मोहम्‍मद रफ़ी की 101वीं जयंती: सुरों के बादशाह से जुड़े अनसुने किस्से

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 24-12-2025
Mohammed Rafi's 101st birth anniversary: ​​Untold stories related to the king of melodies
Mohammed Rafi's 101st birth anniversary: ​​Untold stories related to the king of melodies

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

भारतीय सिनेमा के महान पार्श्वगायक मोहम्‍मद रफ़ी की 101वीं जयंती पर पूरा देश उस आवाज़ को याद कर रहा है, जिसने दशकों तक हर भावना को सुरों में ढाल दिया। रफ़ी साहब के गीत आज भी उतने ही ताज़ा लगते हैं, जितने अपने दौर में थे। उनकी गायकी जितनी महान थी, उनका व्यक्तित्व उतना ही सरल और विनम्र।

हालांकि उनके गाए अमर गीत सबको याद हैं, लेकिन उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे अनजाने तथ्य हैं, जो उन्हें और भी खास बनाते हैं।

संयोग से मिली पहचान
बहुत कम लोग जानते हैं कि रफ़ी साहब की प्रतिभा एक संयोग से सामने आई। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बिजली चले जाने के कारण जब तयशुदा गायक गा नहीं पाए, तब युवा रफ़ी ने गाना शुरू किया। उनकी आवाज़ से प्रभावित होकर संगीतकार श्याम सुंदर ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

फेम से दूर रहने वाले सितारे
अपने समय के सबसे बड़े गायक होने के बावजूद मोहम्‍मद रफ़ी कभी शोहरत के पीछे नहीं भागे। वे अवॉर्ड समारोहों और पार्टियों से दूरी बनाए रखते थे और संगीत को इबादत मानते थे।

बिना फीस के गाए गीत
रफ़ी साहब की दरियादिली के किस्से आज भी फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर हैं। कई बार उन्होंने छोटे बजट की फिल्मों या संघर्ष कर रहे निर्माताओं के लिए बिना मेहनताना लिए गाने रिकॉर्ड किए।

भाषाओं और शैलियों के उस्ताद
रफ़ी साहब ने केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि उर्दू, पंजाबी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेलुगु सहित कई भाषाओं में गाने गाए। शास्त्रीय, रोमांटिक, देशभक्ति, भक्ति, कव्वाली और हास्य गीत—हर शैली में वे समान रूप से निपुण थे।

प्रतिस्पर्धा में विश्वास नहीं
उन्होंने कभी अपने समकालीन गायकों को प्रतिद्वंद्वी नहीं माना। उनका मानना था कि हर कलाकार की अपनी पहचान होती है और संगीत में ईर्ष्या की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

सादगी भरा जीवन
अपार सफलता के बावजूद रफ़ी साहब सादा जीवन जीते थे। वे दिखावे से दूर रहते और ज़रूरतमंदों की गुपचुप मदद करते थे।

रफ़ी के कुछ अमर गीत

  • चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे

  • बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी

  • क्या हुआ तेरा वादा

  • जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा

  • तेरी बिंदिया रे

  • मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

  • ये देश है वीर जवानों का

  • पर्दा है पर्दा

मोहम्‍मद रफ़ी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़, उनकी विनम्रता और उनका संगीत हमेशा ज़िंदा रहेगा। उनकी 101वीं जयंती पर देश उस फनकार को नमन करता है, जिसने सुरों को आत्मा की आवाज़ बना दिया।