Geological Survey of India hosts national conference to ramp up focus on critical minerals
नई दिल्ली
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के 175वें स्थापना दिवस समारोह के एक भाग के रूप में, मध्य प्रदेश के जबलपुर में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों को सुरक्षित करने की भारत की बढ़ती आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया। 7 अगस्त को शुरू हुए इस दो दिवसीय कार्यक्रम में हितधारकों, नीति निर्माताओं, शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग जगत के नेताओं ने भारत के खनिज भविष्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक मंच तैयार किया।
उद्घाटन सत्र में बोलते हुए, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलपति और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. राजेश कुमार वर्मा ने अन्वेषण में तेज़ी लाने और खनिज आयात पर भारत की निर्भरता कम करने की सख़्त ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि जीएसआई का योगदान देश के खनिज क्षेत्र के आधारभूत ढाँचे को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण रहा है।
जीएसआई के महानिदेशक, असित साहा ने 175 वर्षों में संगठन के विकास पर प्रकाश डाला, जिसमें शुरुआती कोयला अन्वेषण से लेकर उन्नत भूवैज्ञानिक क्षेत्रों में एक विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्था बनने तक का सफर शामिल है। उन्होंने राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन के महत्व पर ज़ोर दिया और बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के प्रति आगाह किया। उन्होंने भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और तकनीकी प्रगति सुनिश्चित करने के लिए जीएसआई, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच घनिष्ठ सहयोग का आग्रह किया।
इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए, मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (एमईसीएल) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक आई.डी. नारायण ने जाम्बिया में परियोजनाओं सहित एमईसीएल और जीएसआई के बीच संयुक्त अन्वेषण प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने नवाचार और साझेदारी के माध्यम से भारत की भूवैज्ञानिक संभावनाओं को रणनीतिक संसाधन शक्ति में बदलने का आह्वान किया। उन्होंने भारत की खनिज क्षमता को मूर्त संपत्तियों में परिवर्तित करने में आत्मनिर्भरता के साझा दृष्टिकोण को रेखांकित किया।
परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (एएमडी) के निदेशक धीरज पांडे ने देश के ऊर्जा और डिजिटल क्षेत्रों को सहयोग देने में परमाणु और दुर्लभ मृदा खनिजों की अपरिहार्य भूमिका की ओर इशारा किया। उन्होंने जीएसआई के सक्रिय रुख की सराहना की और छिपी हुई खनिज संपदा को उजागर करने के लिए एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की वकालत की।
पूरे दिन तकनीकी सत्रों में खनिज प्रणाली मॉडलिंग, अन्वेषण उपकरण, पुनर्चक्रण और सतत खनन जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जिससे राष्ट्रीय विकास में भूविज्ञान की भूमिका की बढ़ती मान्यता पर बल मिला। शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने खनिज सुरक्षा के लिए भविष्य की रणनीति को आकार देने के उद्देश्य से निष्कर्ष प्रस्तुत किए।