रमजाम का मुबारक महीना अब अपने अंतिम दौर में है. इससे पहले सभी मुसलमान ईद की तैयारियों में जुट गए हैं. इस मौके पर मुस्लिम महिलाएं भी ईद की खुशियों को दोगुना करने के लिए बाजारों में खरीदारी के लिए पहुंच रही है. ईद से पहले बाजारों में रौनक बढ़ गई है. इस बीच मुस्लिम उलेमा ने एक बड़ा बयान देते हुए लोगों से गुनाहों से बचने की खास अपील की है.
ईद उल फितर से पहले मुस्लिम महिलाएं और बच्चे नए कपड़े, जूते समेत अन्य फैशन के सामान खरीदते हैं. उलेमा के मुताबिक, फैशन के इस दौर वह कई गुनाह भी कर देते हैं. इसी तरह का एक गैर इस्लामी चलन जो आजकल मुस्लिम महिलाओं में खूब मशहूर है, वह गैर महरम मर्दों से मेंहदी लगवाना. इसको सिरे से खत्म करने लिए उलेमा, साजामिक हस्तियों और वालिदैन से खास अपील की गई है.
दरअसल, मौजूदा वक्त रमजान के मुबारक महीने में मुस्लिम महिलाएं गैर मर्दों से अपने हाथों में घंटों तक मेंहदी की डिजाइन बनवाती हैं. इतना ही नहीं गैर-मर्द उनके पैरों की उंगलियों पर भी अपना हुनर आजमाते हैं और उन्हें रंगीन बना देते हैं. उलेमा के मुताबिक, यह सिर्फ बेहयाई और बेशर्मी के अलावा कुछ नहीं है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि दिल्ली के बाजारों, होटलों, शॉपिंग मॉल्स और बिजनेस हब के बाहर इस तरह की तस्वीरें आम हैं.
उलेमा ने इसके लिए वालिदैन और इस्लाम के धार्मिक शिक्षा से दूरी को जिम्मेदार बताया है. ईद उल फितर पर महिलाएं गैर महरम मर्दों के हाथों से मेंहदी डिजाइन करवाती हैं. जामा मस्जिद, चांदनी चौक, करोल बाग, इंदरलोक, ओखला, हिंदू राव, पहाड़ी धीरज, सदर बाजार, दरियागंज सहित कई इलाकों में महिलाओं के लिए खासतौर पर मेहंदी डिजाइनिंग की व्यवस्था की जा रही है. बताया जा रहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथों पर मेहंदी डिजाइन बनाने के लिए एक्सपर्ट गैर मुस्लिम नौजवान को दूसरे इलाकों से यहां पर बुलाया जाता है.
यह गैर मुस्लिम नौजवान मेहंदी डिजाइनर इतने माहिर होते हैं कि मुस्लिम महिलाएं बहुत ही पुरसुकून और उमंग के साथ उनके हाथों में हाथ देकर मेंहदी लगवाती हैं. महिलाओं में एक दूसरे बेहतर और खूबसूरत दिखने की होड़ में वह बड़ा गुनाह कर बैठती हैं. इसमें वालिदैन के साथ उनके भाई भी इस गुनाह में बराबर शरीक रहते हैं और वह बड़े ही फख्र से मेहंदी लगाने के लिए बहन बेटियों का हाथ गैर मुस्लिम नौजवानों के हाथ में सौंप देते हैं. रमजान का आखिरी अशरा में जिसका दीनी ऐतबार से काफी अहम माना जाता है, इस दौरान भी वह अपनी बहन बेटियों को गैर महरम के हाथ में हाथ रखकर बैठे हुए चुपचाप देखते रहते हैं.
राष्ट्रीय सहारा में छपी खबर के मुताबिक, जामा मस्जिद दिल्ली के मुफस्सिर-ए-कुरान मुफ्ती मोहम्मद ओवैस खान नदवी और अल्लामा कारी फारूक मजरुल्लाह नक्शबंदी ने इस पर गहरी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के जरिये गैर-मुस्लिम मर्दों से मेहंदी लगवाना बेहद अफसोसनाक और निंदनीय है. यह न सिर्फ गैर-इस्लामी है बल्कि शरीयत के भी खिलाफ है.
उन्होंने आगे कहा कि हालिया दिनों में मुस्लिम समाज में गैर मर्दों से मेहंदी लगवाने का बढ़ता चलन शर्म और हया को खत्म कर रहा है. वालिदैन ने इस मामले पर अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, जिससे समाज में एक नई समस्या जन्म ले रही है. इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है, इस तरह के अमल से कौम को बचाना बहुत जरुरी हो गया है.
उलेमा के कहा कि खास त्योहारों पर मेहंदी लगवाना अच्छी बात है, लेकिन हमारे आसपास ही कई गरीब और जरूरतमंद बच्चियां और महिलाएं हैं. अगर वे उनसे मेहंदी लगवाएंगी, तो न सिर्फ उनकी माली हालत बेहतर होगी, बल्कि उन्हें समाज में सिर उठाकर जीने का हौसला भी मिलेगा.
मशहूर आलिम-ए-दीन मौलाना कारी हाजी मोहम्मद शाहीन कासमी, मौलाना सैयद शकील अहमद और शिया आलिम मौलाना सैयद अली हैदर नकवी ने इस तरह के ट्रेंड पर चिंता जताई है. उलेमा ने ऐसी महिलाओं की कड़ी आलोचना की जो रमजान में रोजा और नमाज का सख्ती से पालन तो करती हैं, लेकिन गैर-इस्लामी अमल को अपनाकर इसकी पवित्रता और गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं.
उलेमा के मुताबिक, यह जरूरी नहीं कि सिर्फ गैर-मुस्लिम लड़के ही अच्छी मेहंदी डिजाइन बनाते हों, हमारे समाज में भी कई मुस्लिम लड़कियां हैं, जो मध्यम वर्ग से आती हैं और मेहंदी डिजाइन में माहिर हैं. हमें ऐसी मुस्लिम महिलाओं को ही प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे उनकी भी ईद की खुशियों को दोगुनी हो जाए और वह अपनी जरुरत को पूरी कर सकें