भारतीय कंपनियों के लिए जियोपॉलिटिकल जोखिम बोर्डरूम की सबसे बड़ी चिंता हैं: रिपोर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 13-12-2025
Geopolitical risks top boardroom concerns for Indian companies: Report
Geopolitical risks top boardroom concerns for Indian companies: Report

 

नई दिल्ली
 
MGC ग्लोबल रिस्क एडवाइजरी की एक रिपोर्ट, 'द ग्लोबल रिस्क एटलस - न्यू रियलिटीज़' के अनुसार, भू-राजनीतिक अस्थिरता इंडिया इंक. के लिए सबसे बड़ा भविष्य का जोखिम बनकर उभरी है, जिसमें लगभग 50 प्रतिशत CXO ने इसे अगले पांच सालों में सबसे गंभीर खतरा बताया है। यह रिपोर्ट 45 अर्थव्यवस्थाओं के 125 से ज़्यादा CXO की राय पर आधारित है, जो पांच क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जिनमें मैन्युफैक्चरिंग, सर्विसेज़, BFSI, डिजिटल, कंज्यूमर और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर शामिल हैं। इसमें पाया गया कि 70 प्रतिशत बिज़नेस लीडर्स नौ प्रमुख जोखिम श्रेणियों में से छह में "लगातार अस्थिरता" की उम्मीद करते हैं, जबकि 59 प्रतिशत ने साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों को बोर्ड-स्तर की सबसे बड़ी चिंता बताया।
 
एटलस में यह भी बताया गया है कि AI गवर्नेंस मॉडल बायस, गलत सूचना और रेगुलेटरी अनिश्चितता से जुड़ी चिंताओं के कारण ESG को पीछे छोड़कर बोर्डरूम की एक प्रमुख प्राथमिकता बन गया है। लगभग दो-तिहाई कंपनियों ने टैलेंट, इनोवेशन और डिजिटल क्षमताओं में महत्वपूर्ण कमियों को स्वीकार किया, जो भविष्य के झटकों को बढ़ा सकती हैं।
 
MGC ग्लोबल रिस्क एडवाइजरी के मैनेजिंग पार्टनर, मोनिश गौरव चतरथ ने कहा कि भू-राजनीतिक बदलाव, तकनीकी व्यवधान और मैक्रोइकोनॉमिक रीअलाइनमेंट एक नई वैश्विक जोखिम वास्तुकला में मिल रहे हैं, जिसके लिए कंपनियों को समय-समय पर संकट प्रतिक्रिया से संस्थागत लचीलेपन की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
 
"हम एक निर्णायक मोड़ पर हैं जहाँ भू-राजनीतिक बदलाव, तकनीकी व्यवधान और मैक्रोइकोनॉमिक रीअलाइनमेंट एक नई जोखिम वास्तुकला में मिल रहे हैं।" चतरथ ने कहा। एटलस के अनुसार, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, निर्माताओं और B2B फर्मों के लिए भू-राजनीतिक जोखिम का खतरा सबसे ज़्यादा है, जो सीमा पार पूंजी, ऊर्जा और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर हैं, जबकि घरेलू फर्मों को मुद्रा, कमोडिटी और मांग चैनलों के माध्यम से अप्रत्यक्ष प्रभावों का सामना करना पड़ता है।
 
यह अध्ययन 45 अर्थव्यवस्थाओं में विकसित हो रहे जोखिम प्रक्षेपवक्रों का मानचित्रण करता है और इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारतीय कंपनियाँ "स्थायी संकट" के युग में प्रवेश कर चुकी हैं, जो भू-राजनीति, मैक्रोइकोनॉमिक्स, विनियमन, प्रतिभा और डिजिटल व्यवधान तक फैले पुराने और आपस में जुड़े जोखिमों से चिह्नित है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बोर्डों के लिए साइबर सुरक्षा भौतिक सुरक्षा से आगे निकलकर सबसे सक्रिय जोखिम-नियंत्रण फोकस बन गई है, जो व्यवस्थित साइबर घटनाओं के बढ़ते खतरे को दर्शाता है।