मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई बोले: न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद में न बदले

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 12-06-2025
Chief Justice B.R. Gavai said: Judicial activism should not turn into judicial terrorism
Chief Justice B.R. Gavai said: Judicial activism should not turn into judicial terrorism

 

नई दिल्ली

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने कहा है कि न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) एक स्थायी वास्तविकता है, लेकिन इसे "न्यायिक आतंकवाद" (Judicial Terrorism) में बदलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर और केवल तभी किया जाना चाहिए, जब कोई कानून संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने एक कानूनी समाचार पोर्टल के सवाल के जवाब में कहा,

“न्यायिक सक्रियता हमेशा बनी रहेगी। लेकिन यह न्यायिक आतंकवाद में न बदल जाए, इसका ध्यान रखना चाहिए। कभी-कभी न्यायपालिका अपनी सीमाओं से आगे बढ़ने लगती है और उन क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने लगती है, जहां उसे सामान्यतः नहीं जाना चाहिए।”

लंदन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन में ‘From Representation to Realisation: Embodying the Constitution's Promise’ विषय पर बोलते हुए CJI गवई ने भारतीय संविधान को “स्याही में रचा गया शांत क्रांति का दस्तावेज़” बताया और कहा कि यह संविधान सिर्फ अधिकार नहीं देता, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को सशक्त भी करता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचने वाले दूसरे दलित और पहले बौद्ध न्यायाधीश के रूप में उन्होंने संविधान के सामाजिक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा:

“बहुत समय पहले, भारत के करोड़ों नागरिकों को ‘अछूत’ कहा जाता था। उन्हें अपवित्र बताया जाता था, समाज से बहिष्कृत किया जाता था, और उनकी आवाज़ को दबा दिया जाता था।

लेकिन आज, उन्हीं समुदायों से आने वाला एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठकर खुले मंच पर बोल रहा है।”

CJI गवई का यह बयान संविधान के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों, न्यायपालिका की मर्यादा और उसकी सीमाओं पर संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।