हिट के लिए तरस रहे बॉलीवुड के लिए 2023 का साल राहत की बौछारें लेकर आया. पहले महामारी की वजह से और फिर दक्षिण की फिल्मों की ताबड़तोड़ कमाई से कई जानकार बॉलीवुड की मसाला फिल्मों का मर्सिया पढ़ने लग गए थे लेकिन 2023 ने साबित किया कि परखे हुए नायकों और आजमाए हुए नुस्खों में अभी भी दम है.
2023में हिंदी की चार फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर 500करोड़ रुपए का कारोबार किया. ओटीटी पर बेशक डार्क फिल्मों और वेबसीरीज की धूम रही लेकिन थियेटर में जाकर रणबीर, सलमान और शाहरुख खान की फिल्मों पर नाचने का लुत्फ जनता को इसी साल आया. द कश्मीर फाइल्स और केरला स्टोरी की कामयाबी के बाद ऐसा लग रहा था कि इस तर्ज पर बनी फिल्मों की झड़ी इस साल भी लगेगी, लेकिन इसकी बजाए हिंदी फिल्म उद्योग ने अपने पुराने ढर्रे पर चलना पसंद किया.
इस साल भी संगीत हमारी फिल्मो की रीढ़ बनी रही. सबसे पहले आपको याद दिलाते हैं वेबसीरीज जुबली की. पचास के दशक के बॉलीवुड के कैनवस पर बनी इस सीरीज को दर्शकों ने पसंद किया लेकिन खुफिया और पठान जैसे स्पाई थ्रिलर ने दर्शकों को संगीत में पिरोकर कहानी सुनाई तो दर्शक झूम उठे. यहां तक कि हिंसक फिल्म एनिमल में भी संगीत ने कानों को सुकून दिया.
इस साल की हिट फिल्मों में आक्रामक पुरुषों ने परदे को हथिया लिया. देओल परिवार के दोनों भाइयों सनी और बॉबी दोनों सुनहरे परदे पर अपनी मांसपेशियों का प्रदर्शन किया. सनी की गदर-2 ने गदर मचाया तो एनिमल में नेगेटिव शेड के साथ वापसी कर रहे बॉबी ने भी गरदा उड़ा दिया. निर्देशको ने दर्शकों की नब्ज फटाकदेनी से थाम ली कि वह फिल्मों में मर्दानगी की दोहरी खुराक चाहते हैं.
रोमांस के बादशाह कहने जाने वाले शाहरुख और रोमांस के नौजवान प्रतीक कहे जा रहे रणबीर दोनों ने अपनी पुरानी छवियों को उतार फेंका और ताबड़तोड़ गोलियां चलाते नजर आए. शाह रुख ने जवान और पठान में तथा रणबीर ने एनिमल में नए तेवर दिखाए.
इस साल ढिशुम-ढिशुम वाली फिल्मों में थैंक यू फॉर कमिंग, धक धक, मिसेज अंडरकवर, तेजस, फुकरे 3, घूमर, सास बहू और फ्लेमिंगो, दहाड़ और आखिरी सच में भी अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला, लेकिन उन्हें ज्यादा व्यावसायिक या आलोचनात्मक सफलता नहीं मिली. कटहल ने बेशक अलग किस्म की फिल्म होने का तमगा हासिल किया लेकिन कारोबारी कामयाबी उसके दरवाजे से दूर रही.
सुमित सक्सेना की कालकूट एसिड हमलों पर आधारित क्राइम थ्रिलर थी.
इस वर्ष ऐसी फ़िल्मों में आई जो सामाजिक-राजनीतिक मसलों पर तीखी टिप्पणियों सरीखी थीं. पठान, जवान, ओएमजी 2 और द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली में चतुराई से समस्या को बिना लाउड हुए रखा गया, तो भीड़ और अफ़वाह सत्ता-विरोध में बेहद सीधे-सीधे तेवरों के साथ थे, हालांकि दर्शकों ने इन्हें पसंद नहीं किया.
पिछले सालों में दक्षिण की फिल्मों की लोकप्रियता ने बॉलीवुड को पिछले पैर पर खड़ा कर दिया था और इसलिए बहुत सारे निर्देशकों ने दक्षिण के पके-पकाए माल को हिंदी दर्शकों के सामने पेश करना चाहा.लेकिन सेल्फी, शहजादा, भोला और किसी का भाई किसी की जान जैसे रीमेक के साथ दक्षिण भारतीय मसाले हिंदी में आते ही बेकार साबित हुए.
ऐसे में कहानी की बजाए हिंदी वालों ने दक्षिण से निर्देशक ही बुला लिए. शाहरुख खान ने एटली के साथ और रणबीर कपूर ने संदीप रेड्डी वांगा के साथ मिलकर हजार करोड़ कूट दिए. इधर, साउथ के सितारे भी हिंदी में कदम रख रहे हैं. दग्गुबाती वेंकटेश ने राणा नायडू में अपनी दुष्टता से विजय सेतुपति ने फ़र्ज़ी और जवान में उत्कृष्ट भूमिकाएं निभाई.
2023 में कई फिल्मों को विरोध और यहां तक कि सेंसरशिप का सामना करना पड़ा. बेहूदा और चलताऊ संवादों के लिए आदिपुरुष के निर्माताओं को माफी मांगनी पड़ी और गीत तथा संवाद लेखक मनोज मुंतशिर सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गए.
किशोरों के लिए यौन शिक्षा पर बनी फिल्म ओएमजी 2 को ए सर्टिफिकेट दिया गया और इसकी वजह से वह लोग इस फिल्म को नहीं देख पाए, जिनके लिए इसको बनाया गया था. ओपेनहाइमर के मामले में, सूचना और प्रसारण मंत्रालय सोशल मीडिया पर आक्रोश पैदा करने वाले 'आपत्तिजनक' दृश्य को पारित करने के लिए सीबीएफसी से स्पष्टीकरण मांगा. हालांकि,बेशरम रंग गाने के बाद बिकनी के रंग को लेकर हुए विवाद का फायदा पठान को ही मिला.
2023 में शाहरुख खान ने एक बार साबित कर दिया कि उन्हें किंग खान क्यों कहा जाता है. पठान, जवान और डंकी के साथ शाहरुख खान ने साबित किया कि वह यूं ही बादशाह नहीं हैं. हालांकि, डंकी की शुरुआत कमजोर है और प्रभास की सालार को तगड़ी ओपनिंग मिली है लेकिन कुछ फिल्में देर से हिट होती हैं. डंकी के निर्माताओं को यही उम्मीद भी होगी.
लेकिन बतौर अभिनेत मनोज वाजपेयी ने दिल जीतने वाले काम किए हैं. हिट फिल्मों के साथ उनके अभिनय की कमाल की रेंज भी देखने को मिली है. जोरम, गुलमोहर और सिर्फ एक बंदा ही काफी है के साथ वाजपेयी ने साबित किया, उन्हें क्यों विविधता भरा सितारा कहा जाता है.
2023 में सत्य घटनाओं पर आधारित बहुत सारी फिल्में आईं. उनमें से अधिकतर ने बेहतर प्रदर्शन भी किया. शिव रवैल की द रेलवे मेन, प्रशांत नायर की ट्रायल बाय फायर, हंसल मेहता की स्कूप और फ़राज़, और विक्रमादित्य मोटवानी की जुबली इस वर्ग में रखी जा सकती हैं.
1971 की लड़ाई के पचासवें साल में युद्ध आधारित कई फिल्मों की योजना बनी थी लेकिन मेघना गुलज़ार सैम बहादुर में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को श्रद्धांजलि दे पाईं. अपूर्व सिंह कार्की ने उस अनजान वकील की कहानी पेश की, जो एक ताकतवर धर्मगुरु के खिलाफ मुकदमा लड़ता (सिर्फ एक बंदा काफी है) तो दूसरी तरफ विधु विनोद चोपड़ा ने एक '12वीं फेल' की प्रेरणादायक कहानी सुनाई जो बाद में एक आईपीएस अधिकारी बन जाता है.
आशिमा छिब्बर की मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे, टीनू सुरेश देसी की मिशन रानीगंज और राजा कृष्ण मेनन की पिप्पा के बारे में आलोचकों ने बेहतर लिखा. ऐसा ही श्याम बेनेगल की मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन, अभिमन्यु सिंह की ताज: डिवाइडेड बाई ब्लड और स्मृति मुंद्रा की द रोमान्टिक्स के बारे में भी काफी कुछ लिखा गया, लेकिन फिल्म के भीतर ऐसा कुछ नहीं था. ऐसा लगा कि फेसवैल्यू पर यह समीक्षाएं की गई थीं.
इस साल कुछ नए चेहरे भी रूपहले परदे पर नजर आए. काबिल एक्टर इरफान के बेटे बाबिल खान ने द रेलवे मेन में प्रभावशाली प्रदर्शन किया और अगस्त्य नंदा और खुशी कपूर ने द आर्चीज़ के साथ ऐसी शुरुआत की, जिससे उम्मीद जगती है.
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