आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
अल्ज़ाइमर बीमारी को अब तक एक ऐसी स्थिति माना जाता रहा है, जिसे पलटा नहीं जा सकता। लेकिन एक नए वैज्ञानिक अध्ययन ने इस धारणा को चुनौती दी है। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि मस्तिष्क में ऊर्जा संतुलन को बहाल कर न केवल अल्ज़ाइमर की गति को रोका जा सकता है, बल्कि उन्नत अवस्था में भी इसके प्रभावों को पलटा जा सकता है। चूहों पर किए गए प्रयोगों में न सिर्फ मस्तिष्क की क्षति में सुधार देखा गया, बल्कि उनकी याददाश्त और संज्ञानात्मक क्षमताएं भी पूरी तरह लौट आईं।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स, केस वेस्टर्न रिज़र्व यूनिवर्सिटी और लुईस स्टोक्स क्लीवलैंड वीए मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। शोध का नेतृत्व डॉ. कल्याणी चौबे ने किया और इसे 22 दिसंबर को जर्नल सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित किया गया। शोध में पाया गया कि अल्ज़ाइमर के मरीज़ों के मस्तिष्क में NAD+ नामक एक अहम ऊर्जा अणु का स्तर गंभीर रूप से कम हो जाता है। यह अणु कोशिकाओं को सामान्य रूप से काम करने और जीवित रहने में मदद करता है।
अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क ऊतकों और विशेष रूप से विकसित अल्ज़ाइमर ग्रस्त चूहों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि NAD+ के असंतुलन से मस्तिष्क में सूजन, न्यूरॉन्स को नुकसान, ब्लड-ब्रेन बैरियर का टूटना और याददाश्त से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने P7C3-A20 नामक एक विशेष दवा का उपयोग किया, जो मस्तिष्क में NAD+ के संतुलन को सुरक्षित तरीके से बहाल करती है।
नतीजे चौंकाने वाले रहे। जिन चूहों में अल्ज़ाइमर उन्नत अवस्था में था, उनमें भी इलाज के बाद संज्ञानात्मक क्षमताएं पूरी तरह सामान्य हो गईं। खून की जांच में अल्ज़ाइमर से जुड़े प्रमुख बायोमार्कर भी सामान्य स्तर पर लौट आए। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. एंड्रयू पाइपर ने इसे “उम्मीद से भरी खोज” बताया और कहा कि यह संकेत देता है कि अल्ज़ाइमर के प्रभाव स्थायी नहीं भी हो सकते।
हालांकि वैज्ञानिकों ने यह भी चेतावनी दी कि इस पद्धति को सामान्य NAD+ सप्लीमेंट्स से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि वे खतरनाक हो सकते हैं। यह शोध भविष्य में इंसानों पर परीक्षण का रास्ता खोलता है और अल्ज़ाइमर के इलाज की दिशा में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।