ऑस्कर में इतिहास रचने से चूके रिजवान अहमद

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
‘साउंड ऑफ मेटल’ में ड्रम बजाते रिजवान अहमद
‘साउंड ऑफ मेटल’ में ड्रम बजाते रिजवान अहमद

 

विशाल ठाकुर

इस साल ऑस्कर में बेस्ट एक्टर (फिल्म साउंड ऑफ मेटल के लिए) की दावेदारी के लिए जैसे ही रिज अहमद का नाम आया, तो एक सनसनी सी मच गयी, क्योंकि इस श्रेणी में नामांकन पाने वाले वह पहले मुस्लिम अभिनेता हैं. यानी बेस्ट एक्टर श्रेणी के तहत अगर वह यह खिताब अपने नाम करने में कामयाब हो जाते, तो ऐसा करने वाले वह पहले मुस्लिम अभिनेता कहलाते.

नॉमिनेशन के बाद से जैसे-जैसे ऑस्कर समारोह के दिन नजदीक आ रहे थे, वैसे-वैसे उत्सुकता बढ़ रही थी. और आज सुबह सब साफ हो गया. रिज यह खिताब पाने से चूक गये. हालांकि उनकी फिल्म ‘साउंड ऑफ मेटल’, बेस्ट साउंड और बेस्ट फिल्म एडिटिंग का ऑस्कर जीतने में कामयाब रही है. इस फिल्म को छह विभिन्न श्रेणियों- बेस्ट एक्टर, पिक्चर, बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीनप्ले, बेस्ट साउंड, बेस्ट एडिटिंग और बेस्ट सह-अभिनेता के लिए नामांकित किया गया था.

शुरू से ही थे चर्चा में

कुछ समय पहले रिजवान अहमद के नामांकन की खबर के बाद से ही चारों ओर से लगभग एक जैसी ही प्रतिक्रियाएं सामने आती दिखीं, जिसका अंदाजा अभिनेत्री शबाना आजमी के इस ट्वीट से मिलता है. उन्होंने लिखा था- ‘रिजवान के इकलौता मुस्लिम होने की बात को इतनी तवज्जो क्यों दी जा रही है? वह बहुत कमाल के कलाकार है और मैं चाहूंगी कि वो ऑस्कर जीते, क्योंकि ये बहुत ही शानदार परफॉर्मेंस थी. और कोई कारण नहीं है.’

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शबाना आजमी एवं रिजवान अहमद 

रिज अहमद के साथ अपने काम के अनुभव को साझा करते हुए शबाना आजमी ने लिखा- ‘हालांकि मैं बता दूं कि मैंने भी उनके साथ दो फिल्मों बंगलाटॉउन बैंक्वेट और दि रिलेक्टंट फंडामेंटलिस्ट में काम किया है.’

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मीडिया द्वारा रिज के नामांकन को एक ही नजरिये से पेश किया जाना व्यवहारिक रूप से असहज तो कतई नहीं करता, लेकिन शबाना आजमी की प्रतिक्रिया को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता. हां, ये जरूर है कि ऐसी बातें एक पल को हर्ष और गर्व का तो अनुभव देती ही हैं और हो सकता है कि कुछ समय के लिए विषय के प्रति रोचकता बढ़ा दें या उसकी लोकप्रियता में इजाफा कर दें.  

इसलिए तमाम बातों से इतर आज क्यों न रिज अहमद के अभिनय, उनकी फिल्म और ऑस्कर में भागीदारी के बारे में बात की जाए. ये भी कि उनकी परफॉर्मेंस को लेकर दिग्गज फिल्म समीक्षकों ने क्या कुछ क्या है और इस बार बेस्ट एक्टर की दौड़ में क्या रोचक पहलू रहे. शायद एक प्रतिभाशाली अभिनेता के बारे में इस नजरिये से बात करना ही उसकी उलपब्धि या उसके प्रयास को सही मायने में सेलिब्रेट करना हो सकता है.

‘‘वेम्बली, लंदन में जन्मे रिज अहमद के माता-पिता 70 के दशक में पाकिस्तान से इंग्लैंड आकर बस गए थे. लेकिन और पीछे जाएं तो रिज उर्फ रिजवान अहमद का पुश्तैनी संबंध भारत से भी देखने को मिलता है. वह सर शाह मुहम्मद सुलैमान के वंशज हैं. ब्रिटिश शासन काल के दौरान सर शाह मुहम्मद इलाहाबाद हाई कोर्ट के पहले मुस्लिम चीफ जस्टिस थे और उस समय उनकी उम्र 43 वर्ष थी.’’

रोचक रही बेस्ट एक्टर की दावेदारी

अमेरिका के लॉस एन्जेलिस में संपन्न हुए 93वे ऑस्कर अवॉर्ड्स (जिसे दि अकेडमी अवॉर्ड्स भी कहते हैं) में कुछ महत्वपूर्ण श्रेणियों के साथ-साथ इस बात को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता बनी हुई थी कि बेस्ट एक्टर का खिताब किसकी झोली में जाएगा. बेशक प्रबल दावेदारों के रूप में 83 वर्षीय एंथॉनी हॉप्किंस (फिल्म दि फॉदर) और 63 वर्षीय गैरी ऑल्डमैन (फिल्म मंक) जैसे दिग्गज अभिनेताओं के नाम सामने थे, लेकिन उत्सुकता बनी हुई थी 38 वर्षीय रिज अहमद को लेकर, जिन्हें डॉरियस मॉरदेर द्वारा निर्देशित साल 2019 में आयी अमेरिकी फिल्म ‘सॉउंड ऑफ मैटल’ के लिए नॉमिनेट किया गया था.

इसके अलावा फिल्म ‘मिनारी’ के लिए 37 वर्षीय स्टीवन युन और फिल्म ‘मॉ रेनिज ब्लैक बॉटम’ के लिए 43 वर्षीय दिवंगत अभिनेता चौडविक बॉसमन को भी इस श्रेणी के तहत नामांकन मिला था.

पहली नजर में यही आंका गया कि इस बार मुकाबले में दिलचस्पी का कारण प्रतिभागियों के बीच दिखाई दे रहा उम्र का फासला हो सकता है, जिसे कई पॉपुलेरिटी और परफॉर्मेंस के आधार पर भी तौला जाता है. लेकिन ये धारणा बहुत अधिक देर नहीं टिक पाई. क्योंकि यह कोई पहला मौका नहीं है, जब इस श्रेणी के तहत खिताब की दावेदारी को लेकर ऐसी रोचकता देखी गई हो. ये जरूर है कि एकेडमी अवॉर्ड्स के इतिहास में एंथॉनी हॉप्किंस अकेले ऐसे अभिनेता जरूर हैं जिन्हें बेस्ट एक्टर के लिए छह बार नॉमिनेट किया गया है, जिसमें से एक बार वह यह खिताब जीत (सन 1992 में फिल्म साइलेंस ऑफ दि लैम्ब्स के लिए) भी चुके हैं.

ये उत्सुकता ब्रिटिश एक्टर गैरी ऑल्डमैन को लेकर भी उतनी नहीं थी, जो 2018 में फिल्म ‘डार्केस्ट ऑवर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर अपने नाम कर चुके हैं. हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बीते वर्ष कैंसर से जूझते हुए दुनिया को अलविदा कह गए अमेरिकी एक्टर चौडविक बॉसमन को लेकर तमाम दर्शकों और उनका एक बड़ा प्रशंसक वर्ग भावुक जरूर दिखाई दिया कि उन्हें उनकी अंतिम फिल्म के जरिए बेस्ट एक्टर की श्रेणी में नॉमिनेट किया गया है.

वे चाहते थे कि ये खिताब उनके नाम हो, लेकिन रिज अहमद की फिल्म देखते समय कुछ अलग-सा अहसास होता है, जिसकी एक बड़ी वजह उनका अभिनय तो है ही साथ ही फिल्म का विषय और डॉरियस मॉरदेर का निर्देशन भी है. पर क्या ये बातें बाकी दावेदारों पर भारी पड़ीं? नतीजा बताता है कि नहीं, लेकिन ये जरूर है कि अब रिज अहमद को लेकर उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गयी है. खासतौर से जब वह ऑस्कर के रेड कार्पेट पर अपनी पत्नी फातिमा फरहीन के साथ दिखाई दिये.

‘‘रिवायती तौर पर तड़क-भड़क से लबरेज नामी फैशन डिजाइनरों के स्टाइलिश गाउन्स से जगमगाने वाला 93वें ऑस्कर का रेड कार्पेट, रिज अहमद और उनकी पत्नी फातिमा फरहीन के शालीन लिबासों से एक अलग ही आभा से चमक उठा. और दुनियाभर के फोटोग्राफर्स केे लिए वो पल सबसे हसीन रहा जब रिज, फातिमा की जुल्फों को थोड़ा संवारते हुए से दिखे.’’

सॉउंड और साइलेंस की जंग में 

जो लोग हैवी मैटल (रॉक म्यूजिक की एक शैली जिसे आमतौर पर मैटल के नाम से जाना जाता है) संगीत से परिचित हैं, उनके लिए इस फिल्म ‘साउंड ऑफ मैटल’ का पहला सीन किसी विजुअल ट्रीट से कम नहीं है. मुट्ठी भर दर्शकों के सामने चुस्त-पुष्ट रूबेन (रिज अहमद) ड्रम बजा रहा है और माइक पर उसकी प्रेमिका लू (ऑलिविया कुक) है. दोनों की जुगलबंदी से माहौल मैटलनुमा बन पड़ा है, जिसके खुमार से निकलने के लिए रूबेन अगली सुबह लू के उठने से पहले ग्रीन शेक-स्मूदी और वेजिटेबल स्नैक्स का नाश्ता तैयार करता है.

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रिजवान अहमद 


बहुत जल्दी से दिखाई गयी रूबेन की दिनचर्या से यह साफ हो जाता है कि वह फिटनेस के प्रति सजग रहने वालों में से है और एक ड्रमर होने के नाते अपने संगीत के साथ-साथ लू से भी बेइंतेहा मोहब्बत करता है. उसकी आंखों से भलमानसता-सी झलकती है.

कुछ ही मिनटों बाद दिखाया गया है कि रूबेन को सुनने में कुछ परेशानी सी हो रही है. वह अपने कानों को उंगली से साफ करता है, इधर-उधर हिलाता है, नाक बंद करके हवा पास करने की कोशिश करता है, इस आशा में कि ध्वनि में पैदा हो रहे अवरोध हट सकें. यह चित्रण एक सामान्य प्रक्रिया की तरह पेश किया गया है, जैसा कि सामान्य जीवन में हम सभी अपने कानों के साथ कभी न कभी करते होंगे. लेकिन अपनी अगली परफॉर्मेंस के बाद ये साफ हो जाता है कि रूबेन को सुनाई देना बंद हो गया है और बिना देरी किए वह यह बात लू को भी बता देता है.

निर्देशक ने बिना समय गंवाए दो घंटे की इस फिल्म के कुछ शुरूआती सीन्स में ही मुख्य पात्र की परेशानियों और जटिलताओं का चित्रण कर डाला है. बाकी बातें भी जैसे कि कॉक्लीयर इम्प्लांट का भारी खर्च, थेरेपी के लिए जो नामक व्यक्ति से मिलना और लू का रूबेन को इसके लिए राजी करना इत्यादि एक के बाद एक घटनाक्रम के रूप में सहजता से पेश किया गया है.

रूबेन का किरदार परेशानी, उलझन, उत्सुकता, विरुपण, विकृति और अंदर ही अंदर चल रही अतिस्तब्धता के झंझावातो का मिश्रण है, जिसे प्रस्तुत करने में रिज अहमद ने वाकई बहुत मेहनत की है. आप पाएंगे कि हमेशा तने रहने वाले एक ड्रमर के कंधे अंत तक आते-आते थोड़े झुकने से लगते हैं. ये जानकर कि अब साइलेंस के अलावा कोई और रास्ता नहीं बता है, रिज की आंखों में कोशिशों का अंत देखकर दुख का अनुभव होता है. यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉम, अमेजन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है.

 

एक स्वर में की रिज की सराहना

रॉजर ईबर्ट डॉट कॉम के संपादक, ब्रायन ताल्ले रिको रिज अहमद के अभिनय के बारे में लिखते हैं- ‘यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शूटिंग से पहले उन्होंने बहरेपन का अध्ययन किया और छह महीने ड्रम बजाना सीखा. यह सिर्फ परफॉर्मेंस की गहराई तक की बात है. यहां एक भी सीन्स ऐसा नहीं है, जब भावनात्मक रूप से आपका दिल ना धड़के, ऐसी अनुभूति भी नहीं होती कि कुछ गलत हो रहा है.’

वरिष्ठ फिल्म समीक्षक, सैबल चटर्जी, एनडीटीवी डॉट कॉम पर एक कलाकार के रूप में रिज अहमद के अभिनय की विशेषताओं को केन्द्र में रखकर लिखते हैं- ‘वह शरीर, सिर, चेहरे और आंखों की मदद से अपने चरित्र की बिगड़ती स्थिति के स्पष्ट करते हैं. वह गुस्से और दुख, आशा और मायूसी, संकल्प और दुविधा की डगर पर कुशलता से चलता है. वह जिस कुशलता से वह ड्रम बजाते हैं और संकेतों की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, यह समझने के लिए पर्याप्त है कि रिज अहमद को रूबेन स्टोन का किरदार निभाने के लिए इन दोनों ही बातों को बहुत अच्छे से सीखा पड़ा.’

दि गार्जयन में पीटर ब्रॉडशॉ लिखते हैं- ‘रिज अहमद का अभिनय नाट्य रचना को स्पष्ट करता है और रूबेन के अंतिम आविर्भाव का अर्थ बताता है. वह फिल्म को ऊर्जा और सारांश देते हैं.’