राज्य सरकार या जिला प्रशासन. किसी भी अभियान में देखें कि क्या समर्थन है सरकार मिल जाए तो बहुत जरूरी है.इसलिए हम किसी से बात करने में नहीं हिचकेंगे.
 
देखिए, हमारी योजना है कि हम एक साथ बैठेंगे. यह केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा. हम देश के विभिन्न शहरों का दौरा करेंग. लोगों के साथ बैठेंग.इस विचार और विचारधारा को और ताकत देंगे.
 
मुझे लगता है कि हमने एक अच्छी शुरुआत की है.अच्छे इरादों के साथ एक अच्छा काम शुरू किया गया है. अगर हमें लगता है कि आप इसमें शामिल हो सकते हैं, तो हम आपको शामिल करेंगे. पत्रकार शामिल हों, राजनीतिक नेता शामिल हों. सामाजिक कार्यकर्ता जड़ें. कौन करेगा इस काम में रुचि लें हमसे जुड़ सकते हैं.
 
इस संबंध में, हम विद्वानों सहित विभिन्न लोगों से बात कर रहे हैं. मेरा विश्वास करो. ये विद्वान ऐसे नहीं हैं, कोई ज्ञान नहीं है, जो चर्चा की इस पंक्ति का विरोध करता है. हर कोई मतभेद दूर करना चाहता है.
 
नागरिकों के रूप में बैठक: शाहिद सिद्दीकी

उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने इस मुलाकात को लेकर कहा कि 22 अगस्त को हुई यह मुलाकात बेहद सुखद रही. हमने स्थिति पर चर्चा की. भागवत साहब ने कहा कि इस्लाम और मुसलमान हमारे हैं. दोनों का भारत से घनिष्ठ संबंध है, जो बातें उनके दिल में थीं या जो शिकायतें उन्होंने बेहद ईमानदारी से व्यक्त की. हमने कुछ गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश की.
 
राजनीति में सामाजिक या सांस्कृतिक रूप से मुसलमानों का कोई प्रतिनिधि समूह नहीं है. न ही कोई इसका दावा कर सकता है. हम सिर्फ संबंधित नागरिक के रूप में पहल करना चाहते थे. हम यह दावा नहीं करते कि हम देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
 
यह बैठक इसलिए हुई क्योंकि हम देश के हालात सुधारने का ऐसा रास्ता ढूंढ रहे हैं, जो समय की मांग है.किसी के झुकने या जीतने या हारने का सवाल नहीं है. चर्चा गरिमा और सम्मान के साथ आयोजित की गई.
 
भविष्य में भी आयोजित की जाएगी. समस्या देश के वातावरण में घुले जहर को कम करने और खत्म करने की है. यह न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि देश हित में है. नफरत और जहर को खत्म किए बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते.
 
हमारा उद्देश्य गलतफहमियों को दूर करना है. इस देश में सदियों से हिंदू और मुसलमान साथ रहते आए हैं. मतभेद किसी में भी हो सकते हैं. घर में भाइयों के बीच होते हैं, लेकिन मतभेद या विरोध का मतलब दुश्मनी नहीं है. हमारा यही संदेश है कि जो भी मतभेद हैं, उन्हें आपस में बातचीत कर सुलझाना चाहिए.
 
 दरअसल नूपुर शर्मा की घटना के बाद देश के वातावरण और हालात को और बिगड़ने से रोकने के लिए पहल करने की सख्त जरूरत थी. उसके बाद हमने भागवत साहब को पत्र लिखा. बैठक के साथ ही अपनी इच्छा व्यक्त की कि वह स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए हस्तक्षेप करें.एक बात स्पष्ट कर दूं कि इस बैठक का कोई एजेंडा नहीं था.
 
हम एक हैं. इस चर्चा के बाद नतीजा यह निकला कि भागवत साहब ने चार सदस्यीय दल बना लिया. जो भविष्य में मुसलमानों के मुद्दों पर और चर्चा करेगा. भागवत ने कहा कि वह ऐसे मुद्दों पर संपर्क में रहना चाहते हैं और आरएसएस प्रमुख ने उन्हें कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार और राम लाल के संपर्क में रहने की सलाह दी.
 
जबकि इंद्रेश कुमार आरएसएस के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्ग दर्शक हैं, जिसे दिसंबर 2002 में स्थापित किया गया था.संपर्क प्रममुख रामलाल सिंह जैसे जनसंपर्क कार्यक्रमों की देखरेख करते हैं.
 
मुसलमानों को आरएसएस चाहिए: सईद शेरवानी

आज तक हम आरएसएस को नहीं जानते थे. वास्तव में हम दूसरी तरफ खड़े थे. अब देश का माहौल बदल रहा है. समय की जरूरत है. निस्संदेह आरएसएस देश के हिंदुओं का प्रतिनिधि नहीं करता, पर किसी न किसी स्तर पर पहल तो करनी ही होगी.
 
सच तो यह है कि इस समय आरएसएस को मुसलमानों से जुड़ने की जरूरत नहीं है, बल्कि मुसलमानों को आरएसएस की जरूरत है. पहले जो लोग इस तरह की बैठकें करते रहे हैं, वे अपनी समस्याओं के बारे में बात करते थे. न कि देश के बारे में.
 
इस समय मुसलमानों की खामियों या कमजोरियों को स्वीकारना और उन्हें सुधारना जरूरी है. यह दोतरफा प्रक्रिया होनी चाहिए. हम सभी में खामियां और कमजोरियां हैं. उन्हें स्वीकार कर और सुधार कर आगे बढ़ने की गुंजाइश है.
 
सईद शेरवानी का कहना है कि आजादी के बाद से भारत के मुसलमानों का कोई राजनीतिक या सामाजिक संगठन नहीं रहा, जो देश का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता हो. हम ऐसा कोई दावा नहीं कर रहे हैं.
 
हम मुसलमानों से अलग स्तर पर बात करने की कोशिश कर रहे हैं. लक्ष्य उन मुद्दों पर आगे बढ़ना है जिन पर सहमति बनी है और जो असहमति में हैं. उन पर चर्चा के लिए दरवाजा खोलना यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी में कोई असहमति न हो.
 
भागवत के कथन बहुत सकारात्मक थे. हमारी मुलाकात का उद्देश्य यह पता लगाना था कि गलतफहमियां क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाए. उनका रवैया बहुत ही मिलनसार और विचारशील था. वे उतने ही चिंतित हैं जितने हम हैं.
 
जिस तरह हम देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं करते, उसी तरह आरएसएस दावा नहीं कर सकता. इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि मोहन भागवत के कई बयानों और पहलों की आलोचना की गई है.
 
इस पहल से कुछ खुश हैं और कुछ नाराज हैं. लेकिन ऐसा हमेशा होता है. आप सभी को खुश या संतुष्ट नहीं कर सकते. हमें यह समझना होगा कि किसी भी समस्या को हल करने का अंतिम चरण ही एकमात्र तरीका है. हमने सकारात्मक सोच, साफ दिल और इरादे से पहल की है. जो होगा वह बेहतर होगा.
 
एक गैर-मुस्लिम ने मुझे अमेरिका से संदेश भेजा कि यह एक सकारात्मक कदम है. ईश्वर आपको सफलता दिलाए. इसी तरह अलीगढ़ के एक 80 वर्षीय बुजुर्ग ने शुभकामनाएं दीं और लिखा कि अल्लाह आपको आपके अच्छे कामों का इनाम दे.
 
खुलकर बात की भागवत ने:  एसवाई कुरैशी

भागवत ने खुलकर बात की. उन्होंने कोई शिकायत नहीं छिपाई. दिल खुला रखा. हमें बताया कि लोग गोहत्या और काफिर जैसे शब्दों से नाखुश हैं. हम भी इसे लेकर चिंतित हैं. अगर कोई गोहत्या में शामिल है तो उसे कानून के अनुसार सजा मिलनी चाहिए.
 
उन्होंने काफिर को लेकर फैली भ्रांति को दूर किया. बताया कि अरबी में काफिर का प्रयोग नास्तिकों के लिए किया जाता है और यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो.
 
भागवत साहब का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे धैर्यवान श्रोता और बहुत सरल हैं.हमने अपनी बात रखी. मुसलमानों की लगातार बदनामी एक समस्या थी. खासकर उनकी आबादी के बारे में प्रचार और बहुविवाह की प्रथा, समुदाय के बारे में नकारात्मक रूढ़िवादिता और नकारात्मक प्रचार अभियान.
 
निन्यानबे प्रतिशत भारतीय मुसलमान बाहर से नहीं आए बल्कि यहां धर्मांतरित हुए,जबकि देश के विकास के लिए सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है. हम सभी इस पर सहमत हैं.