देवरियाः मुख्तार खान के वंशज ‘नीलकंठ’ न लाएं, तो कैसे मनेगा दशहरा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 05-10-2022
देवरियाः मुख्तार खान के वंशज ‘नीलकंठ’ न लाएं, तो कैसे मनेगा दशहरा
देवरियाः मुख्तार खान के वंशज ‘नीलकंठ’ न लाएं, तो कैसे मनेगा दशहरा

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-लखनऊ

देवरिया जिले के एक गांव में दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव और एकता की अनूठी मिसाल सामने आई है. यहां, मुसलमान अपने अद्वितीय हावभाव के माध्यम से अपने हिंदू भाइयों के लिए दशहरा उत्सव को संभव बनाते हैं. रामनगर गांव का मुस्लिम समुदाय नीली गर्दन वाले पक्षी की तलाश में नौ दिनों तक मेहनत करते हैं, जिसे ‘नीलकंठ’ के नाम से जाना जाता है और दशहरे से एक दिन पहले ‘नवमी’ पर गांव में लाया जाता है और दशहरे का उत्सव तभी शुरू होता है, जब हिंदू समाज नीलकंठ के दर्शन कर लेता है.

आम धारणा के अनुसार, दशहरे के दिन नीलकंठ का दर्शन करना शुभ होता है, क्योंकि भगवान राम ने राक्षस राजा रावण को नष्ट करने और देवी सीता को अपनी कैद से वापस लाने से सबसे पहले इस पक्षी के दर्शन किए थे.

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न्यूइंडियनएक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण रामचंद्र यादव कहते हैं, ‘‘इस परंपरा की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि एक मुस्लिम परिवार नीलकंठ के दर्शन को संभव बनाता है. इसके दर्शन के बिना, हम दशहरा पूजा और अन्य समारोह शुरू नहीं कर सकते. यह इस गांव की 250 साल पुरानी परंपरा रही है.’’

यादव कहते हैं, ‘‘इसमें दशहरा उत्सव में मुस्लिम समुदाय को समान उत्साह के साथ शामिल किया जाता है, जो इसे इस छोटे से गांव में दो समुदायों के बीच मौजूद सौहार्द और आपसी सद्भाव का एक शानदार उदाहरण बताते हैं. दिवंगत मुख्तार खान का परिवार वर्षों से अनूठी परंपरा को निभा रहा है.’’

एक पूर्व पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘मुख्तार कड़ी मेहनत के बाद हर साल नीलकंठ लाते थे और दशहरा का जश्न शुरू करवाते थे. अब उनकी पत्नी जिस्मारा जिम्मेदारी से निभा रही हैं.’’ ग्रामीणों के अनुसार, जिस्मारा के परिवार के सदस्य दशहरे से लगभग 10 दिन पहले ‘नीलकंठ’ की तलाश में घर से निकल जाते हैं और दशहरे से कम से कम एक दिन पहले पक्षी के साथ गांव लौटते हैं. 

जिस्मारा कहती हैं, ‘‘दशहरा जानवरों और पक्षियों के प्रति दया दिखाने के बारे में सिखाता है, क्योंकि सीता को रावण की कैद से वापस लाने के प्रयास में बहुत सारे जानवर और पक्षी भगवान राम के साथ शामिल हुए थे.’’ ग्रामीणों का कहना है कि दशहरे के दिन सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को नीलकंठ के दर्शन करने के लिए बनाया जाता है और शाम को हिंदू और मुस्लिम दोनों सहित प्रत्येक परिवार, गांव हनुमान मंदिर में इकट्ठा होता है और एक साथ भजन करता है.

गांव के स्कूल में षिक्षक अजय सिंह ने बताया, ‘‘लियाकत अली हनुमान मंदिर में भगवान राम और देवी सीता को समर्पित भजन गाने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं और हिंदू भक्त सिर्फ उनका अनुसरण करते हैं. रात में, इसकी पूजा करने के बाद, पक्षी नीकंठ, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिनिधि है, फिर दशहरे की रात को मुक्त कर दिया जाता है.’’