नई दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें रेड फोर्ट विस्फोट मामले की सुनवाई के हर चरण की निगरानी के लिए कोर्ट-सुपरवाइज्ड कमेटी बनाने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया था कि मुकदमे की सुनवाई रोजाना की आधार पर हो और मासिक प्रगति रिपोर्ट न्यायिक निकाय को प्रस्तुत की जाए।
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुशार राव गेडेला की बेंच ने याचिका को असमय करार देते हुए कहा कि ट्रायल अभी शुरू भी नहीं हुआ है। बेंच ने कहा, “ट्रायल शुरू नहीं हुआ और आप चाहते हैं कि हम इसकी निगरानी करें? निगरानी तब प्रासंगिक होती है जब मामले सालों तक लंबित रहते हैं, ट्रायल शुरू होने से पहले नहीं।”
न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन साबित नहीं किया, जो कोर्ट की हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त हो। अतः ट्रायल शुरू होने से पहले ऐसे असाधारण हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं पाया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कोर्ट की निगरानी पीड़ित परिवारों को भरोसा दिलाएगी, क्योंकि पहले के आतंकवादी मामलों में वर्षों तक देरी होती रही है और पूर्व रेड फोर्ट आतंकवादी मुकदमे में भी कई साल लग गए थे।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए ASG चेतन शर्मा ने कहा कि याचिका भ्रामक है क्योंकि जांच अब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है और इसे NIA को ट्रांसफर किया जा चुका है। ट्रायल UAPA के तहत संचालित होगा।
बेंच ने स्पष्ट किया कि इस चरण में कोई निर्देश जारी नहीं किए जाएंगे। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली।
इस PIL को पूर्व विधायक पंकज पुष्कर ने दायर किया था। इसमें मांग की गई थी कि कोर्ट-सुपरवाइज्ड तंत्र द्वारा ट्रायल के सभी चरणों की निगरानी की जाए और इसे छह महीने के भीतर पूरा किया जाए। याचिका में कहा गया कि रेड फोर्ट विस्फोट राष्ट्रीय संप्रभुता पर हमला था और पीड़ित परिवार आज भी “सत्य के अधिकार” से वंचित हैं, जो याचिका के अनुसार अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के अधिकार का हिस्सा है।