"इस दुनिया के सारे सच यकीन पर खड़े होते हैं. आप यकीन करें तो सच अपने आप बन जाता है, वर्ना सच कुछ नहीं होता." इसी झूठ और सच के यकीन की खुलती हुई परतों पर आधारित नाटक काली बर्फ़ - द डार्क वैली ने दर्शकों को सच से रूबरू करवाया. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की तरफ़ से इस नाटक को अदाकार नाट्य अकादमी ने डीएवी शताब्दी काॅलेज के सहयोग से काॅलेज के ओडिटोरियम में ही आयोजित किया. इस नाटक का शुभारंभ काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ0सविता भगत तथा सुन्दर लाल छाबड़ा, रेखा शर्मा, एकांत कौल, वाचस्पति मिश्रा, विवेक जैन, यश गुरे आदि गणमान्य अतिथियों ने किया.
कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहां आर्मी और जेहादियों के बीच की लड़ाई जगजाहिर है. इस नाटक के ज़रिये दर्शक आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू हुए. सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है. इन दोनों की खुशनुमा ज़िंदगी और भी रंगीन हो जाती है, जब अब्दुल की बीवी मां बनने वाली होती है. उनके गांव में जेहादियों द्वारा बम फेंकने की घटना से स्थितियां पूरी तरह बदल जाती हैं.
आर्मी और जेहादियों की इस लड़ाई में अब्दुल का होने वाला बच्चा मारा जाता है. इस घटना में अपने बच्चे को खोने से अब्दुल की बीवी पागलों की तरह बर्ताव करने लगती है. वह एक खिलौने को अपना बेटा मानने लगती है और अब्दुल भी उसकी खुशी के लिए उसे यही यकीन दिलाता है कि उसकी गोद में पल रहा खिलौना वास्तव में उनका अपना बच्चा ही है. इसी यकीन दिलाने की जद्दोजहद में वह बच्चे के इलाज के लिए डाॅक्टर को भी ले आता है.