नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के अध्यक्ष द्वारा बिहार ओलंपिक संघ के मामलों के प्रबंधन के लिए पांच सदस्यीय तदर्थ समिति के गठन के आदेश को रद्द कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह आदेश कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने सोमवार को पारित आदेश में कहा, "मुझे लगता है कि बिहार ओलंपिक संघ के मामलों की देखभाल के लिए" तदर्थ समिति के गठन में आईओए के अध्यक्ष की ओर से की गई कार्रवाई कानून की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है. इसलिए 01.01.2025 का विवादित आदेश रद्द किया जाता है."
अदालत ने निर्देश दिया, "1 जनवरी के विवादित आदेश को रद्द करते हुए, यह अदालत याचिकाकर्ता बिहार ओलंपिक संघ के वकील द्वारा दिए गए बयान को रिकॉर्ड में लेती है कि बिहार ओलंपिक संघ के संविधान में संशोधन करने के लिए शीघ्र और तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए ताकि इसे आईओए संविधान और भारत के राष्ट्रीय खेल विकास संहिता, 2011 के अनुरूप बनाया जा सके और बिहार ओलंपिक संघ की कार्यकारी समिति के सदस्यों के चुनाव के लिए शीघ्रता से चुनाव कराए जाएं.
उपरोक्त कार्य आज से तीन महीने की अवधि के भीतर किए जाएं, ऐसा न करने पर, आईओए याचिकाकर्ता के खिलाफ निलंबन और/या आईओए के संविधान के अनुच्छेद 6.1.5 और/या किसी अन्य प्रावधान के तहत विचारित किसी भी तरह के उपाय सहित उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा." अदालत का यह निर्देश बिहार ओलंपिक संघ द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जारी किया गया. याचिका में भारतीय ओलंपिक संघ के फैसले को चुनौती दी गई और तदर्थ समिति को भंग करने की मांग की गई, विशेष रूप से आगामी 38वें राष्ट्रीय खेलों को ध्यान में रखते हुए, जो 28 जनवरी से 14 फरवरी तक होने वाले हैं.
बिहार ओलंपिक संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने प्रस्तुत किया कि आईओए के अध्यक्ष के पास एकतरफा आयोग या समिति नियुक्त करने की शक्ति नहीं है; ऐसी शक्ति केवल महासभा के पास है. आईओए के वकील के अनुसार, अनुच्छेद 15.1.4 इस मामले पर लागू नहीं होता है, क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ की गई कार्रवाई को आईओए संविधान के तहत अनुशासनात्मक उपाय नहीं माना जाता है. हालांकि, आईओए अध्यक्ष के पास अनुच्छेद 15.1.5 के साथ अनुच्छेद 17 के तहत एक समिति या आयोग बनाने का अधिकार है, और इसे आईओए संविधान के अनुच्छेद 17.5 और नियम 15.1.5 के अनुसार गठन के बाद अनुमोदित किया जा सकता है.