देव आनंद: मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया...

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 03-12-2022
देव आनंद
देव आनंद

 

संदर्भ : 3 दिसम्बर, सदाबहार अदाकार देव आनंद का स्मृति दिवस.

ज़ाहिद ख़ान

‘‘मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्ऱ को धुएं में उड़ाता चला गया’’, फ़िल्म ‘हम दोनों’ में देव आनंद पर फ़िल्माया गया यह नग़मा, जैसे उनका खु़द का बयान है. यह उनकी ज़िंदगी के फ़लसफ़े को दर्शाता है. हिंदी सिनेमा के सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में अनेक अदाकार हुए, मगर देव आनंद जैसा कोई दूसरा नहीं हुआ. और आइंदा भी न होगा. देव साहब ने अपना पूरा सिनेमाई सफ़र बेहद ज़िंदादिली से जिया. आख़िरी वक़्त तक वे अपने काम में डूबे रहे. फ़िल्म ‘चार्जशीट’ की रिलीज़ के बाद, वो अपनी पसंदीदा जगह लंदन आराम करने गए हुए थे कि रात में वहां अचानक उनकी तबीयत ख़राब हुई और 3 दिसम्बर, 2011 को देव आनंद ने इस दुनिया से विदाई ली.

उनको जुदा हुए एक दशक से ज़्यादा समय होने को आया, लेकिन देव आनंद और उनकी फ़िल्में लोगों के जे़हन में आज भी ज़िंदा हैं. देव आनंद जब तक इस दुनिया में रहे, सक्रिय रहे. उनको काम के अलावा कुछ नहीं सूझता था. एक लिहाज़ से कहें, तो वे निष्काम कर्मयोगी थे. रुकना और थम कर बैठ जाना, उन्होंने सीखा ही नहीं था. यही उनकी जवानी और ज़िंदादिली का राज था. फ़िल्मी दुनिया में एवरग्रीन हीरो का ख़िताब, जिस हीरो के आगे सबसे पहले लगा, वो देव आनंद ही हैं. वो अपनी उम्र के आखि़री पड़ाव तक जवान रहे. दिल और दिमाग दोनों से ही जवान. चाहे फ़िल्मी पर्दा रहा हो या फिर ज़ाती ज़िंदगी, उम्र कभी उन पर हावी नहीं रही. जिस उम्र में एक्टर कैरेक्टर रोल करने लगते हैं, उस उम्र में भी उन्होंने फ़िल्म के हीरो का रोल अदा किया. दर्शक भी उन्हें इस रोल में हमेशा पसंद करते थे. देव आनंद ने अपने फ़िल्मी करियर का आग़ाज़ बेशक अदाकारी से किया, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी कई फ़िल्मों की स्टोरी, स्क्रीनप्ले लिखा और उनका निर्देशन किया. अनेक फ़िल्में बनाईं. देव आनंद के सिर इस बात का भी सेहरा है कि उन्होंने कई होनहार अदाकारों को अपनी फ़िल्म में पहली बार ब्रेक देकर, उनका करियर बनाया. शत्रुधन सिन्हा, अमरीश पुरी, सदाशिव अमरापुरकर, गुलशन ग्रोवर, जीनत अमान, जाहिदा, टीना मुनीम, मीनाक्षी शेषाद्रि, जैकी श्राप जैसे अदाकार उन्हीं की ख़ोज थे. अपनी फ़िल्मों में मौक़ा देकर, उन्होंने इन्हें फ़िल्मी पर्दे पर उतारा.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167006659206_December_3,_memorial_day_of_the_evergreen_actor_Dev_Anand_3.jpg

हिंदी सिनेमा के इतिहास में देव आनंद ऐसे एक्टर हैं, जिनकी हिंदुस्तानी अवाम में बेहद मक़बूलियत थी. एक दौर था, जब उनका पब्लिक में बड़ा चार्म था. उनकी चार्मिंग पर्सनेल्टी, अनूठी स्टाइल और अदाओं का हर कोई दीवाना था. ख़ास तौर से लड़कियों में उनका ग़ज़ब का क्रेज़ था. देव आनंद की इमेज कुछ इस तरह से बनी थी कि उन्हें हर कोई पसंद करता था. उनकी फ़िल्में देखकर, दर्शकों को लगता कि यह तो हमारे बीच का ही कोई नौजवान है. हिंदी सिनेमा में बीसवीं सदी के पांचवे-छठवे दशक का एरा दिलीप-देव और राज का दौर है. यह एरा हिंदी सिनेमा का गोल्डन एरा माना जाता है. जिसमें देव आनंद की एक अलग ही पहचान और उनकी बड़ी फैन फॉलोइंग थी. इन तीनों में देव आनंद ही सबसे ज़्यादा स्टाइलिश हीरो थे.

अविभाजित भारत स्थित पंजाब के गुरदासपुर में 26 सितम्बर, 1923 में जन्मे देव आनंद ने अपनी आला तालीम लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से मुकम्मल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो हीरो बनने के इरादे से मुंबई चले आए, जहां उनके बड़े भाई चेतन आनंद पहले ही मौजूद थे. फ़िल्मी दुनिया में थोड़े दिनों के संघर्ष के बाद ही, उन्हें निर्देशक पीएल संतोषी ने अपनी फ़िल्म ‘हम एक हैं’ में पहली मर्तबा हीरो का चांस दिया. लेकिन देव आनंद का सही तरह से करियर बॉम्बे टॉकीज की ‘ज़िद्दी’ से शुरू हुआ. इस फ़िल्म में उनकी हीरोइन कामिनी कौशल थीं और इसमें किशोर कुमार ने उनके लिए पहली बार अपनी आवाज़ दी थी. उनके लिए गाने गाये थे. बाद में तो किशोर कुमार, उनकी आवाज़ ही हो गए. साल 1948 में रिलीज हुई, यह फ़िल्म ठीक-ठाक चली. गुरुदत्त के डायरेक्शन में साल 1951 में आई ‘बाज़ी’ वह फ़िल्म थी, जिसमें देव आनंद को एक नई पहचान मिली. फ़िल्मी दर्शकों को उनकी टोपी, लुक्स और हर अंदाज़ इस क़दर भाया कि वे हमेशा के लिए उनके फैन बन गए. फ़िल्म ‘बाज़ी’ से देव आनंद की कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ, तो उन्होंने उसके बाद एक से बढ़कर एक फ़िल्में ‘मुनीमजी’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘सीआईडी’, ‘ज्वेल थीप’, ‘फंटूश’, ‘सोलहवां साल’, ‘बम्बई का बाबू’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘काला पानी’, ‘असली नकली’, ‘जाल’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘अमीर गरीब’, ‘वारंट’, ‘गैम्बलर’ और ‘लूटमार’ वगैरह दीं. फ़िल्मों में सुरैया, गीता बाली, कल्पना कार्तिक, वहीदा रहमान, जीनत अमान और टीना मुनीम के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी. 

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167006661906_December_3,_memorial_day_of_the_evergreen_actor_Dev_Anand_2.jpg

‘हम दोनों’ और ‘गाइड’ वे फ़िल्में हैं, जिनमें देव आनंद की अदाकारी उरूज़ पर थी. यह ऐसी फ़िल्में हैं, जिनसे उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. आरके नारायण के अंग्रज़ी उपन्यास ‘द गाइड’ पर बनी फ़िल्म ‘गाइड’ हिंदी और अंग्रेजी दो ज़बानों में बनी. हिंदी में इस फ़िल्म का डायरेक्शन विजय आनंद ने किया, जो कि देव आनंद के छोटे भाई थे. उन्होंने ‘गाइड’ का इतने शानदार ढंग से पिक्चराइजेशन किया कि यह हिंदी सिनेमा में यह एक कल्ट फ़िल्म बन गई. जिसका शुमार दुनिया की क्लासिक फ़िल्मों में होता है. देव आनंद के फ़िल्मी सफ़र की लैंडमार्क फ़िल्म, जिसे वे खुद भी बहुत पसंद करते थे. फ़िल्म की स्टोरी, संवाद से लेकर इसका गीत-संगीत सभी पसंद किया गया. इस फ़िल्म के अंदर ‘राजू गाइड’ के किरदार में देव आनंद ने अपनी एक्टिंग से जैसे जान ही फूंक दी है. देव आनंद के बिना ‘गाइड’ का तसव्वुर नहीं किया जा सकता. आगे चलकर विजय आनंद के ही डायरेक्शन में ‘तेरे मेरे सपने’ और ‘जानी मेरा नाम’ फ़िल्में आईं और यह भी बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट साबित हुईं. ‘हम दोनों’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘छुपा रुस्तम’, ‘काला बाज़ार’ आदि फ़िल्मों का डायरेक्शन भी गोल्डी का ही है. विजय आनंद के अलावा उनकी ट्यूनिंग गुरुदत्त से भी अच्छी रही. देव आनंद के प्रोडक्शन हाउस ‘नवकेतन’ की फ़िल्म ‘बाज़ी’ में देव आनंद ने ही उन्हें डायरेक्शन का पहला मौक़ा दिया था.

देव आनंद ने साल 1949 में अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ प्रोडक्शन हाउस ‘नवकेतन फ़िल्मस’ शुरू किया. जिसके बैनर पर उन्होंने कई बेमिसाल फ़िल्में बनाईं. मंडी बर्मन, चेतन आनंद, विजय आनंद, गुरुदत्त, राज खोसला आदि डायरेक्टरों ने इस बैनर पर देव आनंद को लेकर कई कामयाब फ़िल्मों का निर्माण किया. देव आनंद आगे चलकर खु़द डायरेक्शन के मैदान में भी आ गए. यहां भी वो कामयाब रहे. ‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘हीरा पन्ना’, ‘प्रेम पुजारी’, ‘लूटमार’, ‘इश्क इश्क इश्क’ और ‘देस परदेस’ जैसी हिट फ़िल्मों का डायरेक्शन उन्होंने ही किया. देव आनंद फ़िल्म के क्राफ़्ट को अच्छी तरह से समझते थे. लाइट, कैमरा वर्क, स्क्रीनप्ले, एडिटिंग यानी फ़िल्म के हर डिपार्टमेंट में उनकी बेहतर समझ थी. ‘तीन देवियां’ में भले ही निर्देशक के तौर पर अमरजीत का नाम है, लेकिन इस फ़िल्म का डायरेक्शन देव आनंद ने ही किया था. उनके निर्देशन में आई अनेक फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर फ्लॉप रहीं, लेकिन वो इसका कभी ग़म या शोक नहीं मनाते थे. एक फ़िल्म की शूटिंग ख़त्म होते ही, दूसरी फ़िल्म पर काम शुरू कर देते थे.

डायरेक्शन के अलावा देव आनंद को गीत-संगीत की भी अच्छी समझ थी. उनकी फ़िल्मों की कामयाबी का एक बड़ा राज, शानदार गीत-संगीत था. एसडी बर्मन, आरडी बर्मन, राजेश रोशन जैसे संगीतकारों के संगीत और साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी, नीरज जैसे गीतकारों के गीतों से उनकी फ़िल्में सजी रहती थीं. आज भी इन फ़िल्मों के गाने चाहने वालों के होठों पर रहते हैं. देव साहब पर फ़िल्माए गए गाने और उनकी अदाकारी का जादू सिर चढ़कर बोलता है. उनके उठने-बैठने, बोलने और चलने-फिरने का अंदाज़ सभी दर्शकों को पसंद आता है. वे उनकी सभी अदाओं के दीवाने थे. ऐसी दीवानगी बहुत कम फ़िल्मी अदाकारों को नसीब होती है. देव आनंद की दुनिया भर में लोकप्रियता का ही कमाल था कि हॉलीवुड के डायरेक्टर भी उनके साथ काम करना चाहते थे, मगर उन्होंने अपना देश नहीं छोड़ा. वो बॉलीवुड में ही खु़श थे. 

भारतीय सिनेमा में विशिष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने देव आनंद को साल 2001 में अपने प्रमुख नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्म भूषण’ और साल 2002 में ‘दादासाहेब फाल्के सम्मान’ से नवाजा. फ़िल्म ‘काला पानी’ और ‘गाइड’ में शानदार अदाकारी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला. देव आनंद को सियासत में भी ख़ासी दिलचस्पी थी. इमरजेंसी के बाद साल 1977 में उन्होंने एक सियासी पार्टी ‘नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया’ बनाई और चुनाव लड़ा. लेकिन बाद में राजनीति से पूरी तरह किनारा कर लिया. देव आनंद पर यूं तो अंग्रेज़ी और हिंदी में अनके किताबें हैं, जिनमें उनकी ज़िंदगी और फ़िल्मी करियर के बारे में तफ़्सील से जानकारी मिलती है. लेकिन देव साहब की ज़िंदगी को और क़रीब से यदि जानना है, तो उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी ‘रोमांसिंग विद लाइफ़’ से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. जिसमें उन्होंने अपनी ज़िंदगी से जुड़ी तमाम बातों को बड़े ईमानदारी से सबके सामने रखा है. साल 2023, देव आनंद का जन्मशती साल है और इस मौके़ पर उन्हें याद करना, एक ऐसी ज़िंदादिल शख़्सियत को याद करना है, जिसकी पूरी ज़िंदगी जोश और मुहब्बत के जज़्बे से भरी हुई थी. जिसने अपनी फ़िल्मों से मुल्कवासियों का न सिर्फ़ भरपूर मनोरंजन किया, बल्कि उन्हें मुहब्बत, एकता और भाईचारे का पैग़ाम दिया.