लखनऊ का बड़ा मंगल: जब हिंदू-मुसलमान मिलकर मनाते हैं गंगा-जमुनी तहज़ीब का जश्न

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 03-06-2025
Lucknow's Bada Mangal: When Hindus and Muslims celebrate Ganga-Jamuni Tehzeeb together
Lucknow's Bada Mangal: When Hindus and Muslims celebrate Ganga-Jamuni Tehzeeb together

 

लखनऊ
 
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हर साल की तरह इस बार भी 'बड़ा मंगल' बड़ी धूमधाम और आपसी सौहार्द के साथ मनाया गया. यह त्योहार न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि शहर की मशहूर गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल भी है.
 
बड़ा मंगल हर मंगलवार को जेष्ठ महीने में मनाया जाता है, लेकिन इसका विशेष महत्व पहले मंगलवार को होता है. इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है और शहरभर में विशाल भंडारों का आयोजन किया जाता है.
 
जो बात इस त्योहार को खास बनाती है, वह है इसमें सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी. हिंदू-मुसलमान दोनों मिलकर न सिर्फ भंडारे लगाते हैं, बल्कि एक-दूसरे के साथ मिलकर सेवा कार्यों में भी हिस्सा लेते हैं. कई मुस्लिम परिवार सालों से इस आयोजन में सहयोग कर रहे हैं, और श्रद्धालुओं को फल, जल, शरबत, और प्रसाद वितरित करते हैं.

नवाब की आस्था और अलीगंज हनुमान मंदिर

देश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन ने अपनी किताब 'लखनऊ नामा' में उल्लेख किया है कि नवाब वाजिद अली शाह ने अलीगंज के प्राचीन हनुमान मंदिर में मन्नत पूरी होने पर बड़े स्तर पर भंडारा करवाया था. यही नहीं, उनकी बेगमों ने भी इसमें भाग लिया था. यही आयोजन आज "बड़ा मंगल" के रूप में मनाया जाता है, बड़ा मंगल यानि हिन्दू पंचांग का ज्येष्ठ महीना, इस महीने के हर मंगलवार को पूरे शहर में जगह जगह भंडारा होता है, कोई भी भूखा नहीं सोता, जिसमें सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं.

बड़ा मंगल पर क्या होता है खास?

शहर के सभी प्रमुख हनुमान मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग जाती हैं.
 
सड़क किनारे, चौराहों और बाजारों में जगह-जगह भंडारे लगाए जाते हैं, जिनमें हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं.
 
पुलिस और प्रशासन भी इस दिन विशेष सुरक्षा व्यवस्था करता है ताकि त्योहार शांतिपूर्ण और सुरक्षित तरीके से मनाया जा सके.
 
लखनऊ नामा में इतिहासकार लिखते हैं, नवाब साहब की श्रद्धा इतनी गहरी थी कि उनके शासन काल में बंदरों की हत्या पर सख्त पाबंदी लगा दी गई थी. एक बार किसी ने बंदरों पर गोली चला दी, तो उसे इसकी सज़ा भी भुगतनी पड़ी. नवाब और उनकी बेगमें हर मंगलवार को मंदिर में चना लेकर बंदरों को खिलाने जाती थीं. यह परंपरा उस समय के शासन की धार्मिक सहिष्णुता और मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है. 
 
गंगा-जमुनी तहज़ीब की पहचान

लखनऊ हमेशा से ही सांस्कृतिक समरसता का केंद्र रहा है. बड़ा मंगल इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ धार्मिक सीमाएं नहीं होतीं, बल्कि इंसानियत और सेवा भाव सबसे ऊपर होता है.
 
शहर के एक मुस्लिम समाजसेवी मोहम्मद शाहिद ने कहा, "हम बीते 15 वर्षों से हर बड़ा मंगल को भंडारा लगाते हैं. यह हमारे लिए सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि इंसानियत की सेवा का दिन है."
 
हनुमान मंदिर के पुजारी पंडित राजेश अवस्थी ने भी कहा, "यह त्योहार लखनऊ की आत्मा है. यहाँ मजहब से ऊपर उठकर इंसान एक-दूसरे के लिए काम करता है. यही हमारी असली पहचान है."
 
अलीगंज हनुमान मंदिर के शिखर पर आज भी एक चांद लगा है, जो नवाब वाजिद अली शाह द्वारा लगवाया गया था. यह कोई साधारण चिह्न नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और आस्था की मिसाल है. नवाब ने इसे बजरंगबली के प्रति सम्मान स्वरूप लगवाया था. यह चांद आज भी उस दौर की कहानी कहता है, जब धर्म और सत्ता के बीच पुल बनाया जाता था, दीवारें नहीं.
 
आज बड़ा मंगल सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लखनऊ की सांझी संस्कृति का उत्सव बन गया है. जगह-जगह भंडारे, पंडाल, जलपान की व्यवस्था और सबसे खास बात सब कुछ बिना किसी भेदभाव के. यह परंपरा लखनऊ की मिट्टी में रच-बस चुकी है, जिसकी शुरुआत नवाब वाजिद अली शाह ने अपने प्रेम और आस्था से की थी.
 
 
निष्कर्ष:

बड़ा मंगल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह दिखाता है कि लखनऊ में आज भी गंगा-जमुनी तहज़ीब ज़िंदा है. जब एक साथ मिलकर लोग त्योहार मनाते हैं, तो यह नफरत को हराकर मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देता है.