वक्फ (संशोधन) कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने पर मुस्लिम संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 15-09-2025
Mixed reactions from Muslim organizations on the ban on some provisions of the Wakf (Amendment) Act
Mixed reactions from Muslim organizations on the ban on some provisions of the Wakf (Amendment) Act

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के कुछ अहम प्रावधानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने पर मुस्लिम संगठनों और धर्मगुरुओं की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही. जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई संस्थाओं ने इस फैसले का स्वागत भी किया और अधिनियम को “काला कानून” बताते हुए इसे पूरी तरह खत्म करने की मांग भी दोहराई.
 
शीर्ष अदालत में इस विवादित अधिनियम को चुनौती देने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उनका संगठन वक्फ कानून की विवादित धाराओं के खिलाफ अपनी कानूनी और लोकतांत्रिक लड़ाई जारी रखेगा. उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, “जमीयत उलेमा-ए-हिंद वक़्फ़ कानून की तीन अहम विवादित धाराओं पर मिली अंतरिम राहत के फैसले का स्वागत करती है. जमीयत इस काले कानून के ख़त्म होने तक अपनी क़ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद जारी रखेगी। हमें यक़ीन है कि उच्चतम न्यायालय इस काले कानून को समाप्त करके हमें पूर्ण संवैधानिक न्याय देगा, इंशा अल्लाह.”
 
वहीं, एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मुसलमान और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर पूरी तरह रोक चाहता था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, जो स्वागतयोग्य कदम है. हमें इससे काफी राहत मिली है और उम्मीद है कि जब अंतिम फैसला आएगा, तो हमें पूरी राहत मिलेगी.
 
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, “हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं. हमें अपनी अदालतों पर पूरा भरोसा है और हमें न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है.
 
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित करने पर सुप्रीम कोर्ट के रुख पर भी प्रतिक्रिया आई. खालिद रशीद ने कहा कि अदालत ने बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से ही करने का निर्देश दिया है, जो राहत की बात है, लेकिन “गैर-मुस्लिम सदस्यों का मुद्दा अब भी बना हुआ है.” उन्होंने कहा, “अन्य धर्मों और समुदायों के ट्रस्टों तथा धार्मिक संस्थाओं में यह प्रावधान है कि केवल उसी धर्म का व्यक्ति ही इसका सदस्य बन सकता है और यही कानून वक्फ अधिनियम में भी था, लेकिन संशोधित कानून में इस प्रावधान को हटा दिया गया.
 
कुल मिलाकर, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर मुस्लिम संगठनों में जहां सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को लेकर आंशिक संतोष दिखाई दिया, वहीं उन्होंने इसे “काला कानून” बताते हुए अपनी कानूनी और जनतांत्रिक लड़ाई जारी रखने की घोषणा भी की.