नई दिल्ली
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती पुलिस बर्बरता, बिहार में मतदाता सूचियों से नामों को हटाए जाने और ग़ाज़ा में इज़राइल द्वारा किए जा रहे नरसंहार पर कड़ा विरोध दर्ज किया है।
एपीसीआर (एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स) के सचिव नदीम ख़ान ने जेआईएच की मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उत्तर प्रदेश में ‘आई लव मुहम्मद’ पोस्टर लगाने के शांतिपूर्ण कृत्य को लेकर मुसलमानों को जिस तरह निशाना बनाया गया है, वह कानून के शासन का पतन है।
उन्होंने कहा, “पुलिस रक्षक नहीं, उत्पीड़क बन गई है। यह कार्रवाई कानून व्यवस्था बनाए रखने की नहीं, बल्कि मुस्लिम पहचान को अपराध बनाने की सोची-समझी साजिश है।”
नदीम खान के अनुसार, 23 सितंबर 2025 तक देशभर में इस संबंध में 21 एफआईआर दर्ज, 1,324 मुस्लिमों को आरोपित, और 38 गिरफ्तारियाँ हुई हैं। अकेले बरेली में 10 एफआईआर दर्ज की गईं। कई मामलों में "आई लव मुहम्मद" का कोई ज़िक्र तक नहीं है, लेकिन उन पर "गैरकानूनी सभा", "शत्रुता फैलाना" जैसी धाराएँ लगाई गई हैं।
नदीम ख़ान ने बताया कि कुछ नाबालिगों को व्हाट्सएप डीपी लगाने पर हिरासत में लिया गया, और मौलाना तौकीर रज़ा खान जैसे नेताओं को भी निशाना बनाया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि बुलडोजर, जो कभी विकास का प्रतीक था, अब सामूहिक सज़ा और राजनीतिक बदले का हथियार बन गया है।नदीम ख़ान ने मांग की कि सभी राजनीतिक रूप से प्रेरित एफआईआर तुरंत वापस ली जाएँ, बेगुनाह बंदियों को रिहा किया जाए, और पुलिस अत्याचार के लिए न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
उन्होंने कहा, “पैगंबर के प्रति प्रेम को अपराध घोषित करना भारत के संविधान और नैतिकता पर सीधा हमला है। हम सभी धर्मों के लोगों से अपील करते हैं कि वे इस ध्रुवीकरण के खिलाफ एकजुट हों।”
जेआईएच के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने बिहार में 24 जून से 30 सितंबर तक चले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) पर गंभीर सवाल उठाए।उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और कम समय-सीमा के चलते लाखों लोग, खासकर मुस्लिम और वंचित वर्ग, मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 65 लाख नाम प्रारंभिक सूची से हटाए गए थे, और सुधार के बाद भी 47 लाख नाम हटा दिए गए। खासकर किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और गोपालगंज जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में सबसे ज़्यादा नाम हटाए गए।
मोतसिम खान ने कहा, “यह एनआरसी-सीएए की याद दिलाने वाला कदम है, एक प्रकार की चुपचाप जनसांख्यिकीय इंजीनियरिंग, जिससे मुसलमानों को कागज़ी प्रक्रिया के माध्यम से वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि नागरिकों को अपनी नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी दी गई, जबकि प्रशासन ने कोई सहायता नहीं दी। कई परिवार दस्तावेज़ जमा नहीं कर सके और उनका नाम सूची से गायब हो गया।
जेआईएच ने भारत निर्वाचन आयोग से माँग की कि विलोपन के मानदंड स्पष्ट किए जाएँ, ज़िलेवार सामुदायिक आँकड़े सार्वजनिक किए जाएँ, और गलत तरीके से हटाए गए नामों को पुनः जोड़ा जाए।
जेआईएच के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर ने ग़ाज़ा में इज़राइल द्वारा लगातार हो रही बमबारी और हाल ही में मानवीय बेड़े पर किए गए सशस्त्र हमले की तीखी आलोचना की।
उन्होंने कहा, “इज़राइल ने निहत्थे नागरिक जहाजों को निशाना बनाकर अंतरराष्ट्रीय कानून, नैतिकता और मानवता की सभी सीमाएं लांघ दी हैं।”सलीम इंजीनियर ने कहा कि पिछले दो वर्षों में हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों विस्थापित हुए हैं और ग़ाज़ा के कई इलाके पूरी तरह से मलबे में तब्दील हो गए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि इज़राइल का यह व्यवहार आत्मरक्षा नहीं, बल्कि एक घिरे हुए समुदाय का सुनियोजित विनाश है। अस्पताल, स्कूल, शरणार्थी शिविर और यहां तक कि राहत मिशनों को भी निशाना बनाया जा रहा है।
जेआईएच ने माँग की:
ग़ाज़ा में तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम
इज़राइल पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में इज़राइली नेताओं पर मुकदमा
ग़ाज़ा में मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति
उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया कि संयुक्त राष्ट्र में नैतिक और न्यायसंगत रुख अपनाएं और फिलिस्तीन के प्रति अपने ऐतिहासिक समर्थन को दोहराएं।
प्रो. सलीम ने कहा,"फिलिस्तीनी संघर्ष मानवता की अंतरात्मा की परीक्षा है। इतिहास याद रखेगा कि कौन न्याय के पक्ष में खड़ा हुआ और कौन नरसंहार के सामने चुप रहा।"