बाराबंकीः सौ साल पुरानी मस्जिद ढहाने पर मुस्लिम संगठनों ने जताई नाराजगी, डीएम ने कहा- कोर्ट के आदेश का हुआ पालन
आवा द वाॅयस / नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की रामसनेही घाट तहसील परिसर में बनी सौ साल से अधिक पुरानी मस्जिद को पुलिस-प्रशासन द्वारा ढहाने का मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा गया कि कोविड के समय अतिक्रमण की कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए गए हैं.
बावजूद इसके सौ साल से अधिक पुरानी मस्जिद जिला प्रशासन ने ढहा दी. मुस्लिम संगठनों की ओर से दोषी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है. मामले को लेकर उलेमा ने मुख्यमंत्री के सचिव को ज्ञापन भी सौंपा है.
मुस्लिम धर्मगुरू मोहम्मद साबिर अली रिजवी ने कहा कि बाराबंकी जिले की रामसनेहीघाट तहसील में स्थित एक सदी पुरानी मस्जिद को ढहा दिया गया. तहसील स्थित गरीब नवाज मस्जिद को प्रशासन ने बिना किसी कानूनी औचित्य के सोमवार रात पुलिस के कड़े पहरे में गिरा दिया.
मस्जिद उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधाीन है.इस सिलसिले में किसी किस्म का कोई विवाद नहीं है. उन्होंने इसपर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार से इसके जिम्मेदार अफसरों को निलंबित कर मामले की न्यायिक जांच कराने और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की है.
इस मामले से जुड़े सोशल एक्टिविस्ट ने बताया कि मार्च में रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी ने मस्जिद कमेटी से मस्जिद से संबंधित कागजात मांगे थे. इस नोटिस के खिलाफ मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी और अदालत ने समिति को 18 मार्च से 15 दिन के अंदर जवाब दाखिल करने की मोहलत दी थी.
अप्रैल में जवाब दाखिल कर दिया गया. इसके बावजूद बगैर किसी सूचना के एकतरफा कार्रवाई करते हुए जिला प्रशासन ने मस्जिद गिरा दी. यह सरासर गलत है. उलेमा की ओर से मांग की गई कि संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के साथ मस्जिद के मलबे को वहां से न हटाया जाए.
साथ ही मस्जिद की जमीन पर कोई और निर्माण खड़ा नहीं होने दिया जाए. उनकी ओर से कहा गया कि सरकार का फर्ज है कि वह इस जगह पर मस्जिद का निर्माण कर मुसलमानों के हवाले करे. दूसरी तरफ,कार्रवाई के संबंध में डीएम डा. आदर्श सिंह की दलील है कि तहसील परिसर में उपजिला मजिस्ट्रेट के आवास के सामने अवैध रूप से बने अवैध आवासीय परिसर के संबंध में कोर्ट ने संबंधित पक्षकारों को 15 मार्च 2021 को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया था.
नोटिस तामील होते ही परिसर में निवास कर रहे लोग परिसर छोड़कर फरार हो गए. इसके बाद सुरक्षा की दृष्टि से 18 मार्च 2021 को तहसील प्रशासन द्वारा अपना कब्जा प्राप्त कर लिया. डीएम ने कहा कि माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ लखनऊ द्वारा इस मामले को निस्तारित करने पर यह सिद्ध हुआ कि आवासीय निर्माण अवैध है.