एक घटना ने बदल दी अजहर मकसूसी की जिंदगी, मिला किंगडम पुरस्कार

Story by  गिरिजाशंकर शुक्ला | Published by  [email protected] | Date 11-07-2021
एक घटना ने बदल दी अजहर मकसूसी की जिंदगी, मिला किंगडम पुरस्कार
एक घटना ने बदल दी अजहर मकसूसी की जिंदगी, मिला किंगडम पुरस्कार

 

गिरिजा शंकर शुक्ला  / हैदराबाद
 
एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सानी वेलफेयर फाउंडेशन चलाने वाले शहर के सामाजिक कार्यकर्ता अजहर मकसूसी को यूनाइटेड किंगडम के कॉमनवेल्थ पॉइंट्स ऑफ लाइट अवार्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें यह सम्मान 8 जुलाई को मिला है. कोरोना के कारण लंदन का यह सम्मान बुलाकर देने की बजाए आॅन लाइन दिया गया है.
 
अवार्ड मिलने पर खुशी का इजहार करते हुए अजहर ने कहा कि भूख का कोई धर्म नहीं होता. भूखों को खाना खिलाने के सिलसिले के बारे में पुराने दिनों की याद करते हुए अजहर ने बताया कि यह वर्ष 2012 की बात है. वे दबीरपुरा रेलवे स्टेशन के करीब से गुजर रहे थे.
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उन्होंने एक महिला को बुरी तरह बिलखते देखा. पूछने पर पता चला कि वह पिछले दो दिन से भूखी है. लक्ष्मी नाम की इस महिला की हालत देखकर उनसे रहा नहीं गया.उन्होंने फौरन उसे खाना खरीद कर दिया. कहने को यह एक छोटी सी घटना थी. लेकिन इसने उन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया.
 
अगले दिन वह अपनी पत्नी से खाना बनवाकर लाए और रेलवे स्टेशन के पास 15 लोगों को खाना खिलाया. इसके बाद यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया.अजहर का कहना है,‘‘ भूख का कोई धर्म नहीं होता लिहाजा वह हर धर्म, जाति, वर्ग, आयु और क्षेत्र के व्यक्ति का पेट भरना चाहते हैं.’’ 
 
कुछ महीने ऐसा ही चलता रहा. इस दौरान खाने वालों की तादाद 50 तक पहुंच गई. अजहर के लिए इतने लोगों के लिए घर से खाना बनवाकर लाना मुश्किल होने लगा. उन्होंने वहीं रेलवे पुल के नीचे खाना बनाने का इंतजाम किया. कुछ प्लेटें और तंबू-दरियां भी लाई गईं. आज वहां 120 से ज्यादा लोगों को खाना खिलाया जाता है. खाना बनाने के लिए अब बावर्ची रखे गए हैं.
 
अवार्ड के बारे में हैदराबाद के ब्रिटिश उप उच्चायुक्त डॉ एंड्रयू फ्लेमिंग ने कहा कि अजहर का समाज में योगदान अविश्वसनीय है. वे अब तक लाखों लोगों को भोजन करवा चुके है. अजहर नेे कहा उनका मिशन आठ साल से चल रहा है. सबसे कमजोर व्यक्ति और तबके तक पहुंच रहा है.
 
 हैदराबाद के दबीरपुरा पुल के नीचे हर दोपहर बहुत से लोग साफ सुथरी दरियों पर कतार बनाकर बैठ जाते है. अजहर मकसूसी बारी-बारी से उन सब की प्लेटों में गर्मागर्म खाना परोसते हंै. यह सिलसिला पिछले सात साल से चल रहा है. आज सात स्थानों पर 1200 लोग उनकी वजह से एक वक्त भरपेट खाना खाते हैं.
 
हैदराबाद के पुराने शहर के चंचलगुडा इलाके में जन्मे अजहर के लिए जिंदगी कभी आसान नहीं रही. चार बरस की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया. पांच भाई बहनों के परिवार को पालने की जिम्मेदारी मां पर आ गई.
 
उन दिनों को याद करते हुए अजहर ने बताया कि नाना के यहां से मदद मिलती थी, लेकिन उनकी और भी बहुत जिम्मेदारियां थी इसलिए कभी दिन में एक बार तो कभी दो दिन में एक बार खाना मिलता था. लिहाजा भूख से उनका पुराना रिश्ता रहा है.
 
12 साल की उम्र में उन्होंने ग्लास फिटिंग का काम शुरू किया. उसके बाद कुछ साल टेलरिंग (दर्जी) का काम किया. वर्ष 2000 में तकरीबन 19 बरस की उम्र में प्लास्टर ऑफ पेरिस का काम शुरू किया, जो आज भी उनकी आजीविका का साधन है. इस दौरान उनकी शादी हुई और अब वह तीन बच्चों के पिता हैं.
 
अजहर बताते हैं कि करीब दो वर्ष तक उन्होंने अपने सीमित संसाधनों से ज्यादा से ज्यादा लोगों का पेट भरने की कोशिश की. इस दौरान लोगों को उनके इस नेक काम के बारे में पता चलने लगा तो कुछ मेहरबान साथियों ने सहयोग दिया.
 
बहुत से लोग ऑनलाइन आर्डर करके भी उन्हें सामान भिजवाने लग. सामान ज्यादा हुआ तो उन्होंने गांधी मेडिकल अस्पताल के बाहर भी खाना खिलाना शुरू कर दिया. वहां हर रोज तकरीबन 200 लोगों को खाना खिलाया जाता है. अजहर बताते हैं कि वह सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं. दूसरे राज्यों के कुछ शहरों से भी लोगों ने इसी तरह की मुहिम शुरू करने का इरादा जाहिर किया तो अजहर ने हर तरह से उनकी मदद की.
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अजहर की पहल पर आज बेंगलुरु, रायचूर, गुवाहाटी और तांडूर सहित कुल सात स्थानों पर करीब 1200 लोगों को एक वक्त का खाना खिलाया जाता है. कहते हैं कि ऊपर वाला अपने बंदों को भूखा जगाता तो है पर भूखा सुलाता नहीं.
 
इस दुनिया में अजहर जैसे लोग उसकी इस रहमत पर भरोसा कायम रखते हैं. हालांकि इस तरह की निस्वार्थ सेवा करने वाले लोग ज्यादा नहीं है, इसलिए इनके प्रयासों की सराहना करने के साथ ही इन्हें भरसक सहयोग देना चाहिए.