कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक के माध्यम से काली बर्फ़ - द डार्क वैली ने दर्शकों को कराया सच से रूबरू

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 11-02-2023
कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक के माध्यम से काली बर्फ़ - द डार्क वैली ने दर्शकों को कराया सच से रूबरू
कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक के माध्यम से काली बर्फ़ - द डार्क वैली ने दर्शकों को कराया सच से रूबरू

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

"इस दुनिया के सारे सच यकीन पर खड़े होते हैं. आप यकीन करें तो सच अपने आप बन जाता है, वर्ना सच कुछ नहीं होता." इसी झूठ और सच के यकीन की खुलती हुई परतों पर आधारित नाटक काली बर्फ़ - द डार्क वैली ने दर्शकों को सच से रूबरू करवाया. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की तरफ़ से इस नाटक को अदाकार नाट्य अकादमी ने डीएवी शताब्दी काॅलेज के सहयोग से काॅलेज के ओडिटोरियम में ही आयोजित किया. इस नाटक का शुभारंभ काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ0सविता भगत तथा सुन्दर लाल छाबड़ा, रेखा शर्मा, एकांत कौल, वाचस्पति मिश्रा, विवेक जैन, यश गुरे आदि गणमान्य अतिथियों ने किया.

 

कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहां आर्मी और जेहादियों के बीच की लड़ाई जगजाहिर है. इस नाटक के ज़रिये दर्शक आतंक से पीड़ित कश्मीर के कई पहलुओं से रूबरू हुए. सुदूर कश्मीर में अब्दुल अपनी बीवी के साथ खुशी-खुशी रहता है. इन दोनों की खुशनुमा ज़िंदगी और भी रंगीन हो जाती है, जब अब्दुल की बीवी मां बनने वाली होती है. उनके गांव में जेहादियों द्वारा बम फेंकने की घटना से स्थितियां पूरी तरह बदल जाती हैं.

आर्मी और जेहादियों की इस लड़ाई में अब्दुल का होने वाला बच्चा मारा जाता है. इस घटना में अपने बच्चे को खोने से अब्दुल की बीवी पागलों की तरह बर्ताव करने लगती है. वह एक खिलौने को अपना बेटा मानने लगती है और अब्दुल भी उसकी खुशी के लिए उसे यही यकीन दिलाता है कि उसकी गोद में पल रहा खिलौना वास्तव में उनका अपना बच्चा ही है. इसी यकीन दिलाने की जद्दोजहद में वह बच्चे के इलाज के लिए डाॅक्टर को भी ले आता है.

 
इस तरह पूरे नाटक में ही यकीन करने और ना करने के बीच स्थितियां सामने आती हैं. जिस तरह मंदिरों में जाकर लोग मूर्तियों को अपना दुख दर्द सुनाते हैं और मजारों पर जाकर चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं क्योंकि उन लोगों का मूर्तियों और मजारों पर यकीन होता है. इसी तरह इस नाटक में भी मुख्य पात्रा का यकीन एक रबड़ की गुड़िया पर होता है कि वह उसका अपना बच्चा है और इसी की के सहारे वह अपना जीवन गुजारती है.
 
कुल मिलाकर यह नाटक ऐसे सच से पर्दा उठाता है जो यकीन और झूठ के बीच झूलता हुआ प्रतीत होता है. इस नाटक का निर्देशन सुभाष चंद्रा ने और डिज़ाइन दीपक पुष्पदीप ने किया. इसके साथ ही मुख्य पात्रों की भूमिका अंकुश शर्मा, रमन चंजोतरा और भारती यादव ने निभाई. वहीं नाटक में मंच परे की भूमिका के तहत संगीत संचालन अभिषेक राठौड, सेट और प्रापर्टीज इंचार्ज के तौर पर अभिषेक प्रिन्स और आकाश सेंगर ने किया.