परमवीरः गाजीपुर के योद्धा अब्दुल हमीद ने 7 पाकिस्तानी पैटन टैंकों को कबाड़ बना दिया

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 01-07-2021
परमवीर चक्र अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के 7 पैटन टैंक अकेले उड़ा दिए थे
परमवीर चक्र अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के 7 पैटन टैंक अकेले उड़ा दिए थे

 

आवाज विशेष । परमवीर चक्र

कंपनी क्वॉर्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद, 4, ग्रेनेडियर्स, परमवीर चक्र, भारत-पाकिस्तान युद्ध,1965

मंजीत ठाकुर

खेमकरण भारत और पाकिस्तान की सरहद पर बसा हुआ एक गांव है, जो कहने को तो महज एक गांव ही है मगर इसका जर्रे-जर्रे को भारतीय फौज के बहादुर सिपाहियों ने अपने लहू से सींचा है. यहां भारत के इतिहास का वह सुनहरा पन्ना लिखा गया है, जिसके सामने पाकिस्तान ही नहीं सुपर पावर अमेरिका का भी सर नीचा हो जाता है.

1965 के अगस्त का आख़री हफ़्ता था, जब गाज़ीपुर ज़िले के गांव धामूपुर के एक घर में अफरा-तफरी मच गई थी. सफ़र हमीद को करना था और उनकी बीवी रसूलन हलकान हुई पड़ी थीं. जब से रेडियो पर ख़बरों में बताया गया था कि पाकिस्तान ने हमला कर दिया है और तब से उनके शौहर अब्दुल हमीद ने सामान समेटना शुरू कर दिया था.

रसूलन बीवी सोच रही थी, "तीन साल पहले भी ऐसी ही मुई लड़ाई छिड़ गई रही. बासठ में नेफा गईन रहे, अब पिंजाब जा रहे. बाजे पर ख़बर सुन लीहिन हैं ये, अब ऊ हमार एक नाहीं सुनिहैं..."

अब्दुल हमीद सच में सुनने वाले नहीं थे.

हमीद अपनी पत्नी को दिलासा दिया था कि बासठ में चीन से लड़ाई में गया था और लौटा था या नहीं? अब्दुल हमीद 1962 के भारत-चीन युद्ध से वापस आए थे तो उनको प्रमोशन मिली थी और वे कंपनी क्वॉर्टर मास्टर हवलदार बना दिए गए थे.

अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में हुआ था. अम्मी सकीना बेगम और अब्बा मोहम्मद उस्मान मुश्किल से दर्जी का काम करके घर चलाते थे. और आर्मी में आने से पहले हमीद भी दर्जी के काम में उनकी मदद किया करते थे.

14 साल की उम्र में ही उनका निकाह रसूलन बीबी से हुआ था और पांच बच्चे हुए थे. 1962 में चीन के साथ युद्ध में वे नेफा में थांग ला में 7, माउंनेट ब्रिगेड, माउंटेन डिवीजन की ओर से लड़े थे.

अब उन्हें पंजाब जाना थाक्योंकि पंजाब की सरहद में पाकिस्तान आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था. असल में, 1962 की लड़ाई में भारत की हार के बाद पाकिस्तान को लगा कि भारत की फ़ौजी ताक़त कम हो गई है और वह इस मौके को कश्मीर हथियाने के मौके के रूप में देख रहा था.

पाकिस्तान के हौसले इसलिए भी बुलंद थे क्योंकि कुछ ही वक़्त पहले उसे अमेरिका से 120 टैंक, फाइटर प्लेन्स के दो स्क्वॉड्रन, सेबर जेट के चार स्क्वॉड्रन और एक सुपरसोनिक फाइटर का स्क्वॉड्रन मिला था.

पाकिस्तान ने इस लड़ाई की शुरुआत गुजरात के कच्छ के रन में हमले के साथ की थी लेकिन हिंदुस्तान की जवाबी कार्रवाई के बाद सीज़ फायर हो गया था. लेकिन पाकिस्तान ने कोशिश नहीं छोड़ी थी और कश्मीर में बग़ावत फैलाने के मक़सद से उसने एक नया ऑपरेशन शुरू किया थाः ऑपरेशन जिब्राल्टर.

कश्मीरी लोगों की लिबास में पाकिस्तान के करीब 25,000 फ़ौजी नियंत्रण रेखा पार करके कश्मीर में घुस आए थे. 15 अगस्त, 1965 से ये लड़ाई चल रही थी और सितंबर के पहले हफ़्ते में हिंदुस्तानी फ़ौज अंतरराष्ट्रीय सीमा लांघकर पाकिस्तानी इलाक़ों में घुसी थी और उसके बाद युद्ध घोषित कर दिया गया था.

अब्दुल हमीद ने जब अपनी बटालियन में रिपोर्ट की तो उन्हें बताया गया कि क्वॉर्टर मास्टर के तमाम ड्यूटीज़ यानी राशन और स्टोर की देखरेख के काम से हटाकर उनकी ड्यूटी आरसीएल गन पर कर दी गई है.

उनकी बटालियन फोर, ग्रेनेडियर्स को पंजाब के खेमकरण में तैनाती मिली थी और अब्दुल हमीद अपनी बटालियन के लिए बेहद अहम थे क्योंकि उन्होंने आर.सी.एल गन चलाने की ट्रेनिंग ली थी और उनका निशाना महाभारत के अर्जुन की अचूक हुआ करता था. एक दम निशाना सीधे चिड़िया की आंख पर.

6 सितंबर, 1965 को फोर ग्रेनेडियर्स भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे आखिरी क़स्बे डिब्बीपुरा पहुंचे थे तो सितंबर की ऊमस भरी गरमी शबाब पर थी.

अंतरराष्ट्रीय सीमा के आसपास इच्छोगिल नहर का पानी रिसकर जमा हुआ था और उस दलदली ज़मीन में हाथी घास यानी सरकंडे उग आए थे. अब्दुल हमीद और उनकी बटालियन के छह सौ जवान उस दलदल में धंसते हुए आगे बढ़ने लगे थे. सरकंडों की पत्तियां बदन के खुले हिस्से पर ब्लेड की तरह चलती थी और बांहों में या गालों पर उस खरोंच से खून उभर आता था.

सारे जवानों ने अपने हथियार ऊपर कर लिए ताकि गोलियां पानी में भींगकर ख़राब न हो जाएं.

उनके वहां आते ही इच्छोगिल नहर के दूसरी तरफ तैनात पाकिस्तानी फौज ने गोलाबारी शुरू कर दी थी. दुश्मन के खेमे की तरफ से लगातार गोलियां भी चल रही थीं.

ग्रेनेडियर्स का पहला काम था, इच्छोगिल नहर पर बने पन्नू पुल कर कब्ज़ा करना. इच्छोगिल के उस तरफ पाकिस्तान ने खतरनाक क़िलेबंदी कर रखी थी. पाकिस्तानी फौज के गोले बरस तो रहे थे लेकिन फट नहीं रहे थे क्योंकि पानी में गिरते ही वे ख़राब हो जा रहे थे.

हिंदुस्तानी जवानों ने मशीनगन की गोलियों की बाढ़ के बीच पन्नू पुल पर हमला बोल दिया. थोड़ी देर की गोलीबारी के बाद पुल पर हिंदुस्तानी फौज का कब्जा हो गया था, लेकिन बटालियन के जिम्मे एक और काम था, वह था, असल उत्तर गांव और चीमा गांव की सुरक्षा.

वहां पहुंचते ही खाइयां खोदने का काम तेज हो गया था और उनको जूट की बनी चीनी की बोरियों से ढंक दिया गया था. यहां पाकिस्तान के हमले की वजह से क्या चीमा, क्या असल उत्तर, खेमकरण और डिब्बीपुरा भी सुनसान हो गए थे. घरों को छोड़-छाड़कर लोग अमृतसर की तरफ कैंपों में चले गए थे. चारों तरफ अजीब सा सन्नाटा छाया था.

अगले दिन, यानी 8 सितंबर 1965 की सुबह जब अब्दुल हमीद अपनी रिकॉयलेस गन वाली जीप में बैठे थे कि हवा में गन्ने के पत्तियों की सरसराहट पर एक गड़गड़ाहट जैसी आवाज़ छाने लगी थी. यह शोर ऐसा था कि किसी कमज़ोर दिल वाले का दिल दहल जाए. यह टैंकों की टुकड़ी थी.

ऐसा लग रहा था कि लोहे का बना हुआ कोई बड़ा राक्षस अपने हथियार भांजता हुआ, शोर मचाता हुआ, आगे बढ़ रहा हो. टैंकों के चलने से लोहे की जंज़ीरों के ज़ोर से आपस में टकराने जैसी आवाज़ होती है और इन आवाज़ों को टैंकों के इंजन का शोर और दहशतनाक बना देता है.

अब्दुल हमीद समझ गए कि पाकिस्तानी टैंकों की रेज़िमेंट हमले के लिए आगे बढ़ रही है.

हमीद ने अपनी रिकॉयलेस गन वाली जीप को गन्ने के खेतों के भीतर घुसा दिया और गन पॉइंट को दुश्मन के आने की तरफ मोड़कर उनके नज़दीक आने का इंतजार करने लगे थे.

पाकिस्तान को अपने टैंकों की टुकड़ी पर बहुत नाज़ था. उसे अमेरिका से पैटन टैंक की दस रेज़िमेंट मिली थी और उसके बाद से उसे लगने लगा था कि इंडियन आर्मर्ड कोर के मुकाबले वह अधिक ताक़तवर है. तब भारत के पास सेंचुरियन टैंकों और शर्मन टैंकों के की केवल तीन रेज़िमेंट थी और उनमें से अधिकतर दूसरे विश्वयुद्ध से भी पुराने थे और उनमें एंटी-टैंक गन भी नहीं थी.

उस वक्त, पैटन टैंकों की पूरी दुनिया में धूम थी और उसे बनाने वाले अमेरिकियों का दावा था कि पैटन टैंकों को दुनिया की किसी भी चीज़ से ध्वस्त नहीं किया जा सकता है. लिहाजा, पाकिस्तान ने अपने सभी रेजिमेंट्स में पैटन टैंक की तस्वीरों वाले बडे-बड़े पोस्टर लगाए थे और जिन पर ऊर्दू में लिखा थाः दिल्ली की ओर कूच करो.

इसके मुकाबले भारत के फौजियों के पास इन टैंकों से लड़ने के लिए आरसीएल गन ही थीं. 106 एमएम की आरसीएल गन 600 से 700 गज तक के रेंज में मार सकती थी और टैंकों के ख़िलाफ़ बहुत असरदार मानी जाती थी. उस समय तक जितने भी इसके टेस्ट हुए थे उसके मुताबिक किसी टैंक पर इससे छोड़ा गोला लग जाए तो वह टैंक साबूत नहीं बचता था, लेकिन पैटन टैंक को लेकर अमेरिका के दावे अलग थे.

ऐसे में पैटन के खिलाफ आरसीएल गन कितनी कारगर होगी, इस पर शक के हल्के बादल थे.

दूसरी दिक्कत ये थी कि फ़ायर करने के बाद आरसीएल गन के पीछे से शोला या लपट जैसी निकलती थी...यानी इसको दूर से ही पहचाना जा सकता था. इसका मतलब था इस गन से एक जगह से दो या अधिक से अधिक तीन फायर किए जा सकते थे और हर फ़ायर के बाद जगह बदलनी ज़रूरी थी.

गन्ने के खेत में अपनी जीप पर अब्दुल हमीद, उनके आरसीएल गन का लोडर और उनका ड्राइवर पैटन टैंकों के पास आने का इंतजार कर रहे थे. ग्रेनेड फेंकने वाले भी दम साधकर खेतों में छिप गए ताकि आवाज़ सुनकर दुश्मन न चौकन्ना हो जाए.

टैंकों की घरघराहट पास आती जा रही थी.

सौ गज...अस्सी गज....सत्तर गज....पचास गज....टैंक पास आते जा रहे थे. एक टैंक आगे था और दो टैंक उसके पीछे.

आरसीएल गन के लोडर ने हमीद की तरफ देखा, हमीद ने हल्के से इशारा किया तो गोला आरसीएल में लोड कर दिया गया था. अब फ़ायर करना बाकी थी. लोडर हैरान था कि आख़िर हमीद साब फायर करने क्यों नहीं कह रहे.

हमीद ने आंखों ही आंखों में इंतज़ार करने का इशारा किया था.

पैटन टैंक बढ़े आ रहे थे.

पैंतालीस गज...चालीस गज...और पास...तीस गज.

फायर. अब्दुल हमीद ने आदेश दिया. आरसीएल गन से गोला परिंदे की तरह उड़ान भरता हुआ ऊपर गया था और फिर जब तक अब्दुल हमीद अपनी आंखों पर दूरबीन लगा कर टैंक का हश्र देख पाते तब तक वह परिंदा टैंक पर पेड़ की डाल की तरह बैठ गया.

जोरदार धमाका हुआ और उसके साथ ही पैटन टैंकों की मजबूती को लेकर किए गए अमेरिकी दावों के परखच्चे उड़ गए. पैटन के अंजर-पंजर बिखर गए थे.

बाकी के दो पैटन टैंको में मौजूद पाकिस्तानी फौजी आगे के टैंक की हालत देखकर बाहर आए थे और भाग निकले थे. कच्ची सड़क पर दोनों पैटन टैंक वैसे ही छोड़कर.

अब्दुल हमीद और उनके ड्राइवर मोहम्मद नसीम एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे थे. वायरलैस सेट पर हमीद ने कर्नल जानू को इसकी सूचना दी तो वो भी खुश हो गए.

हमीद ने ड्राइवर को जीप रिवर्स करके आगे ले चलने को कहा था. गाड़ी बढ़ाते हुए ड्राइवर मोहम्मद नसीर ने हमीद से पूछा थाः पाकिस्तानी फौजी जिंदा जलने के डर से भाग खड़े हुए थे.

पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी में तेजी आ गई थी लेकिन दिन के साढ़े ग्यारह बजे अब्दुल हमीद को एक बार फिर से वही जानी-पहचानी घरघराहट सुनाई दी थी. अब्दुल हमीद ने दूरबीन से देखा, इस बार पाकिस्तान ने टैंको की दो टुकड़ियां भेजी थीं. यानी कुल मिलाकर छह टैंक.

हमीद के कहने पर आरसीएल गन वाली उनकी जीप आगे बढ़कर एक दफा फिर से गन्ने के खेतों के बीच में जाकर खड़ी हो गई थी. जीप में मौजूद तीनों लोगों की स्थिति कुछ वैसी ही हो गई थी जैसे सौ मीटर की दौड़ में भागने से पहले एथलीट की होती है. नस-नस तनी हुई, एकदम सावधान.

हमीद ने देखा, टैंकों की दोनों टुकड़िया सीधे सामने आने की बजाए बाईं और दाहिनी तरफ मुड़ने लगी थीं. हमीद के जीप से उनकी दूरी अब भी करीब 180 गज थी. सड़क के दाहिनी तरफ कैप्टन करतार सिंह की बी कंपनी थी और बाईं तरफ कर्नल जानू की सी कंपनी.

टैंकों को दोनों दिशाओं में मुड़ता देखकर हमीद ने लोडर से कहा था, दूर बा, मार पइबअ?

लोडर ने फायर किया. नतीजा फिर से वही रहा. टैंक के चिथड़े उड़ गए. सी कंपनी की तरफ बढ़ रही टैंक की उस टुकडी के बाकी के दो टैंकों का क्रू पहली बारी की ही तरह निकल भागा था. बी कंपनी की तरफ बढ़ रही टैंकों की टुकड़ी ने एक टैंक का यह हाल देखा, तो आगे बढ़ना छोड़कर चुपचाप वापस लौट गई थी.

हमीद ने इस वक्त तक दो टैंक ध्वस्त कर दिए थे. आरसीएल गन पर उनकी फोर ग्रेनेडियर्स के भरोसे का सिक्का जम गया था. ठीक ढाई बजे जब पैटन टैंकों ने तीसरा हमला किया था तो उस वक्त उनके निशाने पर बी कंपनी थी. लांस नायक प्रीत सिंह की अगुआई में तीन ग्रेनिडियरों की टीम ने दो और टैंक उड़ा दिए.

दिन भर में टैंकों में हमले के बाद फोर ग्रेनिडियर्स को जीत हासिल हुई थी और नौ टैंक उनके पास थे. चार के अंजर-पंजर आरसीएल गनों ने ढीले कर दिए थे और पांच टैंक ऐसे थे जिनका पाकिस्तानी क्रू उनको सलामत छोड़कर भाग खड़ा हुआ था.

रात को दोनों कंपनी कमांडरों ने मिलकर बारूदी सुरंग बिछाने के ऑर्डर दिए थे. रात भर फोर ग्रेनेडियर्स के सामने वाले इलाके में ऐंटी टैंक माइन्स का जाल बिछा दिया गया था.

अगले दिन यानी 9 सितंबर दिन भर तीन बड़े हमले हुए थे. उनके समय भी वही थे. साढ़े नौ, साढे ग्यारह और दिन के ढाई बजे. उस दिन दो और पैटन टैंकों का अब्दुल हमीद ने शिकार किया था. बाकी के दो पर हवलदार वीर सिंह ने हाथ साफ किया था.

लेकिन 9 सितंबर की इस जीत का मतलब आगे और खतरनाक होने वाला था. कंपनी कमांडर जानते थे कि पाकिस्तानी सेना की पैटन टैंकों की एक पूरी डिवीजन उनपर हमला करेगी.

10 सितंबर की सूरज की पहली किरण के साथ सभी लोग सावधान हो गए थे. सबको इन्फैंट्री यानी पैदल हमले की उम्मीद थी और सभी अपनी खंदकों में अपने बंदूकों की ट्रिगर पर उंगली रखे मुस्तैद थे लेकिन सुबह के साढ़े आठ बजे तक कुछ नहीं हुआ था.

कुछ देर बाद फिजां में एक दफा फिर से टैंकों के लोहे की खड़-खड़ की आवाज गूंजने लगी थी. इसका मतलब था कि पाकिस्तान की तरफ से एक बार फिर टैंकों का हमला हुआ था.

हमीद ने लोडर को कहा थाः बढ़िया से मारअ. एक मारबु नू, तअ इ होई अपन नंबर पांच और दू ठो मंगनी में मिली.

हमीद ने भोजपुरी में जो कहा था उसका मतलब था कि अगर इस टुकड़ी के एक टैंक को मार गिराया गया तो हमेशा की तरह बाकी दो टैंकों के क्रू भाग जाएंगे और वो मुफ्त में मिल जाएंगे. हमीद का अंदाजा सही था. हमीद की जीप से निकले गोले ने जैसे ही एक पैटन टैंक के कल-पुर्जे बिखेरे, पीछे आ रहे दो टैंकों में बैठे पाकिस्तानी फौजी भाग निकले थे. पर हमीद ने जीप को अपनी जगह से हटा लिया था.

लेकिन 10 सितंबर को पाकिस्तानियों ने अगला हमला करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं लिया. हमीद ने अकेले छठा टैंक ध्वस्त किया लेकिन लगातार चल रही गोलीबारी में उन्हें जगह बदलने का मौका नहीं मिल पाया था. हमीद ने सातवें टैंक की तरफ निशाना साधा ही था कि सातवें टैंक के क्रू ने भी इन्हें देख लिया था.

हमीद ने ड्राइवर और लोडर को जीप से उतरने को कहा और आरसीएल गन का ट्रिगर अपने हाथ में ले लिया.

ट्रिगर दोनों तरफ से दबी थी. दो धमाके एक साथ हुए थे. हमीद के गोले का सातवां शिकार बना पैटन टैंक ध्वस्त हो चुका था और टैंक से निकले गोले ने आरसीएल गन वाली जीप को भी ज़र्रा-ज़र्रा बिखेर दिया था. नसीर ने आकर देखा तो हमीद इस दुनिया से जा चुके थे और गोलीबारी की आवाजों के बीच उसे सिर्फ जीप के पास जल रही आग चटकने की आवाज़ें आ रही थी.

नसीर, ज़ख्मी हमीद के पास गया तो वह आख़री सांस ले रहे थे लेकिन चेहरे की मुस्कुराहट में उनकी जीत का परचम था. उखड़ती सांसों के बीच हमीद ने नसीर से कहा थाः सात...पूरे सात.

लड़ाईयों के इतिहास में, जब से टैंक युद्धों में शामिल किए गए पैदल सेना के किसी जवान ने अकेले, कभी इतने सारे टैंक नष्ट नहीं किए थे. यह कारनामा किया 4, ग्रेनेडियर्स के कंपनी क्वॉर्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने, जिन्होंने अपना बलिदान देने से पहले पाकिस्तान के सात पैटन टैंक उड़ा दिए.

इस बहादुरी के लिए अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.