इंसानी हसरतों और हालातों को टटोलते कश्मीरी फिल्मकार दानिश रेंजू

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-04-2021
कश्मीरियत फिल्माने वाले दानिश रेंजू
कश्मीरियत फिल्माने वाले दानिश रेंजू

 

विशाल ठाकुर

नई पीढ़ी के कई फिल्मकार नए विचारों और भावनाओं को काफी अलग ढंग से पेश करते दिख रहे हैं. दानिश रेंजू मूलतः कश्मीर के रहने वाले हैं और एक ऐसे उभरते फिल्मकार हैं, जिनकी कहानियों में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सामाजिक जटिलताओं का चित्रण भी बखूबी देखने को मिलता है. फिर बात चाहे उनकी पहली फिल्म ‘हाफ विडो’ (2017) की मुख्य किरदार नीला की हो, जो वादी में अपने गुमशुदा पति खालिद हुसैन बेग को तलाश रही है या फिर शार्ट फिल्म ‘इन सर्च आफ अमेरिका इंशाल्लाह’ (2014) में शाहीन की, जो अपने पति अली इलियास को ढूंढने लास एंजेल्स पहुंच जाती है. दानिश बड़ी गहराई से अपने किरदारों को टटोलते हैं और बिना किसी लाग लपेट के बड़ी ही सहजता से अपनी बात रखते हैं.

कुछ यूं दिखाई सपनों में छिपी सच्चाई 

कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में प्रशंसा प्राप्त कर चुकी उनकी फिल्म ‘दि इलीगल’ को पिछले दिनों ओटीटी मंच अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया. इस फिल्म में मुख्य भूमिका सूरज शर्मा ने निभाई है, जो ताईवानी फिल्मकार एंग ली की ऑस्कर विजेता फिल्म ‘लाइफ आफ पाई’ (2012) में अभिनेता इरफान खान के साथ काम कर चुके हैं. उनके अलावा इस फिल्म में आदिल हुसैन, श्वेता त्रिपाठी, नीलिमा अजीम, इकबाल थीबा ने भी अहम किरदार अदा किए हैं.

अमेरिकी सरजमीं पर खुशहाली के सपने तलाशते एक युवक की इस कहानी में उनकी अपनी खुद की जिंदगी के संघर्ष की झलक भी देखने को मिलती है.

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काम में मसरूफ दानिश रेंजू का एक दिन 

फिल्म की कहानी हसन नामक एक ऐसे भारतीय युवक के बारे में है, जो फिल्ममेकिंग सीखने के लिए लास एंजेल्स जाता है, लेकिन कुछ कारणों से वह वहीं फंसकर रह जाता है. एक झटके में उसके सपने चूर-चूर हो जाते हैं और वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता.

जल्द ही उसे अहसास होता है कि वह अकेला नहीं है, जो यहां इन हालातों में फंस गया है. उसके जैसे न जाने कितने हैं, जो बरसों से वतन वापसी की राह देख रहे हैं. इनमें तो कई ऐसे भी हैं, जो कभी अपनी सरजमीं पर वापस ही नहीं लौट पाए.

खुद महसूस किया प्रवासियों का दर्द

दरअसल, साल 2006 में दानिश रेंजू इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए श्रीनगर से अमेरिका चले गये थे. लेकिन जल्द ही उन्हें अमेरिकी सपनों की चकाचौंध और असलियत में अंतर समझ आने लगा. वहां जिस कदर उन्होंने मुश्किल हालात और तकलीफों का सामना किया, उसी से उन्हें फिल्म दि इलीगल बनाने की प्रेरणा मिली. हालांकि फिल्म को मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली, लेकिन अलग-अलग फिल्म समीक्षकों ने दानिश की पटकथा और निर्देशन की खूब तारीफ की.

अपने एक इंटरव्यू में वह कहते हैं कि एक प्रवासी होने के बावजूद बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो उन्हें नहीं पता. दानिश आगे कहते हैं कि ‘यहां वास्तव में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने वतन नहीं लौट सकते, क्योंकि या तो वे यहां गैर कानूनी ढंग से यहां रह रहे हैं या उनके पास उनके जरूरी कागजात नहीं हैं.’ 

कभी भी अपने घर को ना भूलने की बात पर जोर देते हुए दानिश बताते हैं- ‘मैं जब भी कहीं जाता हूं तो अपने घर को हमेशा अपने दिल में लिए घूमता हूं’.

 

देश-विदेश में जमाई धाक 

दानिश रेंजू की उम्र और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में देश-विदेश में हासिल की गई उनकी उपलब्धियां निश्चित रूप से न केवल किसी फिल्मकार को आकर्षित कर सकती हैं, बल्कि युवा और पेशेवर निर्देशकों के लिए प्रेरणादायी भी साबित हो सकती हैं.

फिल्म ‘दि इलीगल’ को मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (2019) में ज्यूरी अवार्ड से नवाजा गया और फिल्म ‘हाफ विडो’ के लिए उन्हें साल 2018 में दादा साहब फाल्के फिल्म समारोह में बेस्ट डायरेक्टर के खिताब से नवाजा गया.

जबरदस्त काम

उनका काम देखकर कोई नहीं कह सकता है कि उन्होंने महज पांच-छह साल पहले इस क्षेत्र में कदम रखा है. अपनी फिल्मों के विषय पर उनकी पकड़ ऐसी है कि वह विषमताओं से भरी भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक जटिलताओं, दहशतभरे जमीनी हालात और संसाधनों की कमी के चित्रण को बड़ी ही संजीदगी से परदे पर पेश करते हैं.

वादी में फिर सिनेमाई गूँज

सिनेमा को लेकर उनका जुनून इस बात से भी झलकता है कि अमेरिका से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद उन्होंने सिनेमा को अपनाया. अपने सिनेमाई भविष्य को लेकर भी उनके हौंसले काफी बुलंद नजर आते हैं, जिन्हें अभी तक शायद पेशेवर बालीवुड फिल्म इंडस्ट्री की हवा नहीं लगी है.

और वह पहली ही नजर में यह साफ कर देते हैं कि वह कश्मीर में न तो अपने घर को भूले हैं और न ही वहां अपने लोगों को. वह बड़े उत्साह के साथ कहते हैं कि अपनी आने वाली फिल्मों में वह कश्मीर के लोगों को शामिल करेंगे.

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दानिश रेंजू 

वह यह भी चाहते हैं कि कश्मीर में भी फिल्में उद्योग के रूप में आगे बढ़ें. ऐसा कहते हुए उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, जिसकी पुष्टि करते हुए वह कहते हैं, मेरी फिल्म हाफ विडो में लगभग सभी लोग यानी लेखक से लेकर कैमरामैन, लाइटमैन तक सभी कश्मीरी थे. वे सभी लोग मेरे साथ आगे भी काम करते रहेंगे.

पश्मीना से होगी एक बड़ी शुरुआत  

दानिश की कंपनी रेंजू फिल्म्स, इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वह मुख्य रूप से कश्मीर केन्द्रित फिल्मों को तरजीह देने की सोच रखते हैं. हालांकि वह यह भी मानते हैं कि यह एक मुश्किल कार्य है, पर अगर आपके पास इस कार्य के लिए सही लोग हों, अच्छी कहानी हो और एक योजनाबद्ध ढंग से उसे लोगों तक पहुंचाया जाए, तो बात बन सकती है.

और शायद यही वजह है कि वह फिल्मों से इतर कश्मीर की पृष्ठभूमि में म्यूजिक वीडियोज भी शूट करते हैं. अपने बैनर के तले उन्होंने कश्मीरी संगीतकार इरफान बुखारी का एक वीडियो भी बनाया है. लेकिन इस समय उनका मेन फोकस अपनी अगली फिल्म पश्मीना पर है, जिसे वह अपने बैनर की पहली बड़े बजट वाली बालीवुड फिल्म के रूप में देख रहे हैं.

इस फिल्म में डुलकेर सलमान, फरीदा जलाल और कुलभूषण खरबंदा जैसे सितारे हैं. यही नहीं इस फिल्म के गीत प्रसिद्ध गीतकार गुलजार के हैं और संगीत दे रहे हैं अमित त्रिवेदी जो कि उड़ता पंजाब, डियर जिंदगी, नो वन किल्ड जेसिका और देव डी. जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं.