हल्द्वानी मामला: सुप्रीम कोर्ट के विध्वंस पर रोक के बाद बनभूलपुरा में जश्न, आंदोलन स्थगित, लोगों ने कहा-मेरे लिए ईद

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 07-01-2023
हल्द्वानी मामला: सुप्रीम कोर्ट के विध्वंस पर रोक के बाद बनभूलपुरा में जश्न, आंदोलन स्थगित, लोगों ने कहा-मेरे लिए ईद
हल्द्वानी मामला: सुप्रीम कोर्ट के विध्वंस पर रोक के बाद बनभूलपुरा में जश्न, आंदोलन स्थगित, लोगों ने कहा-मेरे लिए ईद

 

आवाज द वॉयस /हल्द्वानी

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में  जश्न का माहौल है. घरों को तोड़े जाने का सामना कर रहे लोग गुरुवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश  पर रोक लगाने के बाद से यहां बांटने और मिठाईयां बांटने का सिलसिला चौबीस घंटे बाद भी बंद नहीं हुआ है.

हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 7 फरवरी को है.खबर मिलते ही एक मस्जिद के सामने धरने पर बैठे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने विरोध खत्म किया. एक-दूसरे को गले लगाया. स्थानीय निवासियों ने चाय बनाना शुरू किया. भीड़ के बीच मिठाई और खजूर बांटे.

कुछ ने जश्न में राष्ट्रीय ध्वज लहराया. बच्चों के एक समूह ने गलत वर्तनी वाले बैनर उठाए, जिसमें लिखा था, धन्यवाद, सुप्रीम कोर्ट. लोगों ने प्रतिक्रिया में कहा,हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है. यह हमारे लिए ईद के जश्न से कम नहीं है. विक्की खान ने कहा, हम शीर्ष अदालत के साथ मीडिया के आभारी हैं, जिन्होंने जमीनी स्थिति दिखाई.

अहमद अली नूरी ने हाड़ कंपा देने वाले मौसम में पिछले दिनों के आंदोलन को याद किया. उन्होंने कहा, विरोध सिर्फ हमारे बारे में नहीं था. यह पूरे हल्द्वानी के बारे में था.उन्होंने कहा,“हल्द्वानी के सभी लोग हमारे साथ खड़े थे. बच्चे हों या बड़े सभी हमारे साथ खड़े रहे. हल्द्वानी और शीर्ष अदालत पर पूरी दुनिया की निगाहें थीं. हर कोई अदालत के आदेश का इंतजार कर रहा था.

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को निवासियों को क्षेत्र खाली करने के लिए एक सप्ताह का नोटिस देने के बाद रेलवे स्टेशन के पास बनभूलपुरा क्षेत्र में भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था.रेलवे ने 4,000से अधिक परिवारों की पहचान की है, जिनके बारे में उसका कहना है कि उन्होंने रेलवे की जमीन पर कब्जा कर लिया है.

नूरी ने कहा कि बनभूलपुरा के निवासियों को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष में फैसला सुनाएगा, लेकिन फिलहाल हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. उन्होंने कहा, हम इससे बहुत खुश हैं.उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट किसी धर्म या जाति का नहीं है. यह सभी के लिए है और यह सभी को न्याय देता है.

रईसुल हसन को भी तत्काल फैसले की उम्मीद थी, लेकिन वह खुश थे कि उच्च न्यायालय के निर्देशों को ताक पर रख दिया गया है. हमें न्याय मिला है. उन्होंने दावा किया कि उनका परिवार 1947 से इलाके में रह रहा है.

एक अन्य निवासी, रूमी वारसी ने दावा किया कि लोग इस क्षेत्र में 140 से अधिक वर्षों से हैं.उन्होंने कहा, जब पूरे हल्द्वानी में केवल 3,000 परिवार रहते थे, तब भी बनभूलपुरा में लाइन नंबर 1 से 17 तक 800 घर थे.जावेद सिद्दीकी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अच्छी बात यह है कि यह हमें और अधिक व्यवस्थित तरीके से अपनी लड़ाई लड़ने के लिए खुद को तैयार करने के लिए अधिक समय देता है.

स्थानीय लोगों का दावा है कि उनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज हैं कि वे जमीन के असली मालिक हैं.मंगलौर के पूर्व कांग्रेस विधायक और एआईसीसी सचिव काजी निजामुद्दीन ने पहले कहा, दो इंटर कॉलेज, स्कूल, अस्पताल, एक ओवरहेड पानी की टंकी, 1970 में बिछाई गई एक सीवर लाइन, एक मस्जिद और मंदिर हैं.

जावेद अहमद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उन्हें बड़ी राहत मिली है. कल रात हम सो नहीं पाए थे. पूरी रात हम यही सोचते रहे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा. फसले के बाद रात को गहरी नींद आई.

उन्होंने कहा, अदालत ने हमारी दलीलें सुनीं. हमारे कागजात की समीक्षा की और राज्य सरकार और रेलवे दोनों को नोटिस जारी कर पूछा कि वे इतनी बड़ी आबादी को केवल सात दिनों में कैसे हटा सकते हैं.उन्होंने कहा कि विरोध अब स्थगित कर दिया गया है. अदालत ने जो आदेश दिया, उसे देखेंगे और फिर अगले कदम पर फैसला करेंगे.

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने यह देखते हुए कि कई कब्जाधारियों का दावा है कि वे 50 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं, ने कहा कि इस मुद्दे का एक मानवीय पहलू है. अधिकारियों को एक व्यावहारिक रास्ता खोजना होगा.

पीठ ने कहा, हम मानते हैं कि उन लोगों को अलग करने के लिए एक व्यावहारिक व्यवस्था आवश्यक है, जिनके पास भूमि पर कोई अधिकार नहीं है.साथ ही पुनर्वास की योजनाएं जो रेलवे की आवश्यकता को पहचानते हुए पहले से ही मौजूद हो सकती हैं.