पाकीजा, जिसे कमाल अमरोही ने अमर कर दिया

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 16-01-2022
पाकीजा, जिसे कमाल अमरोही ने अमर कर दिया
पाकीजा, जिसे कमाल अमरोही ने अमर कर दिया

 

मुंबई. कमाल अमरोही का नाम आते ही दिमाग में ‘पाकीजा’ का ख्याल आता है. हालांकि उन्होंने और भी फिल्में बनाईं, लेकिन इस बेहतरीन फिल्म के निर्माता कमल अमरोही का यह ड्रीम प्रोजेक्ट उनकी मेहनत की बदौलत है. फिल्म ने दर्शकों के दिलो-दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है, जिसे आज तक मिटाया नहीं जा सका है.

उनके गाने इतने आकर्षक हैं कि आज भी जब कहीं फिल्म ‘पाकीजा’ के गाने सुने जाते हैं, तो लोगों की धड़कनें थम जाती हैं. वैसे तो फिल्म के सभी गाने पसंद किए जाते हैं, लेकिन इसका एक गाना ‘मौसम है आशिकाना..., ऐ दिल कहीं से उनको ढूंढ लाना बहुत लोकप्रिय हुए.

फिल्म ने अपने दिल को छू लेने वाले संगीत और सुरों के कारण सफलता के रिकॉर्ड तोड़ दिए. आज यह फिल्म इंडस्ट्री की क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है.

‘पाकीजा’ कमाल अमरोही की ड्रीम प्रोजेक्ट फिल्म थी, जिस पर उन्होंने 1958 में काम करना शुरू किया था. यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का जमाना था. यह फिल्म भी ब्लैक एंड व्हाइट होने वाली थी. भारत में सिनेमास्कोप की शुरुआत के कुछ ही समय बाद, उन्होंने 1961 में सिनेमास्कोप बनाना शुरू किया.

कमाल अमरोही का जन्म 17 जनवरी 1917 को उत्तर प्रदेश के अमरोही जिले में हुआ था. फिल्म इंडस्ट्री में उनकी एंट्री भी कम दिलचस्प नहीं है. कहा जाता है कि वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपनी शरारतों से पूरे गांव का दम घोंट देते थे.

एक बार जब उसकी माँ ने उसे कड़ी फटकार लगाई, तो उसने अपनी माँ से वादा किया कि एक दिन वह सबसे लोकप्रिय लोगों में गिना जाएगा और उनके पैरों को सोने और चांदी के सिक्कों से भर देगा. इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल कर रख दी.

हुआ यूं कि उनके बड़े भाई ने उसकी शरारत से तंग आकर उन्हें थप्पड़ मार दिया. इससे नाराज कमाल अमरोही घर छोड़कर लाहौर भाग गए. लाहौर ने उनके जीवन की दिशा बदल दी. उन्होंने एक महान व्यक्ति बनने की ठानी. उन्होंने कड़ी मेहनत की और प्राचीन भाषा विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की. वह बहुत बुद्धिमान थे. यह इस बात से स्पष्ट होता है कि उन्होंने 18 साल की उम्र में ही एक उर्दू अखबार में कॉलम लिखना शुरू कर दिया था. अखबार के संपादकों ने उनकी क्षमताओं की इतनी सराहना की कि उस समय उन्होंने उन्हें 300 रुपये पगार पर रख लिया. उस समय यह एक मोटी रकम मानी जाती थी.

कुछ दिन अखबार में काम करने के बाद उनका दिल इस काम से भर गया और वे कलकत्ता आ गए और वहां से बंबई चले गए. कमाल अमरोही ने लाहौर में मशहूर सिंगर और एक्टर कुंदन सहगल से मुलाकात की थी.

कमाल की काबिलियत को पहचानते हुए वह सोहराब मोदी की फिल्म में काम करने के लिए बॉम्बे ले आए. वह यहां आए और फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने लगे. इस बीच, उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास तक पहुंच बना ली.

फिल्म निर्माता और निर्देशक और जाने-माने कहानीकार ख्वाजा अहमद अब्बास उनकी कहानी ‘ड्रीम पैलेस’ से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस पर एक फिल्म बनाने का फैसला किया. इसके लिए एक फिल्म निर्माता की भी मांग की गई थी, लेकिन तब कमाल अमरोही को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

उनके पास भोजन या आश्रय के लिए पैसे नहीं थे. इसी बीच उन्हें खबर मिली कि सोहराब मोदी एक नई और अनछुई कहानी की तलाश में हैं. वह तुरंत उनके पास पहुंचे और उन्हें तीन सौ रुपये के मासिक वेतन पर काम पर रख लिया गया. उनकी कहानी पर आधारित फिल्म पुकार (1939) काफी हिट रही थी.

फिल्म में नसीम बानो और चंद्र मोहन ने अभिनय किया था. उन्होंने फिल्म के लिए चार गाने लिखे. इस फिल्म की सफलता के बाद कमाल अमरोही का जादू फिल्मों में चल गया और उन्होंने कई फिल्मों के लिए कहानियां, पटकथा और संवाद लिखे.

फिल्म ‘महल’ कमाल अमरोही के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. फिल्म जिज्ञासा और रोमांस से भरपूर थी. फिल्म निर्माता अशोक कुमार ने कमाल अमरोही को निर्देशन की जिम्मेदारी दी है.

बेहतरीन गानों और संगीत के चलते ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई और तभी से फिल्मों में सस्पेंस की परंपरा शुरू हो गई. फिल्म की अपार सफलता ने मधुबाला और लता मंगेशकर को एक नई पहचान दी. इससे उत्साहित होकर कमाल अमरोही ने 1953 में कमल पिक्चर्स और 1958 में कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की.

अपने बैनर तले उन्होंने अपनी पत्नी मीना कुमारी के साथ एक कला फिल्म ‘दायरा’ बनाई, लेकिन यह फिल्म सफल नहीं रही. इस बीच फिल्म निर्माता और निर्देशक के. आसिफ अपनी अहम फिल्म ‘मुगले आजम’ की शूटिंग में व्यस्त थे. वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे.

के. आसिफ को एक ऐसे डायलॉग राइटर की जरूरत महसूस हुई, जिसके लिखे डायलॉग दर्शकों के जेहन में बरसों तक गूंजते रहे. इसके लिए उन्होंने कमाल अमरोही को चुना और उन्हें चार डायलॉग के लेखकों में शामिल किया.

उनके लिखे संवादों की लोकप्रियता ऐसी थी कि प्रेमी उन्हें पत्र-व्यवहार में इस्तेमाल करते थे. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट डायलॉग के फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था.

फिल्म जेलर (1938), हरि (1940), भरोसा (1940), मजाक (1943), फोल (1945), शाहजहाँ (1946), महल (1949), डेरा (1953), दिल अपना और प्रीत में कमाल अमरोही प्रिया (1960) ने मुगल आजम (1960) पाकीजा (1971), शंकर हुसैन (1971) और रजिया सुल्तान (1983) फिल्मों के लिए कहानियां, संवाद और पटकथाएं लिखीं.

यह सच है कि उन्होंने बड़ी संख्या में फिल्मों के लिए अपनी सेवाएं नहीं दीं, लेकिन जिन चुनिंदा फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया, उनमें उन्होंने समर्पण और जुनून के साथ काम किया. यह सच है कि उनके काम की गति बेहद धीमी थी, इसलिए उनकी आलोचना भी हुई.

हेमा मालिनी ने फिल्म निर्माण की धीमी गति के लिए रजिया सुल्तान की भी आलोचना की थी. लेकिन उनके काम में उनके व्यक्तित्व की झलक साफ दिखाई दे रही थी. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है. ‘पाकीजा’ कमाल अमरोही की ड्रीम प्रोजेक्ट फिल्म थी, जिस पर उन्होंने 1958 में काम करना शुरू किया था.

यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का जमाना था. यह फिल्म भी ब्लैक एंड व्हाइट होने वाली थी. भारत में सिनेमास्कोप की शुरुआत के कुछ ही समय बाद, उन्होंने 1961 में सिनेमास्कोप बनाना शुरू किया. लेकिन कमाल अमरोही के अपनी तीसरी पत्नी मीनाकमारी से अलग होने के कारण 1961 से 1969 तक उनका फिल्म निर्माण रुक गया.

बाद में उन्होंने मीनाकमारी को फिल्म में अभिनय करने के लिए राजी किया. फिल्म आखिरकार 1971 में पूरी हुई और फरवरी 1972 में रिलीज हुई. याद रहे कि कमाल अमरोही ने तीन शादियां की थीं. उनकी पहली पत्नी का नाम बानो था, जो नरगिस की मां जादान बाई की दासी थीं. बानो की अस्थमा से मौत के बाद उन्होंने महमूदी से शादी की.

उनकी तीसरी शादी अभिनेत्री मीनाकमारी से हुई थी, जो उनसे 15 साल छोटी थीं. दोनों एक फिल्म के सेट पर मिले और 1952 में शादी होने तक एक-दूसरे से प्यार हो गया. कमाल अमरोही उस वक्त 34 साल के थे और मीनाकुमारी 19 साल की. लेकिन ये शादी ज्यादा दिन नहीं टिकी और दोनों अलग हो गए.

दरअसल, मीना कुमारी कमाल अमरोही की काबिलियत की तारीफ करती थीं, इसलिए वह उनके करीब हो गईं. लेकिन जैसे-जैसे मीना कुमारी आत्मनिर्भर होती गईं, कमाल अमरोही का आकर्षण कम होने लगा. दोहराव दोनों में आदर्श बन गया. इस तनाव के कारण दूरियां बढ़ती गईं और तलाक का समय आ गया.

फिल्म ‘पाकीजा’ के पूरा होने के बाद फिल्म निर्माता और संवाद लेखक कमाल अमरोही को कुछ समय के लिए फिल्मों से अलग कर दिया गया था. बाद में 1983 में उन्होंने फिल्म उद्योग की ओर रुख किया और अपने निर्देशन में ‘रजिया सुल्तान’ बनाकर फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई. हालांकि, फिल्म अपने संवादों में फारसी के लगातार उपयोग के कारण बहुत लोकप्रिय नहीं हुई, जो आम लोगों को प्रभावित नहीं करती थी. लेकिन यह कहा जा सकता है कि जो फारसी भाषी हैं, उन्होंने इस फिल्म को हिट फिल्म के रूप में देखा.

इस फिल्म में मशहूर अभिनेत्री हेमामालिनी ने रजिया सुल्तान की भूमिका बहुत अच्छी तरह से निभाई थी और यह आश्चर्यजनक है कि उन्होंने संवाद अदायगी कैसे की, क्योंकि उनके संवाद फारसी शब्दों से भरे हुए थे. हालांकि, हेमामिलानी बेहतरीन एक्ट्रेस हैं. उनसे यही उम्मीद की जानी थी और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. यह शानदार फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा सफल नहीं रही. इससे कमाल अमरोही को गहरा दुख हुआ.

वह कुछ दिनों तक सदमे में रहे. फिर उन्हें प्रोत्साहित किया गया और एक और फिल्म ‘द लास्ट मुगल’ बनाने का फैसला किया, लेकिन फिल्म बनाने का उनका सपना सच नहीं हुआ और इस महान कलाकार की मुलाकात 11 फरवरी 1993 को खालिक हकीकी से हो गई.