नफरत की आंधी और मुहब्बत के चिराग

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 20-10-2025
Storms of hatred and flames of love
Storms of hatred and flames of love

 

e हरजिंदर

दीपावली पर अक्सर बरेली को याद किया जाता है. यहां के बाजारों की रौनक की वजह से और इस मौके पर यहां जो सद्भाव देखने को मिलता है उस वजह से भी.इसी बरेली का सदभाव पिछले दिनों बिगड़ा रहा. कुछ ऐसी बाते हुईं जिनसे तनाव बढ़ गया और इसके बाद कुछ ज्यादतियां भी हुईं जिससे डर का माहौल बना रहा.यह उम्मीद की जा रही थी कि जब दीपावली के चिराग जलेंगे तो यह सारा माहौल बदल जाएगा. काफी हद तक ऐसा हुआ भी कि दिवाली के चार दिन पहले ही माहौल में बदलाव शुरू हो गया.

दरअसल, बरेली देश का अकेला ऐसा शहर है जहां हर साल दो दीपावली मनाई जाती हैं. एक तो कार्तिक अमावस्या पर मनाई जाने वाली वह दीपावली है जो पूरे देश में इसी दिन मनाई जाती है, लेकिन बरेली में एक और दीपावली भी होती है.

जिसे कहा जाता है जश्न-ए-चरागा. खानकाह ए नियाजिया पर मनाई जानी वाली यह दीपावली ऐसी है जिसमें सभी समुदायों के लोग बड़ी संख्या में और पूरे उत्साह से शामिल होते हैं. इसमें खनकाह की इमारत तो रोशन होती ही है. उसके अंदर चारों तरफ चिराग ही चिराग नजर आते हैं.

देश दुनिया की तमाम नामचीन हस्तियां इस सूफी खनकाह के जलसे में शामिल होती हैं. ऐसी मान्यता भी है कि यहां आगर दिया जलाने वालों की हर मुराद पूरी हो जाती है. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं जिनके लिए इस मान्यता से ज्यादा अहम है इस मौके का रूहानी माहौल और सदभाव का वह संदेश जो सभी समुदायों के लोगों के शामिल होने की वजह से बनता है.

बरेली में अक्सर यह बात भी सुनाई देती है इस जश्न ए चरागां में मुस्लिम सुदाय से ज्यादा हिंदू समुदाय के लोग शामिल होते हैं. कहा जाता है कि इस मौके पर सिर्फ एक ही मजहब होता है वह है इंसानियत.

यह परंपरा यहां पिछले 300 साल से चली आ रही है, लेकिन इस साल का जश्न-ए-चरागा कईं कारणों से महत्वपूर्ण हो गया . एक तरफ तो शहर में जो तनाव और नफरत का माहौल तैयार करने की जो कोशिशें हो रहीं थीं, उनमें कईं लोग इसका इंतजार कर रहे थे.

वे इससे बड़ी उम्मीद बांध रहे थे. कुछ लोगों को लगता था कि जब सभी समुदायों के लोग एक साथ आएंगे तो बहुत से दुराग्रह पिघलेंगे और जो हुआ उसे भूलने की शुरूआत होगी. हालांकि कुछ लोगों को आशंका भी थी कि पता नहीं सभी समुदायों के लोग वहां पहंुचेंगे भी नहीं.

इस बार जश्न-ए-चरागा 16 अक्तूबर को था. दीपावली से ठीक चार दिन पहले. हमेशा की तरह इस बार भी वहां भीड़ जुटी. हमेशा की तरह सभी समुदायों के लोग जुटे. सभी आशंकाएं धरी रह गईं. बरेली ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि नफरत की कोई आंधी सद्भाव की इस नींव को हिला नहीं सकती.आने वाला समय बरेली का इम्तिहान लेगा. शहर के लोग नफरत की आंधी को रास्ता देंगे या फिर इस सद्भाव की नींव से नफरत को खत्म कर देंगे. 

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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