Neither Basanti nor Radha, the idea was just two soldiers and a dacoit: Javed Akhtar on Sholay
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
दिग्गज पटकथा लेखक जावेद अख्तर का कहना है कि ‘शोले’ की कहानी की शुरुआत में न बसंती थी और न राधा थी केवल दो पूर्व सैनिक और एक डकैत का विचार था, हालांकि इसमें कई बदलाव हुए और यह एक कालजयी फिल्म के रूप में सामने आई.
शोले फिल्म के 50 साल पूरे होने पर ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में अख्तर ने बताया कि उन्होंने शुरुआत में एक सेवानिवृत्त मेजर और दो अनुशासनहीन सिपाहियों की कहानी के बारे में सोचा था.
इस फिल्म की पटकथा लेखक जोड़ी सलीम-जावेद ने लिखी थी। अख्तर ने कहा ‘‘ यह सलीम साहब का विचार था कि एक ऐसा किरदार हो जो रिटायर्ड मेजर हो और उसके साथ दो सैनिक हों जिन्हें अनुशासनहीनता के कारण सेना से निकाला गया हो. लेकिन हम सेना को लेकर कोई छूट नहीं ले सकते थे, इसलिए बाद में तय किया गया कि एक पुलिस अफसर और दो अपराधियों पर फिल्म का तानाबाना बुना जाए.
उन्होंने बताया कि उस वक्त न तो बसंती और न ही राधा जैसे किरदारों की कल्पना की गई थी। उन्होंने कहा , ‘‘शुरुआत में केवल डकैत का विचार था। धीरे-धीरे कहानी बढ़ी और अन्य किरदार जुड़ते गए। तब हमें महसूस हुआ कि यह एक मल्टी-स्टारर फिल्म बन सकती है, हालांकि हमने इसे कभी भव्य फिल्म के रूप में नहीं सोचा था।’’
रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी ‘शोले’ 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी और इसमें अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमजद खान, जया भादुरी और हेमा मालिनी सहित कई कलाकार थे। शुरुआती हफ्तों में फिल्म को धीमी प्रतिक्रिया मिली लेकिन बाद में यह ब्लॉकबस्टर साबित हुई.
अख्तर ने कहा कि सलीम-जावेद को यह अंदाजा कतई नहीं था कि वे हिंदी सिनेमा की एक कालजयी फिल्म बना रहे हैं.
उन्होंने कहा ‘‘ मुझे लगता है फिल्म का कैनवास इतना विस्तृत था कि वह खुद-ब-खुद कालातीत बन गई। इसमें बदले की भावना, मौन या मुखर प्रेम, दोस्ती, गांव की सादगी और शहरी अपराधियों की चतुराई जैसे तमाम मानवीय भावनाएं थीं। यह एक तरह से भावनाओं का मिलाजुला रूप था जो सीधे दिलों में उतरा.
उम्र के 80वें पड़ाव पर पहुंच चुके जावेद ने कहा कि फिल्म स्वाभाविक रूप से बनी, और इसके पीछे कोई सोची-समझी रणनीति नहीं थी.
उन्होंने कहा,‘‘ कोई भी कला जब अपने समय के साथ-साथ आगे भी प्रासंगिक बनी रहे तो वह कालजयी बन जाती है, चाहे उससे संबंधित क्षेत्र में कितने भी बदलाव क्यों न आए हों.’
अख्तर ने बताया कि वर्ष 1975 उनके और सलीम खान के लिए निजी और पेशेवर दोनों स्तर पर निर्णायक साबित हुआ. उन्होंने कहा ‘‘ फिल्म ‘दीवार’ और ‘शोले’ की रिलीज से हमें पैसा, पहचान और नाम मिला। यह हमारे करियर का अहम साल था.
शोले फिल्म में सचिन पिलगांवकर (अहमद), असरानी (जेलर), ए.के. हंगल (इमाम साहब), मैक मोहन (संभा), जगदीप (सूरमा भोपाली) और विजू खोटे (कालिया) जैसे कलाकार भी थे.