आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त न्यायाधीशों सहित सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पूर्ण पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ के हकदार होंगे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को पेंशन के रूप में प्रति वर्ष 15 लाख रुपये मिलेंगे.
यह देखते हुए कि इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा, मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि सभी को पूर्ण पेंशन का भुगतान किया जाएगा, चाहे वे कब नियुक्त हुए हों और चाहे वे अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए हों या बाद में स्थायी किए गए हों.
पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों के बीच उनकी नियुक्ति या उनके पदनाम के समय के आधार पर भेदभाव करना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मृतक अतिरिक्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के परिवार भी स्थायी न्यायाधीशों के परिवारों के समान पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ के हकदार हैं.
पीठ ने कहा कि उसने संविधान के अनुच्छेद 200 की जांच की है जो सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को देय पेंशन से संबंधित है.
पीठ ने कहा, "हम मानते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद टर्मिनल लाभों के लिए (उच्च न्यायालय के) न्यायाधीशों के बीच कोई भेदभाव अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा. इस प्रकार, हम सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पूर्ण पेंशन का हकदार मानते हैं, चाहे वे किसी भी समय सेवा में आए हों." पीठ ने कहा कि बार से पदोन्नत न्यायाधीशों और जिला न्यायपालिका से आए न्यायाधीशों के बीच कोई अंतर नहीं होना चाहिए. पीठ ने कहा कि नई पेंशन योजना के तहत आने वाले लोगों को भी समान पेंशन मिलेगी.
पीठ ने कहा, "हम यह भी मानते हैं कि अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पूर्ण पेंशन मिलेगी और न्यायाधीशों और अतिरिक्त न्यायाधीशों के बीच कोई भी भेदभाव शर्त के साथ अन्याय होगा." पीठ ने कहा, "संघ (भारत) अतिरिक्त न्यायाधीशों सहित उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को प्रति वर्ष 13.50 लाख रुपये की पूर्ण पेंशन देगा." विस्तृत निर्णय का इंतजार है. शीर्ष अदालत ने 28 जनवरी को 'जिला न्यायपालिका और उच्च न्यायालय में सेवा अवधि को ध्यान में रखते हुए पेंशन के पुनर्निर्धारण के संबंध में' याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पेंशन के भुगतान में कई आधारों पर असमानता का आरोप लगाया गया था, जिसमें यह भी शामिल था कि सेवानिवृत्ति के समय न्यायाधीश स्थायी या अतिरिक्त न्यायाधीश थे.
याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जो जिला न्यायपालिका से पदोन्नत हुए थे और एनपीएस के अंतर्गत आते थे, उन्हें बार से सीधे पदोन्नत हुए न्यायाधीशों की तुलना में कम पेंशन मिल रही थी.