फ़िल्म में सबा आज़ाद मुख्य भूमिका निभा रही हैं. उनके साथ सोनी राजदान, ज़ैन खान दुर्रानी, शीबा चड्ढा, तारुक रैना, शिशिर शर्मा और लिलेट दुबे जैसे कलाकार भी अहम किरदारों में हैं. यह फ़िल्म कश्मीर की पहली महिला पार्श्व गायिका और पद्मश्री सम्मानित राज बेगम के जीवन से प्रेरित है, जिन्होंने एक ऐसे दौर में अपनी अलग पहचान बनाई जब महिलाओं को अपनी आवाज़ बुलंद करने की इजाज़त तक मुश्किल से मिलती थी.
ज़ूम से बातचीत में सबा आज़ाद ने बताया कि इस पटकथा ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया. राज बेगम से प्रेरित किरदारनूर बेगमको निभाना उन्होंने अपने लिए "सम्मान" और "ज़िम्मेदारी" दोनों माना. सबा ने कहा, “किसी असली जीवन के किरदार को पर्दे पर उतारना और उनके संगीत को दुनिया तक पहुँचाना मेरे लिए गर्व की बात है. कश्मीर के बारे में आमतौर पर संघर्ष की कहानियाँ सुनाई जाती हैं, लेकिन इस फ़िल्म में कला, संगीत, जीत और इंसानियत की बात होती है.”
सबा ने ज़ोर देकर कहा कि यह फ़िल्म कश्मीर के सामान्य आख्यानों से हटकर वहाँ के लोगों, उनकी विरासत और उनके जज़्बे का जश्न मनाती है. उन्होंने भावुक होकर कहा, “यह कहानी हमें बताती है कि कश्मीर में वह सब है जो हमें अब तक सुनाया नहीं गया—लोगों की संस्कृति, कला, संगीत और सपनों से जुड़ी कहानियाँ.”
अपने अभिनय और संगीत के सफ़र को याद करते हुए सबा ने कहा कि उनकी परवरिश ने उन्हें इस चुनौतीपूर्ण किरदार को निभाने की ताक़त दी. उन्होंने इसका श्रेय अपने माता-पिता को दिया, जिन्होंने हमेशा उन्हें हर जुनून को आज़माने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता ने मुझे हर काम करने की आज़ादी दी—चाहे वह चित्रकारी हो, खाना बनाना हो या अभिनय. उनकी इस हिम्मत ने मुझे यह मुकाम दिया.”
उन्होंने अपनी परवरिश की तुलना राज बेगम के साहस से करते हुए कहा कि उस दौर की एक कश्मीरी महिला का यह ऐलान करना—“मैं संगीतकार बनूंगी और मुझे कोई रोक नहीं सकता”—कितना बड़ा कदम रहा होगा.
यह फ़िल्म दानिश रेंज़ू के निर्देशन में बनी है और इसकी पटकथा उन्होंने निरंजन अयंगर और सुनयना काचरू के साथ मिलकर लिखी है. "सॉन्ग्स ऑफ पैराडाइज़" केवल एक सिनेमाई प्रस्तुति नहीं बल्कि राज बेगम की विरासत को समर्पित एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि है. इसमें 1940 और 1950 के दशक की उस यात्रा को दिखाया गया है, जब सामाजिक दबाव के बावजूद एक महिला ने संगीत को अपनी पहचान बनाया.
ट्रेलर में दो अलग-अलग समयरेखाओं को जोड़ते हुए कहानी दिखाई गई है, जिसमें सबा आज़ाद और सोनी राजदान नूर बेगम के जीवन के अलग-अलग पड़ावों को निभा रही हैं. भावनाओं से भरे दृश्यों और संगीतमय पलों के ज़रिए यह फ़िल्म दर्शाती है कि नूर ने किस तरह परंपराओं की दीवारें तोड़कर अपने सपनों को पूरा किया.
सबा सिंह ग्रेवाल, जिन्हें पेशेवर तौर परसबा आज़ादके नाम से जाना जाता है, एक भारतीय अभिनेत्री, थिएटर निर्देशक और संगीतकार हैं. वह मुंबई स्थित इलेक्ट्रो-फंक बैंडमैडबॉय/मिंककी सदस्य हैं. सबा ने 2008 में फ़िल्मदिल कबड्डीसे बॉलीवुड में डेब्यू किया और 2011 कीमुझसे फ्रेंडशिप करोगेसे पहचान बनाई. इसके बाद उन्होंनेफील्स लाइक इश्कऔररॉकेट बॉयज़जैसी वेब सीरीज़ में भी काम किया.
थिएटर जगत के दिग्गज सफ़दर हाशमी की भतीजी सबा बचपन से ही जन नाट्य मंच से जुड़ी रहीं और हबीब तनवीर, एमके रैना, जीपी देशपांडे जैसे दिग्गजों के साथ मंच साझा किया. उन्होंने अपनी ओडिसी गुरु किरण सहगल के साथ भारत और विदेशों में अनेक प्रस्तुतियाँ दीं.
स्कूल की पढ़ाई के बाद उन्होंने ईशान नायर की शॉर्ट फ़िल्मगुरूरसे अभिनय की शुरुआत की, जो अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में प्रदर्शित हुई. दिल्ली से मुंबई आने के बाद सबा ने पृथ्वी थिएटर पर कई नाटकों में अभिनय किया और 2010 में अपनी थिएटर कंपनी द स्किन्स की स्थापना की. इसी वर्ष उन्होंने अपने पहले नाटकलवपुकेका निर्देशन भी किया.
संगीत के क्षेत्र में भी सबा आज़ाद का नाम काफ़ी लोकप्रिय है. 2012 में उन्होंने अभिनेता-संगीतकार इमाद शाह के साथ मिलकर बैंडमैडबॉय/मिंककी शुरुआत की, जो आज भारतीय इंडी संगीत जगत का जाना-माना नाम है.