भारतीय सौर क्षेत्र 2027 तक झेल सकता है ओवरसप्लाई संकट: एसबीआई कैपिटल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 23-08-2025
Indian solar sector may face oversupply crisis by 2027: SBI Capital
Indian solar sector may face oversupply crisis by 2027: SBI Capital

 

नई दिल्ली

भारतीय सौर उद्योग 2027 तक संभावित ओवरसप्लाई की स्थिति का सामना कर सकता है क्योंकि उस समय तक देश में सौर ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 190 गीगावॉट तक पहुँचने का अनुमान है। यह आकलन हाल ही में जारी एसबीआई कैपिटल की एक रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका द्वारा सौर परियोजनाओं के लिए प्रोत्साहनों को वापस लेने के बाद निर्यात की संभावनाएँ घट गई हैं, जिससे यह चिंता और बढ़ गई है।

भारत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर साल लगभग 40–50 गीगावॉट नई क्षमता जोड़नी होगी। इसके लिए 100 गीगावॉट की स्थिर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता आवश्यक है। पिछले दो वर्षों में भारत का सौर मॉड्यूल निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र तेज़ी से बढ़ा है और लगभग 100 गीगावॉट क्षमता तक पहुँच गया है। यह वृद्धि उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, अनुमोदित मॉडल और निर्माता सूची (एएलएमएम) और वैश्विक नीति वातावरण से मिली अनुकूलता के कारण हुई है।

वित्त वर्ष 2025 में 60% सालाना वृद्धि के साथ 24 गीगावॉट की स्थापना दर्ज की गई, जिससे मॉड्यूल की मांग लगभग 50 गीगावॉट डीसी तक पहुँच गई। हालांकि, रिपोर्ट ने यह भी कहा कि अपस्ट्रीम इंटीग्रेशन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। जहाँ मॉड्यूल निर्माण परिपक्व है, वहीं भारत की सौर सेल विनिर्माण क्षमता अभी भी 30 गीगावॉट से कम है।

31 अगस्त 2025 से लागू होने वाले एएलएमएम-2 से इस खंड में वृद्धि की उम्मीद है। इसके तहत केवल उन्हीं परियोजनाओं की खरीद होगी जिनमें स्वीकृत घरेलू निर्माताओं की सेल्स का उपयोग किया गया हो। इसमें नेट मीटरिंग और ओपन एक्सेस नियमों के तहत आने वाली वाणिज्यिक और औद्योगिक (सी एंड आई) परियोजनाएँ भी शामिल हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले वर्षों में सेल क्षमता में तेज़ बढ़ोतरी होगी और मध्यम अवधि में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकेगी। हालांकि, निकट भविष्य में घरेलू सेल्स की सीमित उपलब्धता परियोजना लागत बढ़ा सकती है, जिससे बिडिंग में उत्साह घट सकता है।

दिसंबर 2024 से बोली गई 100 गीगावॉट परियोजनाओं के लिए समयसीमा और छूट को लेकर स्पष्टता आने से निकट भविष्य का दबाव कम होगा।

फिलहाल भारत में वेफर और पॉलीसिलिकॉन उत्पादन लगभग नगण्य है। मार्च 2027 तक 40 गीगावॉट वेफर क्षमता विकसित करने का लक्ष्य है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर प्रगति धीमी है। वैश्विक स्तर पर पॉलीसिलिकॉन की कीमतों में बढ़ोतरी ने उन अंतरराष्ट्रीय निर्माताओं के मुनाफ़े पर दबाव डाला है जो पूरी वैल्यू चेन में इंटीग्रेटेड नहीं हैं।

इस संदर्भ में, भारत का पीएलआई कार्यक्रम महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पॉलीसिलिकॉन से लेकर मॉड्यूल तक पूरी वैल्यू चेन में इंटीग्रेशन की सुविधा प्रदान करता है, रिपोर्ट ने कहा।