खतरे में पड़ी प्रजातियों को बचाने में जीन एडिटिंग बन सकती है क्रांतिकारी समाधान: अध्ययन

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 21-07-2025
Gene editing could be a revolutionary solution to save endangered species: Study
Gene editing could be a revolutionary solution to save endangered species: Study

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जीन एडिटिंग तकनीक, जो अब तक मुख्य रूप से कृषि और विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने के प्रयासों में इस्तेमाल की जा रही थी, अब लुप्तप्राय जीवों को बचाने की दिशा में भी एक क्रांतिकारी समाधान साबित हो सकती है.
 
यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (UEA) के प्रोफेसर कॉक वान ऑस्टरहाउट और कोलॉसल बायोसाइंसेस के डॉ. स्टीफन टर्नर की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन में दुनिया भर के वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों की भागीदारी रही। इस टीम में डुरेल इंस्टीट्यूट ऑफ कंजर्वेशन एंड इकोलॉजी (यूनीवर्सिटी ऑफ केंट), ग्लोब इंस्टिट्यूट (कोपेनहेगन), मॉरिशस वाइल्डलाइफ फाउंडेशन, और अन्य संस्थाएं शामिल हैं.
 
क्या कहता है शोध?

प्रोफेसर ऑस्टरहाउट ने कहा, "हम पृथ्वी के इतिहास में अब तक के सबसे तेज़ पर्यावरणीय बदलाव का सामना कर रहे हैं, और कई प्रजातियों के पास अब वह जेनेटिक विविधता नहीं बची है जो उन्हें बदलते पर्यावरण में ज़िंदा रहने में मदद दे सके."
 
जीन एडिटिंग इस खोई हुई विविधता को बहाल करने का मौका देती है – चाहे वह इम्यून सिस्टम से जुड़ी जीन हो जिन्हें पुरानी संरक्षित लाशों (जैसे म्यूज़ियम स्पेसिमन) से निकाला जा सके, या फिर पास से संबंधित प्रजातियों से 'क्लाइमेट टॉलरेंस जीन' उधार लेने की बात हो.
 
पारंपरिक संरक्षण बनाम जीन एडिटिंग

अब तक संरक्षण की मुख्य रणनीतियाँ जैसे कैप्टिव ब्रीडिंग और हैबिटैट प्रोटेक्शन सिर्फ संख्या बढ़ाने तक सीमित रहीं, लेकिन जीन विविधता को बहाल करने में उतनी प्रभावी नहीं रहीं. नतीजतन, ये आबादी “जीनोमिक एरोजन” का शिकार बनती हैं – यानी उनके भीतर हानिकारक उत्परिवर्तन जमा हो जाते हैं और अनुकूलन की क्षमता घट जाती है.
 
गुलाबी कबूतर का उदाहरण

मॉरिशस का गुलाबी कबूतर, जो कभी सिर्फ 10 बचे थे, आज 600 से ज्यादा हैं, लेकिन जीन अध्ययन दिखाता है कि इसकी जेनेटिक विविधता अब भी बेहद कम है, और अगर हस्तक्षेप नहीं हुआ तो 50-100 साल में यह प्रजाति दोबारा विलुप्त हो सकती है। जीन एडिटिंग की मदद से इस प्रजाति को भविष्य के पर्यावरणीय खतरों से लड़ने की ताकत दी जा सकती है.
 
जोखिम और ज़िम्मेदारी

हालांकि जीन एडिटिंग में अपार संभावनाएं हैं, पर शोधकर्ताओं ने इससे जुड़े जोखिमों की ओर भी इशारा किया है — जैसे गलत जीन में बदलाव (ऑफ-टार्गेट म्यूटेशन) या अनजाने में और भी विविधता कम हो जाना। इसलिए इसके प्रयोग में सावधानी, छोटे स्तर पर परीक्षण, और स्थानीय समुदायों व आदिवासी समूहों की भागीदारी बेहद जरूरी है.
 
डॉ. बेथ शापिरो ने कहा, "जिस तकनीक से हम हाथी के डीएनए में मैमथ का जीन जोड़ने की सोच रहे हैं, उसी तकनीक से हम विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों को भी बचा सकते हैं। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है."
 
जैव विविधता अभूतपूर्व संकट से जूझ रही है और ऐसे में जीन एडिटिंग कोई जादुई उपाय नहीं, लेकिन यह पारंपरिक संरक्षण उपायों के साथ मिलकर बड़ा असर डाल सकती है. शोधकर्ता इस तकनीक को संपूर्ण रणनीति का हिस्सा मानते हैं, न कि एकमात्र विकल्प.
 
जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे यह ज़रूरी हो जाता है कि हम उसकी मदद से न केवल अपनी जरूरतें पूरी करें, बल्कि धरती के दुर्लभ जीवों को बचाने की दिशा में भी सार्थक कदम उठाएं.