जावेद अख्तर बोले, गुरु दत्त को असिस्ट करना और निर्देशक बनना था सपना

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-08-2025
Javed Akhtar said- It was my dream to assist Guru Dutt and become a director
Javed Akhtar said- It was my dream to assist Guru Dutt and become a director

 

मुंबई

हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता-निर्देशक गुरु दत्त के शताब्दी समारोह के तहत बुधवार रात मुंबई में आयोजित एक विशेष सत्र में मशहूर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने खुलासा किया कि गुरु दत्त उनके लिए इतनी गहरी प्रेरणा थे कि उन्होंने निर्देशक बनने और उन्हें असिस्ट करने का सपना संजो लिया था।

जावेद अख्तर (80 वर्ष) ने भावुक होकर कहा,"मैंने तय किया था कि ग्रेजुएशन के बाद फिल्म इंडस्ट्री जाऊंगा और दो साल तक गुरु दत्त साहब के साथ काम करूंगा, फिर निर्देशक बनूंगा। जब आप 18 साल के होते हैं तो ज़िंदगी आसान लगती है। यही मेरा सपना था। दुर्भाग्य से मैं 4 अक्टूबर 1964 को बॉम्बे (अब मुंबई) आया और गुरु दत्त साहब का निधन 10 अक्टूबर को हो गया। मैं उन्हें कभी देख भी नहीं पाया।”

उन्होंने आगे बताया,“मुझे लगता था कि साहिर लुधियानवी साहब के ज़रिए रास्ता निकल आएगा, क्योंकि वह गुरु दत्त के अच्छे दोस्त थे और ‘प्यासा’ के लिए गीत भी लिख चुके थे। मैंने सोचा था किसी तरह मैं असिस्ट कर लूंगा, पर अफसोस वह मुमकिन न हो सका।”

दृश्य भाषा के सच्चे उस्ताद थे गुरु दत्त

‘शोले’, ‘दीवार’, ‘जंजीर’ और ‘डॉन’ जैसी कालजयी फिल्मों के लेखक रह चुके जावेद अख्तर ने कहा कि वह कॉलेज के दिनों से ही गुरु दत्त की फिल्मी शैली से अत्यंत प्रभावित थे।“जब मैं 17-18 साल का था, तब मैंने कुछ सुपरस्टार्स की फिल्में देखना बंद कर दी थीं क्योंकि मुझे लगता था वे अच्छे अभिनेता नहीं हैं। यानी उस उम्र में भी मेरी पसंद-नापसंद विकसित हो रही थी। गुरु दत्त का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा था।”“हमारे पास मेहबूब खान, बिमल रॉय जैसे शानदार निर्देशक थे, लेकिन गुरु दत्त पहले ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने दृश्य के ज़रिए बात करना सिखाया। दूसरे निर्देशक सही लोकेशन चुनते थे, अच्छा माहौल बनाते थे, पर गुरु दत्त की हर फ्रेम एक कविता होती थी, एक भावना होती थी।”

फिल्म जगत की जानी-मानी हस्तियां भी हुईं शामिल

इस भावुक सत्र में निर्देशक सुधीर मिश्रा, हंसल मेहता, आर बाल्की, और फिल्म समीक्षक भावना सोमाया ने भी गुरु दत्त के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की।कार्यक्रम का समापन ‘प्यासा’ की विशेष स्क्रीनिंग के साथ हुआ, जिसमें गुरु दत्त के परिवारजन—उनकी पोतियां गौरी और करुणा दत्त, जॉनी वॉकर के बेटे नासिर, निर्देशक अनुभव सिन्हा, अभिनेता अक्षय ओबेरॉय और कई अन्य शामिल हुए।

सुधीर मिश्रा ने कहा:“मैंने ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम’ अपनी दादी के साथ छह बार देखी थी। गुरु दत्त एक अनुभव हैं—उन्हें हर उम्र में दोबारा देखना और महसूस करना ज़रूरी लगता है। मेरी हर फिल्म, हर दृश्य, हर गीत—सब कहीं न कहीं उनसे प्रेरित है। स्क्रिप्ट को फिल्म में कैसे रूपांतरित करना है, ये गुरु दत्त ने सिखाया।”

हंसल मेहता ने अपने एफटीआईआई (FTII) के दिनों को याद करते हुए कहा:“मैंने एक म्यूजिक वीडियो बनाया था जो ‘कागज़ के फूल’ के एक गीत की नकल थी। आज मुझे लगता है कि वह एक ‘वल्गर रेप्लिकेशन’ था। पर मैं कभी एक ऐसी फिल्म बनाना चाहता हूं जो प्यार और दिल टूटने की बात करे—जैसे गुरु दत्त की फिल्में करती थीं।”“गुरु दत्त ने मुझे सिखाया कि खुद पर तरस खाना भी एक कला है—और उसे सुंदरता के साथ पेश किया जा सकता है। उनके सिनेमा ने सिखाया कि दिल टूटने का अनुभव भी एक सिनेमाई सौंदर्य रखता है।”

आर. बाल्की ने बताया कि उनकी फिल्म ‘चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट’ (2022) की प्रेरणा भी गुरु दत्त ही थे।“आज के दौर में जहां ‘रेजिलिएंस’ की पूजा होती है, गुरु दत्त संवेदनशीलता के प्रतीक हैं। वे एक ऐसे कलाकार थे जो पूरी तरह से भावना में डूबे थे। उनकी असफलता भी प्रेरणा बन गई। हर बार जब उनकी फिल्में देखता हूं, मैं केवल क्राफ्ट नहीं, उस कलाकार की कमज़ोरी, संवेदना और आत्मा को महसूस करता हूं।”

शताब्दी समारोह: पूरे देश में फिल्में होंगी प्रदर्शित

गुरु दत्त के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ‘प्यासा’ (1957), ‘आर पार’ (1954), ‘चौदहवीं का चांद’ (1960), ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ (1955), ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम’ (1962), और ‘बाज़’ (1953) जैसी कालजयी फिल्मों की देशभर में 8 से 14 अगस्त के बीच विशेष स्क्रीनिंग की जाएगी।

इन फिल्मों के रिस्टोरेशन का कार्य नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (NFDC), नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) और अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप द्वारा मिलकर किया गया है, जो इन फिल्मों के अधिकार धारक भी हैं।