नई दिल्ली
हिंदी सिनेमा के दिग्गज और 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके अभिनेता असरानी ने एक बार एक साक्षात्कार में खुले तौर पर कहा था कि फिल्मों में कॉमेडी का स्तर गिरकर अश्लीलता तक पहुँच गया है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि कैसे फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार और बसु चटर्जी जैसे निर्देशकों ने उन्हें केवल हास्य कलाकार के तौर पर नहीं देखा, बल्कि गंभीर भूमिकाएं देकर उनकी अभिनय क्षमता को नई दिशा दी।
2016 के इंटरव्यू में, असरानी ने स्वीकार किया था कि उन्होंने गलती से कुछ ऐसी फिल्मों में भी काम किया जिन्हें आज वे शर्मनाक मानते हैं – जैसे 2016 की फिल्म "मस्तीज़ादे"।
उन्होंने कहा था,"महमूद साहब ने पहली बार डबल मीनिंग संवादों का प्रयोग किया, लेकिन वह सीमित था। अब तो फिल्मों में सिर्फ कपड़े उतारने की ही कसर रह गई है।"
1975 की क्लासिक "शोले" में जेलर की हास्य भूमिका के बाद असरानी को कॉमेडी कलाकार के रूप में पहचान मिली, लेकिन उन्होंने कहा कि हिंदी फिल्म उद्योग में एक बार जब कोई कलाकार किसी छवि में फिट हो जाता है, तो उसे उसी दायरे में बांध दिया जाता है।
उन्होंने कहा था,"यहाँ कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। जब आप एक बार कॉमेडी में हिट हो जाते हैं, तो आपको बार-बार उसी रोल में लिया जाता है।"
लेकिन कुछ निर्देशकों ने यह जोखिम उठाया। असरानी ने बताया,"बी.आर. चोपड़ा, हृषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार, और एल.वी. प्रसाद जैसे निर्देशकों ने मुझे चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं दीं। जब चोपड़ा साहब ने मुझे फिल्म ‘निकाह’ में कास्ट किया, तो लोगों ने सवाल उठाए कि असरानी को सीरियस रोल क्यों दे रहे हैं। मगर उन्होंने साफ कहा कि ये उनका फैसला है, और किसी को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।"
हृषिकेश मुखर्जी के साथ उन्होंने "अभिमान", "चुपके चुपके" और "बावर्ची" जैसी यादगार फिल्मों में काम किया, जबकि गुलज़ार के साथ "कोशिश" और "चैताली" जैसी गंभीर फिल्मों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
अभिमान में उनका किरदार – अमिताभ बच्चन के दोस्त और सचिव की भूमिका – उनके दिल के सबसे करीब था।"मुझे लगा कि ये एक कठिन किरदार है, लेकिन हृषिकेश मुखर्जी ने मुझ पर विश्वास रखा और मुझे इस भूमिका को सहजता से निभाने के लिए प्रेरित किया।"
हिंदी सिनेमा में कॉमेडी की दो धाराएं थीं, जिनका असर उन्होंने अपने करियर में देखा।"एक थी बिमल रॉय स्कूल, जिसमें हृषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार, बसु चटर्जी जैसे लोग थे, जिनकी कॉमेडी बेहद रियलिस्टिक और सधी हुई होती थी।
दूसरी थी मद्रास स्कूल, जिसमें मुख्य कहानी से अलग एक हास्य ट्रैक होता था। मैं, जितेन्द्र, कादर खान व अन्य इस शैली का हिस्सा रहे। यहाँ कॉमेडी ज़ोरदार होती थी, लेकिन फिर भी उसमें एक घरेलूपन था।"
मस्तीज़ादे में अपनी भूमिका को लेकर वे बेहद खेद में थे। उन्होंने कहा था,"यह फिल्म बेहद घटिया और अश्लील थी। मुझे नहीं पता था कि यह इस स्तर तक जाएगी। मैंने अपने करियर में कभी डबल मीनिंग संवाद नहीं बोले।"
भारतीय दर्शकों की समझ पर उन्हें पूरा विश्वास था:"यह फेज़ ज़्यादा समय तक नहीं चलेगा। हम भारतीय मूलतः पारिवारिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले लोग हैं। लोग अब कहने लगे हैं कि ये अश्लीलता हमें पसंद नहीं। मुझे यकीन है कि सिनेमा फिर उसी पारिवारिक और मूल्यपरक राह पर लौटेगा।"
👉 नोट: असरानी जी का यह इंटरव्यू 2016 में लिया गया था। उनका निधन 21 अक्टूबर 2025 को हुआ। अभिनय की दुनिया में उनका योगदान अमूल्य है, और वे हमेशा अपने दर्शकों के दिलों में जीवित रहेंगे।