गुजरात विधानसभा चुनाव 2022: गुजरात के 19 मुस्लिमबहुल सीटों पर कैसे जीती भाजपा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 09-12-2022
गुजरात के 19 मुस्लिमबहुल सीटों पर कैसे जीती भाजपा
गुजरात के 19 मुस्लिमबहुल सीटों पर कैसे जीती भाजपा

 

मंजीत ठाकुर

साथ में, राकेश चौरासिया

गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में प्रचंड बहुमत लेकर आए हैं. लेकिन खास बात यह रही है कि सूबे के मुस्लिम बहुल 19 विधानसभा सीटों में से 15 पर भाजपा ने जीत हासिल की है और इनमें भी 6 सीटें ऐसी हैं जिन पर आजतक कभी भाजपा जीत नहीं पाई थी.

ऐसा लगता है कि गुजरात के मुसलमान मतदाताओं का भी उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले राजनैतिक दलों से मन ऊब चुका है. असल में इसके पीछे की एक वजह राष्ट्रीय स्तर पर पार्टियों के दावों और उनकी हकीकत का बड़ा अंतर है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, गुजरात की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 9.67 प्रतिशत है. उनमें से अधिकतर शहरी इलाकों में रहते हैं और यह हिस्सेदारी 14.75 फीसद है. जबकि ग्रामीण गुजरात में वह बहुत कम करीबन 5.9 फीसद ही हैं. एक अनुमान के मुताबिक, 19 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान मतदाता जीत पर असर डालत हैं.

"2017 में, बहुत बड़ी संख्या में मुसलमानों ने भाजपा और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने में दिलचस्पी जाहिर की थी. इस बार भाजपा ने मुस्लिमबहुल इलाकों में भी जीत का नया रिकॉर्ड कायम किया है. भाजपा ने मुस्लिमबहुल इलाकों की 19 विधानसभा की सीटों में से 15पर अपनी जीत हासिल की है. जहां अच्छी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है."


गौरतलब है कि भाजपा ने एक भी मुसलमान उम्मीदवार को इस बार टिकट नहीं दिया था और कांग्रेस ने चुनावी मैदान में मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था. इसके बावजूद कांग्रेस 19मुस्लिमबहुल इलाकों मेंसे केवल 2 ही सीटों पर जीत हासिल कर पाई है. कांग्रेस ने गुजरात की जमालपुर- खाड़िया और वाडगाम पर अपनी जीत कायम की है.

मुस्लिम इलाकों की सभी 19 सीटों में सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था और कई स्वतंत्र उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे थे. राज्य की लिम्बायत सीट पर कुल 44 उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें से 36 मुस्लिम उम्मीदवार शामिल थे. लेकिन भाजपा की संगीताबेन राजेंद्र पाटिल लिम्बायत सीट से 52 फीसद वोटों के साथ विजयी रहीं हैं. हालांकि, दूसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहे और उन्हें 20 फीसद वोट मिले.

इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार इमरान खेड़ावाला ने जीत हासिल की है. हालांकि 2017 के चुनाव में इमरान खेड़ावाला के अलावा दो मुस्लिम उम्मीदवार एमए पीरजादा ने वांकानेर में और दरियापुर में ग्यासुद्दीन शेख ने जगह बनाई थी. दोनों ही इस बार चुनाव हार चुके हैं.

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) पार्टी के उम्मीदवारों ने महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी वाली 19 में से 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह किसी में भी अपनी जीत हासिल न कर सके. इसके अलावा एकमात्र सीट से एआइएमआइएम ने एकमात्र सीट भुज में 17.36 फीसद वोट हासिल किए हैं. लेकिन यह अभी भी वहां भाजपा की जीत के अंतर से कम है.

आज से कोई 42 साल पहले 1980 में, गुजरात विधानसभा चुनाव नतीजों में अपनी आबादी के अनुपात में मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. उस साल, 12 मुस्लिम विधायक विधानसभा के लिए चुने गए थे. 1985 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 8. 1990 में 2, 1995 में 1, 1998 में 5, 2002 में 3, और 2007 में 5 विधायक विधानसभा के लिए चुने गए और 2012 में सिर्फ दो विधायक विधानसभा तक पहुंच पाए.

हालांकि, 2017 में बहुत सारे मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ने के इच्छुक थे लेकिन कांग्रेस ने भी अपनी दिलचस्पी उनमें नहीं दिखाई.

बाकी राज्यों की ही तरह, 1962 से 2012 तक गुजरात में भी मुस्लिम मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़े पैमाने पर वोट किया था. ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया था. लेकिन पिछले (2017) के विधानसभा चुनावों से भाजपा के चुनाव अभियान में बदलाव दिखा है.

"2012 में भाजपा ने मुस्लिमों के साथ संपर्क बढ़ाया और तब सूबे के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने सद्भावना मिशन की शुरुआत की थी और 36 उपवास रखे थे और नतीजतन, उनकी रैलियों में काफी संख्या में मुसलमानों ने शिरकत की थी. लोकनीति के आंकड़े के मुताबिक, 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 22 फीसद मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया था और एक बड़ा मुस्लिम वर्ग भाजपा के पक्ष में मुड़ गया था."


लेकिन, पिछली बार के मुकाबले इस बार भाजपा ने मुसलमान वोटरों से इस बार कोई सीधी अपील नहीं की ती. और इस बार भाजपा के देशभर के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने चुनाव अभियान को गति दी. ऐसा ही, 2017 में भी हुआ था.

2012 में भी भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था फिर भी लोकनीति के आंकड़ों के मुताबिक, 22 फीसद मुसलमानों ने भाजपा को वोट किया था.

जानकारों का मानना है कि पारंपरिक तौरकरीबन 8 फीसद मुसलमान 2002 के बाद से ही भाजपा को वोट देते रहे हैं. लंबे समय तक, शिया मुसलमान और कारोबारी दाऊदी मुस्लिम भाजपा के पक्ष में रहे हैं. इसी तरह, सुन्नी मुसलमानों ने भी यही नीति अपनाई.

इसी तरह पार्टी के तौर पर कांग्रेस के बिखराब से भी मुस्लिम वोटर थोड़े बिखर गए. लेकिन जो भी हो, मुस्लिम बहुल सीटों पर अधिक सीटें भाजपा के पक्ष में जाने से यह मिथक टूट रहा है कि भाजपा को मुसलमान वोट नहीं देते हैं.