मुंबई
महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव आयोग से राज्य में मतदाता सूची के विशेष व्यापक संशोधन (SIR) को जनवरी 2026 तक स्थगित करने का अनुरोध किया है, क्योंकि आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के कारण अधिकारी इस समय चुनाव कार्यों में व्यस्त रहेंगे।
राज्य चुनाव आयोग ने 9 सितंबर को लिखे अपने पत्र में कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों के संचालन में अधिकारी पूरी तरह लगे होंगे। आयोग ने याद दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय ने 6 मई 2025 के आदेश में राज्य चुनाव आयोग को महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव चार महीनों के भीतर सम्पन्न कराने का निर्देश दिया है, साथ ही आवश्यकतानुसार समय बढ़ाने की अनुमति भी दी है।
महाराष्ट्र में 29 नगरपालिका निगम, 247 नगर परिषद, 42 नगर पंचायतों (कुल 147 में से), 32 जिला परिषदों (34 में से), और 336 पंचायत समितियों (351 में से) के चुनाव होने हैं, जिनका संचालन जनवरी 2026 तक जारी रहने की संभावना है।
चुनाव आयोग ने बताया कि विशेष व्यापक संशोधन और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए जिम्मेदार अधिकारी एक ही होंगे, जिनमें उप कलेक्टर और तहसीलदार शामिल हैं, जो चुनाव अधिकारियों के रूप में तैनात हैं। इसलिए, आयोग ने अनुरोध किया है कि यदि किसी भी प्रकार का SIR कार्यक्रम योजना में है तो उसे कम से कम जनवरी 2026 के अंत तक स्थगित किया जाए।
पहले सितंबर की पहली सप्ताह में भी राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव आयोग को सूचित किया था कि वह जनवरी 2026 तक SIR कराने में असमर्थ है, जब चुनाव आयोग पूरे राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारियों की एक सम्मेलन आयोजित करने वाला था।
राज्य चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि जिला परिषदों और पंचायत समितियों के वार्ड सीमांकन का कार्य पूरा हो चुका है, जबकि नगरपालिका निगमों, नगर परिषदों और नगर पंचायतों के वार्ड सीमांकन की प्रक्रिया शीघ्र ही पूरी हो जाएगी। इसके बाद संबंधित अधिकारियों को विधानसभा मतदाता सूची के विभाजन का कार्य करना होगा। इसके बाद ही चुनावों का संचालन किया जाएगा।
विशेष व्यापक संशोधन (SIR) में मतदाता सूची का घर-घर जाकर पूरी तरह से नया तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में हर घर का दौरा कर उस तिथि तक पात्र मतदाताओं की जानकारी एकत्रित की जाती है, बिना मौजूदा मतदाता सूचियों के संदर्भ के। यह तब किया जाता है जब चुनाव आयोग यह तय करता है कि वर्तमान सूची पुरानी, गलत या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।
बिहार में जून 2025 में विधानसभा चुनाव से पहले SIR का आदेश दिया गया था, जिसमें मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए 11 दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना आवश्यक था। इस कदम की विपक्षी दलों ने काफी आलोचना की और इसे अदालत में चुनौती दी गई।
विपक्षी दलों का कहना था कि बिहार में यह प्रक्रिया कई पंजीकृत मतदाताओं को वोटिंग से बाहर रखने का प्रयास थी।