इंसानियत की नजर में बराबरी: विकलांगता नहीं, सम्मान पहले

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-12-2025
Equality in the eyes of humanity: Respect comes first, not disability
Equality in the eyes of humanity: Respect comes first, not disability

 

सनिया अंजुम

हर साल 3 दिसंबर को दुनिया अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस मनाती है। यह दिन हमें केवल समानता और पहुंच की वैश्विक कोशिशों की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह भी समझाता है कि हम सबकी एक-दूसरे के प्रति नैतिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी है। मुस्लिम समुदाय के लिए समावेशन की सोच कोई नई या आधुनिक बात नहीं है, बल्कि यह हमारी अपनी धार्मिक शिक्षाओं में गहराई से मौजूद है। क़ुरआन और सुन्नत ने बहुत पहले ही इंसान की गरिमा, न्याय और करुणा को हर व्यक्ति का अधिकार बताया है, चाहे उसकी शारीरिक या मानसिक स्थिति कैसी भी हो।

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क़ुरआन कहता है कि “हमने आदम की संतान को सम्मान दिया है।” यह सम्मान किसी बाहरी रूप-रंग या काम करने की क्षमता पर नहीं, बल्कि इंसान होने पर आधारित है। क़ुरआन में (24:61) स्पष्ट बताया गया है कि विकलांगता से व्यक्ति का धार्मिक, सामाजिक या सामुदायिक महत्व कम नहीं होता।

पैग़ंबर मोहम्मद ﷺ ने भी हमेशा यह सिखाया कि अल्लाह इंसान की बाहरी शक्ल-सूरत नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई और नीयत को देखता है। पैग़ंबर ﷺ का व्यवहार अलग-अलग क्षमताओं वाले साथियों के साथ बेहद सम्मानजनक, संवेदनशील और सहयोगी था।

इस्लाम की शिक्षा यही है कि समाज में हर व्यक्ति को बराबर का अवसर मिलना चाहिए और Accessibility सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जिम्मेदारी है। इस्लामी इतिहास में अब्दुल्लाह इब्न उम्मे मक्तूम (रज़ि.) एक बड़ी मिसाल हैं। वे दृष्टिहीन थे, लेकिन उन्हें मुअज्ज़िन बनाया गया और दो बार मदीना का कार्यभार भी सौंपा गया।

इससे यह साबित होता है कि नेतृत्व और क्षमता बाहरी रूप से तय नहीं होती, बल्कि ईमानदारी, गुण और योग्यता से होती है। आज भी कई प्रेरक उदाहरण सामने आते हैं-पैरा-एथलीट नए रिकॉर्ड बना रहे हैं, दृष्टिबाधित वैज्ञानिक शोध का नेतृत्व कर रहे हैं, और बधिर उद्यमी सफल व्यवसाय चला रहे हैं।

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तकनीक जैसे AI आधारित पढ़ने के उपकरण, आधुनिक कृत्रिम अंग और सहायक साधन लाखों लोगों को स्वतंत्रता दे रहे हैं। भारत में भी कई उपलब्धियाँ देखने को मिलती हैं-दृष्टिबाधित छात्र UPSC में सफल हो रहे हैं, व्हीलचेयर खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, और अधिकार-आधारित आंदोलन पहुंच को दया नहीं, बल्कि अधिकार की तरह मांग रहे हैं। भारत में RPwD Act 2016 के बाद विकलांगता से जुड़े अधिकार मजबूत हुए हैं।

स्कूलों में सांकेतिक भाषा, सहायक उपकरण और समावेशी कक्षाएं बढ़ रही हैं। शहरों में मेट्रो, बसें, इमारतें और सार्वजनिक स्थान धीरे-धीरे एक्सेसिबल हो रहे हैं। फिल्मों और मीडिया में भी अब विकलांग व्यक्तियों को दया के पात्र नहीं, बल्कि सक्रिय और सक्षम रूप में दिखाया जा रहा है।

फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ, सहायक उपकरण और शिक्षा की कमी है। सामाजिक कलंक भी एक बड़ी रुकावट है, खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए। इन मुश्किलों को देखते हुए समझ आता है कि सिर्फ कानून काफी नहीं, समाज की सोच और व्यवहार भी बदलना ज़रूरी है।

2024 में डॉ. शिवानी गुप्ता को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की विकलांगता सलाहकार समिति में शामिल किया गया। वे व्हीलचेयर उपयोगकर्ता हैं और वर्षों से एक्सेसिबिलिटी की प्रमुख आवाज़ रही हैं। उन्होंने सार्वजनिक परिवहन, कार्यस्थल में सुविधाएँ और आपदा प्रबंधन में विकलांग व्यक्तियों के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ बनाने में योगदान दिया है।

उनका चयन दिखाता है कि असली अनुभव किसी भी नीति के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है। समावेशन दया नहीं, बल्कि साझा मानवता की पहचान है। जब विकलांग व्यक्ति समाज में पूरी भागीदारी करते हैं तो पूरा समुदाय अधिक मजबूत, संवेदनशील और रचनात्मक बनता है।

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Accessibility का लाभ सिर्फ विकलांग व्यक्तियों को नहीं, बल्कि बुजुर्गों, बच्चों, चोटिल लोगों और सभी को मिलता है। हम सभी सालभर इन तरीकों से योगदान दे सकते हैं—सम्मानजनक भाषा का उपयोग करना, स्कूलों और कार्यस्थलों को एक्सेसिबल बनाना, जरूरी सुविधाओं को बोझ नहीं बल्कि अधिकार समझना, नीतियों में विकलांग व्यक्तियों की आवाज़ शामिल करना, और उनकी बातों को ध्यान से सुनना व आगे बढ़ाना।

इस्लाम की नज़र में यह नेकी का काम है और पैगंबर ﷺ की उस सुन्नत को आगे बढ़ाता है जिसमें वे कमजोर माने जाने वाले लोगों को उठाते, बाधाएँ हटाते और बराबरी स्थापित करते थे। मेरे लिए कमजोर और जरूरतमंद समुदायों के साथ काम करने ने यह समझाया कि विकलांगता किसी व्यक्ति की कमी नहीं होती, बल्कि कई बार समाज की कमी होती है कि वह उन्हें सक्षम माहौल नहीं दे पाता।

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इस पर लिखना मेरे लिए समाज को अधिक संवेदनशील, पहुंच-सक्षम और न्यायपूर्ण दिशा देने की एक कोशिश है। यह अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस हमें याद दिलाता है कि सम्मान, समानता और समावेशन को सिर्फ साल में एक बार नहीं, बल्कि हर दिन जीना चाहिए, ताकि ये मूल्य नारे नहीं, बल्कि समाज की असली पहचान बनें।