पुणे
सर्दियों के कोहरे की सटीक भविष्यवाणी करने वाले विंटर फॉग एक्सपेरिमेंट (WiFEX) ने एयरलाइंस को बड़ा लाभ पहुंचाया है। इस पहल से उड़ानों के डायवर्जन और कैंसिलेशन में कमी आई है, जिससे न केवल आर्थिक नुकसान घटा है, बल्कि यात्रियों की असुविधा भी कम हुई है। यह जानकारी मंगलवार को यहां अधिकारियों ने दी।
WiFEX के पिछले 10 वर्षों के शोध और डेटा संग्रह के आधार पर अब ऐसा भविष्यवाणी मॉडल तैयार किया गया है जो किसी कोहरे से जुड़े हालात की जानकारी कम से कम 18 घंटे पहले दे सकता है। यह मॉडल कोहरे की तीव्रता और उसके खत्म होने का समय भी बता सकता है।
अधिकारियों ने बताया कि 2015 में नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे (IGIA) पर शुरू हुआ WiFEX अब एक बड़ा मुकाम हासिल कर चुका है। उत्तर भारत की घनी सर्दियों की धुंध, उसके जीवन और उड्डयन सुरक्षा पर प्रभाव को समझने के लिए हुए इस समर्पित शोध के 10 वर्ष पूरे हो गए हैं।
इस सफलता के बाद अब इस परियोजना का अगला चरण WiFEX-II शुरू किया जा रहा है, जिसमें उत्तर और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक हवाईअड्डों पर रनवे-विशेष कोहरे की भविष्यवाणी की सुविधा दी जाएगी।
यह परियोजना भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES), भारतीय मौसम विभाग (IMD) और राष्ट्रीय मध्यम-अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र के सहयोग से संचालित है। यह दुनिया के कुछ चुनिंदा दीर्घकालिक खुले क्षेत्र (open-field) प्रयोगों में शामिल है, जो केवल कोहरे जैसे कठिन मौसमीय खतरे पर केंद्रित हैं।
पुणे स्थित IITM में संवाददाताओं से बातचीत में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने कहा,
“WiFEX का मुख्य उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले अवलोकन डेटा का निर्माण करना था, ताकि एक विश्वसनीय और उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला कोहरा पूर्वानुमान मॉडल तैयार किया जा सके। यह मॉडल उड्डयन और परिवहन क्षेत्र को घने कोहरे के कारण होने वाले व्यवधानों से निपटने में मदद करता है।”
पिछले 10 वर्षों में किए गए विस्तृत फील्ड ऑब्ज़र्वेशन के आधार पर IITM ने एक उन्नत संभाव्य (probabilistic) उच्च-रिज़ॉल्यूशन कोहरा पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की है, जो 85 प्रतिशत से अधिक सटीकता के साथ कोहरे की शुरुआत, उसकी तीव्रता, खत्म होने का समय और उसकी अवधि का अनुमान लगाती है।
डॉ. रविचंद्रन ने कहा, “IGIA, जो भारत का सबसे व्यस्त और कोहरे से प्रभावित हवाईअड्डा है, से शुरू हुई यह पहल अब यहू (नोएडा) और हिसार (हरियाणा) तक पहुंच चुकी है। यह उत्तर भारत के प्रमुख विमानन कॉरिडोरों को कवर करती है।”
WiFEX वैज्ञानिकों ने माइक्रोमौसम विज्ञान टावर, सीलोमीटर, उच्च-आवृत्ति सेंसर, तापमान परतों, आर्द्रता, हवा, अशांति, मिट्टी की ऊष्मा और एरोसॉल्स जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग कर कोहरे से जुड़ा डेटा इकट्ठा किया है।
इस प्रयोग ने कोहरे के बनने और खत्म होने की वैज्ञानिक समझ को गहरा किया है। शोध से पता चला है कि प्रदूषण स्तर, शहरीकरण और भूमि सतह की पारस्परिक क्रियाएं कोहरे के निर्माण और उसके बने रहने को गहराई से प्रभावित करती हैं।
डॉ. रविचंद्रन के मुताबिक,
“WiFEX द्वारा उपलब्ध कराए गए सटीक पूर्वानुमानों से एयरलाइंस को बड़ा लाभ मिला है। उड़ानों के डायवर्जन और रद्दीकरण में कमी आई है, जिससे आर्थिक नुकसान और यात्रियों की असुविधा में कमी आई है।”
अब WiFEX-II के तहत स्थानीय और रनवे-विशेष पूर्वानुमान विकसित किए जाएंगे।
उन्होंने कहा, “यह इस बात का उदाहरण है कि किस तरह लक्षित वैज्ञानिक शोध और परिचालन पूर्वानुमान मिलकर वास्तविक दुनिया पर प्रभाव डाल सकते हैं। इससे सर्दियों के कोहरे में सुरक्षा, दक्षता और तैयारी बेहतर हुई है।”
WiFEX परियोजना निदेशक डॉ. सचिन घुड़े ने कहा,
“विमानन क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह प्रयोग 10 वर्ष पहले शुरू किया गया था। उड़ानों में व्यवधान को रोकने के लिए सटीक पूर्वानुमान आवश्यक था। WiFEX को IGIA में इसी उद्देश्य से शुरू किया गया था।”
उन्होंने कहा, “इस 10 साल के डेटा पर आधारित मॉडल अब 18 घंटे पहले कोहरे की घटना की भविष्यवाणी कर सकता है। यह कोहरे की तीव्रता और खत्म होने का समय भी बताता है। सफलता के बाद इसे नोएडा हवाईअड्डे तक विस्तारित किया गया।”
WiFEX-II के तहत अब इसे जयपुर और वाराणसी जैसे अन्य उत्तरी हवाईअड्डों तक बढ़ाया जाएगा। एयरलाइंस को वैकल्पिक हवाईअड्डों की कोहरे की स्थिति भी जाननी होगी।
“उत्तर-पूर्व में भी इस मॉडल को लागू करने की योजना है। वहां कोहरा ‘माउंटेन फॉग’ कहलाता है, जो दिल्ली और उत्तर भारत के मैदानों के कोहरे से अलग है। अगले वर्ष असम के गुवाहाटी में अध्ययन के लिए उपकरण तैनात किए जाएंगे,” डॉ. घुड़े ने बताया।