जोशीमठ भू-धंसाव के लिए एनटीपीसी की परियोजना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था. राज्य सरकार ने जोशीमठ में घरों में आ रही दरारों के बाद तमाम बड़े संस्थानों को जोशीमठ के सर्वे का काम दिया था. इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलॉजी, वाडिया इंस्टीट्यूट, रूड़की आईआईटी और जीएसआई सहित अन्य इंस्टीट्यूट शामिल थे.
जोशीमठ भू-धंसाव को लेकर चल रही तमाम एजेसियों की जांच के बाद जीएसआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एनटीपीसी को अपनी रिपोर्ट में क्लीन चिट दी है. इसका मतलब जोशीमठ में भू-धंसाव के पीछे एनटीपीसी की परियोजना वजह नहीं है. जांच एजेंसियों ने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव और दरारों के पीछे का कारण भी अपनी रिपोर्ट में बताया है.
एजेंसियों ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में बताया कि जोशीमठ में आ रही दरारों का एनटीपीसी के काम से कोई संबंध नहीं है. जिस जगह दरारें आ रही हैं, वहां से एनटीपीसी प्रोजेक्ट की दूरी एक किमी से भी ज्यादा है.
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि, जेपी कॉलोनी और अन्य जगहों पर जो पानी का रिसाव हो रहा है, उनके तमाम नमूने लिए गए. देखा गया कि दोनों का पानी अलग-अलग है. पानी का रिसाव तेजी से हो रहा था, वह कहीं ना कहीं इस वजह से था कि ऊपरी हिस्से में एक पानी का बड़ा हिस्सा जमा हो गया था. धीरे- धीरे वह पानी नीचे की तरफ रिसाव कर रहा था. अन्य इलाकों में जो पानी का रिसाव हो रहा था, उसकी दूरी भी एनटीपीसी प्लांट से अधिक है.
520 मेगावाट की परियोजना और शहर के तमाम सर्वे के बाद रिपोर्ट को राज्य सरकार को सौंप दिया गया है. राज्य सरकार ने रिपोर्ट को कोर्ट को सौंपा है. उसे सार्वजनिक भी कर दिया गया है. आठ वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट सैकड़ों वैज्ञानिकों ने कई महीनों की मेहनत के बाद करीब 718 पन्नों में तैयार की है.
बता दें कि जोशीमठ जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा-ग्लेशियल जोन कहा जाता है. इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर हुआ करते थे. बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया. इसकी मलबे से बना पहाड़ मोरेन कहलाता है. इसी मोरेन के ऊपर जोशीमठ बसा है.
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में बताया गया है कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है. यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं, इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसी मिट्टी में आंतरिक क्षरण के कारण संपूर्ण संरचना में अस्थिरता आ जाती है. इसके बाद पुन: समायोजन होता है, जिसके परिणामस्वरूप बोल्डर धंस रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि धंसाव का मुख्य कारण आंतरिक क्षरण ही प्रतीत होता है. यहां जोशीमठ के विस्तार के साथ ही ऊपर से बहने वाले प्राकृतिक नाले का बहाव बाधित हुआ है. नाले का पानी लगातार जमीन के भीतर रिस रहा है.
बीते 10 वर्षों में हुई अत्यधिक वर्षा ने भी नुकसान के स्तर को बढ़ाया है. नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) हैदराबाद को अध्ययन में जोशीमठ में 20 से 50 मीटर गहराई तक में भू-धंसाव के प्रमाण मिले हैं. रिपोर्ट के अनुसार वहां सतह पर जो स्थिति नजर आ रही है, कई स्थानों पर 50 मीटर गहराई तक के भूभाग तक पाई गई है.
रिपोर्ट में नगर की धारण क्षमता से अधिक भवनों का निर्माण, पानी की निकासी नहीं होना, जंगलों का कटाव, प्राकृतिक जल स्रोतों के रास्तों में रूकावट, भवनों का विस्तार जैसे प्रमुख कारण भू- धंसाव के लिए अंकित किए गए हैं.