"हमेशा देर कर देता हूं मैं हर काम करने में..."
मुनीर नियाज़ी की इस मशहूर ग़ज़ल की ये लाइनें तब ज़हन में आती हैं जब अली फ़ज़ल का किरदार ‘आकाश’, जो एक संघर्षरत म्यूज़िशियन है, अपनी पत्नी और पत्रकार 'श्रुति' के सामने अंततः टूट जाता है।
अनुराग बसु की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘मेट्रो... इन डिनो’, जो 18 साल पहले आई ‘लाइफ इन अ... मेट्रो’ का सीक्वल है, आखिरकार रिलीज़ हो गई है। और यह इंतज़ार निश्चित रूप से बेकार नहीं गया।
फिल्म का सार:
‘मेट्रो... इन डिनो’ एक आधुनिक, संवेदनशील और हल्के-फुल्के अंदाज़ में बुनी गई हाइपरलिंक रोमांस ड्रामा है, जिसमें आज के समय के प्रासंगिक मुद्दों को छूने की ईमानदार कोशिश की गई है – जैसे कि #MeToo, LGBTQIA+ प्रतिनिधित्व, विवाह की संस्था, कमिटमेंट फोबिया, पहचान, महत्वाकांक्षा और गर्भपात।
ये विषय फिल्म में सिर्फ ‘वोक’ दिखने के लिए नहीं डाले गए, बल्कि कहानी के अंग बनकर सामने आते हैं। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, जो ओरिजिनल फिल्म का अहम हिस्सा था, यहां भी प्रमुख है।
महिलाएं बनी कहानी की धुरी
‘लाइफ इन अ... मेट्रो’ में जो अधूरा रह गया था, अनुराग बसु ने इस फिल्म में उसकी भरपाई की है। नीना गुप्ता, कोंकणा सेन शर्मा, फातिमा सना शेख, सारा अली खान और यहां तक कि कोंकणा और पंकज त्रिपाठी की ऑनस्क्रीन बेटी का किरदार निभाने वाली नवोदित कलाकार भी अपने-अपने प्लॉट में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
ये महिलाएं अब पुरुषों की भावनात्मक अनुपलब्धता, धोखा, स्वार्थ और असमंजस से तंग आ चुकी हैं। वे आवाज उठाती हैं, फैसले लेती हैं और अगर प्यार या शादी को दूसरा मौका देती भी हैं तो अपनी शर्तों पर, बिना समझौता किए।
ये किरदार गलती करते हैं, टूटते हैं, लेकिन फिर खड़े होते हैं — किसी "भगवान राम" के इंतजार में नहीं, खुद अपने नायक बनकर।
कपल्स (और थ्रपल्स) की जटिल परतें
फिल्म चार से ज्यादा जोड़ों की कहानियों को छूती है — और एक से ज्यादा किस्म के प्यार को भी।
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नीना गुप्ता, अनुपम खेर और सस्वता चटर्जी जैसे वरिष्ठ कलाकारों ने उम्र के अंतिम पड़ाव में प्रेम की नई परिभाषा खोजने की कोशिश में बेहतरीन काम किया है।
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कोंकणा सेन शर्मा और पंकज त्रिपाठी एक ऐसे दंपति की भूमिका में हैं, जिनका रिश्ता अब सिर्फ "डेंटिस्ट अपॉइंटमेंट" जैसा हो गया है। वे पुराने फिल्म के श्रुति-मोंटी (कोंकणा-इरफान) की परिपक्व, लेकिन पागल वर्ज़न लगते हैं।
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आदित्य रॉय कपूर और सारा अली खान की जोड़ी एक आधुनिक ‘बनी और नैना’ जैसी है — जो आज के दौर में रिलेशनशिप और शादी के मायनों को लेकर उलझे हुए हैं।
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अली फज़ल और फातिमा सना शेख का रिश्ता बताता है कि जब परिवार और समाज बेडरूम में घुस आते हैं, तो प्यार कैसे दरकता है।
फिल्म में एक किशोरी भी है जो अपनी सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर उलझन में है और मदद के लिए एआई ऐप का सहारा लेती है। वहीं, उसका दादा भी एआई ऐप की मदद से अपनी "घर से भागी" पत्नी को ढूंढने की कोशिश करता है।
‘लाइफ इन अ... मेट्रो’ की झलकियां
अगर आपने 2007 की ‘लाइफ इन अ... मेट्रो’ देखी है, तो इस फिल्म में कुछ दृश्य देखकर आप ज़ोर से "वाह!" कहेंगे।
प्रीतम द्वारा रचित पुराने गानों की तरह इस बार भी नया म्यूज़िक एक और किरदार जैसा है — जिसमें 'ज़माना लगे', 'दिल का क्या', और 'और मोहब्बत कितनी करूं' जैसे गाने शामिल हैं।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये गाने भी अगले 18 साल तक श्रोताओं की याद में टिके रहेंगे।
अनुराग बसु की खासियत और पॉप कल्चर संदर्भ
फिल्म में खुद अनुराग बसु भी एक महत्वपूर्ण दृश्य में कैमियो करते हैं। इसके अलावा, इसमें ‘बर्फ़ी!’ की भावना, ‘जग्गा जासूस’ की नटखटता और ‘लूडो’ की अव्यवस्था भी महसूस होती है।
एक और मशहूर निर्देशक (हिंदी रोमांस के ‘भगवान’ माने जाते हैं) भी कैमियो करते दिखते हैं।
पंकज त्रिपाठी और अली फज़ल का एक सीन ‘मिर्ज़ापुर’ के प्रशंसकों को चौंका सकता है — हालांकि डायलॉग डब कर दिए गए हैं।
‘मेट्रो... इन डिनो’ अपने पूर्ववर्ती जितनी गंभीर नहीं है, पर आज के संदर्भों में एक जरूरी फिल्म है। यह बताती है कि आज के सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स के दौर में भी, पुराने ढंग से प्यार करना मुमकिन है — बशर्ते थोड़ा ‘वोकनेस’ साथ हो।
मुख्य कलाकार:
नीना गुप्ता, अनुपम खेर, कोंकणा सेन शर्मा, पंकज त्रिपाठी, सारा अली खान, आदित्य रॉय कपूर, फातिमा सना शेख, अली फज़ल, सस्वता चटर्जी
निर्देशक: अनुराग बसु
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